सिसकते घाव

सिसकते घाव

खुले घावों में
लहूरंजित छींटें,
जि़न्‍दगी की  चादर पर
मलहम की उम्‍मीद में,
सिसकते – सिसकते
आखि़र सो गए ।।

( उन ‘निर्भयाओं’ को समर्पित, जिन्‍हें न्‍याय नहीं मिला- न सामाजिक और न विधिक )

नदी  

ग़म ये नहीं कि नदी

पुष्पलता शर्मा
पुष्पलता शर्मा

सागर से मिलती है,
ग़म ये है कि नदी
सागर  में गिरती है,
कैसा  छलावा दिया,
भोली नदिया को,
ऐ सागर तूने,
मिलन की आस
दोनों में है,
पर
पतन
नदी ही सहती है ।।

( 1992 में रचित )
                                      ………..

बहस की सार्थकता

बहस की सार्थकता
तभी है
जब हम,
चिपके न रहें
अपनी  असहमतियों पर
और संशय न करें
अपनी  सहमतियों पर ।।

(दोनों लघु कविताएं ‘’180 डिग्री का मोड़’’ काव्‍य-संग्रह से) 
                                                   ………..


यह रचना पुष्पलता शर्मा ‘पुष्पी’ जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी आपकी विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में सम-सामयिक लेख ( संस्‍कारहीन विकास की दौड़ में हम कहॉं जा रहे हैं, दिल्‍ली फिर ढिल्‍ली, आसियान और भारत, युवाओं में मादक-दृव्यों का चलन, कारगिल की सीख आदि ) लघुकथा / कहानी ( अमूमन याने….?, जापान और कूरोयामा-आरी, होली का वनवास आदि ), अनेक कविताऍं आदि लेखन-कार्य एवं अनुवाद-कार्य प्रकाशित । सम्‍प्रति रेलवे बोर्ड में कार्यरत । ऑल इंडिया रेडियो में ‘पार्ट टाइम नैमित्तिक समाचार वाचेक / सम्‍पादक / अनुवादक पैनल में पैनलबद्ध । कविता-संग्रह ‘180 डिग्री का मोड़’ हिन्‍दी अकादमी दिल्‍ली के प्रकाशन-सहयोग से प्रकाशित हो चुकी है ।

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