सतर्कता जागरूकता सप्ताह

सतर्कता जागरूकता सप्ताह

मैं सतर्कता जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत यूनानी औषधि अनुसंधान संस्थान अलीगढ़ का बहुत आभारी हूं जिन्होंने इस मौके पर मुझे एक अवसर दिया है कि मैं सरकारी कर्मचारियों के संबंधित वह बातें साझा कर सकूं जो मेरे ध्यान में आई।
जब देश आजाद हुआ था तब मेरे अनुमान से नेताओं के कद भी ऊंचे हुआ करते थे और उनके सोच विचार बहुत अच्छे और ऊंचे ख्यालात हुआ करते थे और सादगी पसंद जीवन था। अब जीवन मैं काफी गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तन आ चुका है।यहां ऐसे भी राजा हुए हैं जो ₹1 में ही बिक गए और सत्य के पालन के लिए मोरध्वज ने तो अपने पुत्र कोई ऑफर कर दिया। शायद ऐसी मिसाल पन्नाधाय और ऐसी ही मिलती है। लेकिन आज विगत दिनों के कई राज पुरुष अभी भी जेल में बंद है। जेल में बंद राजनेता ही नहीं है कई बाबा कई व्यापारी और कई उद्योगपति भी बंद है। अगर कारनामे नहीं सुधरे तो पता नहीं आने वाले कल  कौन बंद और कौन नजर बंद होगा।
मुख्य बात यह है कि सरकारी कर्मचारियों का आचरण कर्तव्य जनता के प्रति कैसा हो। सरकारी सेवक  किसी राजनीतिक पार्टी के प्रतिबंध हो ही नहीं सकता। प्रजातंत्र में हमारी यह परिकल्पना है कि चुनाव होने के बाद हम सब एक हैं और हम देश के लिए काम करेंगे।सरकार ने और सामाजिक संगठनों ने जनता जनार्दन ने इस बात को महसूस किया कि एक ऐसा तंत्र होना चाहिए जो उच्चाधिकारियों और सरकारी सेवकों के आचरण कर्तव्य आदि पर नजर रखता इसीलिए  केंद्रीय सतर्कता आयोग बनाया गया । इसकीअत्यधिक शक्तियां हैं।
सतर्कता जागरूकता सप्ताह
सतर्कता जागरूकता सप्ताह
सरकारी सेवकों पर  तो आचरण नियम और केंद्रीय सिविल सेवा नियंत्रण और वर्गीकरण नियम लागू होते हैं इसके अलावा उन्हें संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी पड़ती है यह सत्य निष्ठा की शपथ अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि वे अपने प्रत्येक काम में पारदर्शिता बनाए रखेंगे ईमानदारी से काम करें ।अब इस पर ईमानदारी पर विचार करते हैं क्या आखिर इसकी परिभाषा क्या है। हमारे मन वचन और कर्म मैं सत्य का पालन हो। अगर ऐसा नहीं होता है तो उस काम के परवर्ती सारी सूचनाएं सारी बातें असत्य होंगी। इस तरह सूचना का फ्लो जो है गलत होगा।’
ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार ईमानदार को सत्य पालक और निष्कपट, नैतिक रूप से सही और गुणवान बताया गया है।लेकिन आज के हालात देखते हुए आदमी को कभी-कभी अपने लालच अपने लाभ अपने और कई काम करने के लिए सिफारिश रिश्वत जैसे दुष्कर्म में न फसे इसलिए सतर्कफ रहना  पड़ता है जिसके भाइयों कारक जैसे राजनीतिक नेताओं का दबाव दलालों का प्रलोभन आदि आदि बातें हो सकतीहै। यहीं से आप मान सकते हैं कि यह दोधारी तलवार है । आपको उसी समाज में रहना उन्हीं लोगों के बीच में रहना है और उन्हीं की बात को नकारना  है जो कि आपकी समझ से बेईमानी पूर्ण है।यह आप की चतुराई ही होगी कि ऐसे चुनौती भरे वातावरण में आप अपना सेवाकाल बेदाग पूरा कर ले जाएं और किसी उलझन में न फंसे।कई बार कई प्रवर्तन एजेंसियां बैक फायर भी करती हैं तो आप अपनी कमी,  अपने दोष कभी भी उजागर न करें भले ही परिस्थितियां कैसी रहे। कानूनी दृष्टि से भी आपके विरुद्ध आपके मुंह से कोई गवाही दिलवाई नहीं जा सकती।अ- सुविधाजनक प्रश्नों का जवाब आप नहीं दे सकते है।ईमानदारी से आपको जो लाभ मिलता है वह एक सच्ची सेवा के साथ एक सम्मान , एक यश और एक भरोसे का है। लोग आप पर पूर्णरूपेण भरोसा कर सकते हैं।
जहां ईमानदारी का अभाव होगा और काम में पारदर्शिता नहीं होगी तो उसे स्थिति में भ्रष्टाचार पनपेगा । जांच एजेंसियों द्वारा भ्रष्टाचार के मामले उजागर कराए जाते हैं और और इसके लिए यथा जरूरी नियम भी बनाए गए हैं जिनमें छापे तलाशी नोटिस आदि की व्यवस्था की गई है। भ्रष्टाचार के मामलों में क्यों नियम लागू होते हैं उनको मैं संक्षेप में बता रहा हूं भारतीय दंड संहिता 1860 भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988, बेनामी संपत्ति निषेध अधिनियम 1988, मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 भारत ने 2005 में संयुक्त राष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी सम्मेलन में हस्ताक्षर भी किए।भारतीय दंड संहिता में लोक सेवक की परिभाषा बहुत व्यापक है और इसमें बैंक यूनिवर्सिटी सरकारी सेवक सहकारी समितियों के कार्य करता भी शामिल है।
भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम की विशेष बात यह है कि अगर आप इसमें संलिप्त पाए जाते हैं तब आरोप पत्र को झूठा साबित करना ऑनस आफ प्रूफ आपकी जिम्मेदारी है अभियोजन एजेंसी यह सिद्ध नहीं करेगी वह केवल आरोप लगाएगी और आप निर्दोष है यह साबित करने की जिम्मेदारी आपकी होगी।पहुंचाई गई लाभ के बदले में लाभ या किसी अन्य पुरुष को लाभ पहुंचाना भी भ्रष्टाचार में शामिल माना गया।अमूमन भ्रष्टाचार की जांच सीवीसी सीबीआई और एसीबी करते हैं ।मनी लॉन्ड्रिंग की जांच ईडी करती है या एफआइयू करती है जो कि दोनों ही वित्त मंत्रालय के अधीन है।केंद्र सरकार के कर्मचारियों की जांच सीबीआई और राज्यों के कर्मचारियों की जांच एसीबी करते हैं हालांकि राज्य ऐसे भी मामले सीबीआई को सुपुर्द कर सकते।CVC एक सर्वोच्च लेकिन स्वायत्त निकाय है।भ्रष्टाचार के सभी मामले एजेंसी द्वारा झांसी जाते हैं और विशेष न्यायाधीशों के यहां इनकी सुनवाई होती है।
अंत में मैं यही कहूंगा  सिकंदर की तरह यहां से कोई आदमी कुछ ले नहीं जा पाया है। सिकंदर भी जब गया तो उसकी दोनों हथेलियां खाली थी। हम भी एक मौका मिला है तो हम सरकारी सेवा पूरे यश के साथ पूरी करें। सभी का आभार।जय भारत ।जय हिंद।
   
क्षेत्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान केंद्र अलीगढ़ में सतर्कता जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत ईमानदारी विषय पर 2 नवंबर 19 को श्री क्षेत्रपाल शर्मा, क्षेत्रीय प्रतिनिधि, केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद का भाषण

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