साइकिल पर कविता
साइकिल मेरी प्यारी साइकिल
बहुत कुछ मुझे सिखा गई
देख कर उसको फिर मुझे
बचपन की याद आ गई
गिर के संभलना ,संभल, संभल कर चलना
बात यह गहरी, एक पल में सिखा गई
तालमेल कैसे बिठाना आगे हो या पीछे
हल्का भारी का वजन मुझे समझा गई
साइकिल मेरी प्यारी साइकिल
बहुत कुछ मुझे सिखा गई
हवा से चले ,हवा से बातें करें
मेहनत की हो जीत पाठ यह पढ़ा गई
बहुत कुछ मुझे सिखा गई
पैरों को चला चला कर इसे चलाया
कदमों को कैसे बढ़ाना
ज्ञान यह दे गई
साइकिल मेरी प्यारी साइकिल
बहुत कुछ मुझे सिखा गई
तूफान हो बारिश हो हरदम साथ निभाया
इसे देखकर चलाने का हमेशा हौसला आया
कभी ना रुकने का संदेश यह दे गई
साइकिल मेरी प्यारी साइकिल
बहुत कुछ मुझे सिखा गई
टन टन घंटी बजी लय तरन्नुम में
हैंडल से मेरी भी पहचान करवा गई
साइकिल मेरी प्यारी साइकिल
बहुत कुछ मुझे सिखा गई
देख किसको फिर
बचपन की याद आ गई