साधना के सहायक ग्रंथ

साधना के सहायक ग्रंथ 

साधना के सहायक ग्रंथ साधना के लिए उपनिषद ,गीता ,ब्र्हंसूत्र और वेदान्त ग्रंथ की आवश्यकता हो सकती है | परंतु कुछ टीकाकारों की मानें तो साधना हेतु कोई भी पुस्तक अथवा संसाधन रखने से माना करते हैं अर्थात पुस्तक साधना मे व्यवधान का काररण बन सकती है| 
साधना एकांत मेन किया जाना सर्वोत्तम माना जाता है ,जहां परमात्मा के सिवाय कोई भी ण हो | साधना की शिक्षा लेते समय सार्थक (पाजिटिव) ही बातें सोचनी और करनी चाहिए |साधना करते सामी यह भी ध्यान रखने योग्य है कि पुराण ग्रन्थों पर आधारित लिखी समीक्षा और आख्या ,लौकिक कथा से संबन्धित पुस्तकें साधक ण रखे अन्यथा मन चंचल हो जाता है | 
साधक ध्यानी मनुष्य को परिग्रह वर्जित है चाय ,स्टॉप आदि रखना वर्जित है | साधक के पास दर्शकों का आना स्वाभाविक हो जाता है जब कि उन्हें दर्शकों से बचना चाहिए | दो मनएक समान न होने से साधक को अपने साथ में किसी को नहीं रखना चाहिए |संतों में महान साधक संत रामकृष्णपरमहंस  जी ने गृहस्थ को भी कभी -कभी एकांत और निर्जन में रहकर साधना करने का निर्देश दिया है  |
साधना के सहायक ग्रंथ
साधना के सहायक ग्रंथ

अब प्रश्न उठता है कि कैसे करें साधना और कौन साधन हो ? तो इसके लिए कुछ निम्नलिखित निर्देशों का पालन आवश्यक हो जाता है –

शुद्ध भूमि मेँ क्रमश : कुशा ,मृगछाला और वस्त्र को एक के ऊपर एक विछाकर अपने (ऐसे )आसन को न तो बहुत ऊपर और न बहुत नीचे अविचल रूप से स्थापित करके ,उस आसन पर बैठकर ,चित्त और इंद्रियों की क्रियाओं का नियमन करते हुये मन को एकाग्र करके अंत:कारण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करें |शुद्ध भूमि – शुद्ध भूमि वह है जहां विष्ठा ,कचरा आदि न हो और ऐसा स्थान होवे जहां मन प्रफुल्लित रहे | आसन सर्वथा स्थिर रहे | हिलने डुलने वाला आसन न होवे | आसन को ढलान मे भी नहीं लगाएँ |
कुशा,मृगचर्म और वस्त्र का आसन नर्म होता है ,सबसे नीचे कुश का आसन बिछाए | नरम आसन सर्वथा उचित होता है | आसन का अपने आप मेँ कुछ विशेष महत्व होता है |मृगचर्म पर साँप ,बिच्छू ,खटमल नहीं आते हैं ऐसी मान्यता है | आसन पर वस्त्र प्रायः सबसे ऊपर डालना चाहिए |साधना मेँ योग के क्रम का भी विशेष महत्व होता है यथा –
प्रथम अष्टांग योग करें | यह  चित्त और मन को एकाग्र करता है अत : इसे ही बारंबार दुहराना चाहिए |
भक्ति मेँ परमात्मा के सगुण साकार रूप का ध्यान करें यह ध्यान अवतारी पुरुषों ,महात्माओं अथवा गुरु के रूप मेँ ध्यान किया जाता है जब कि ज्ञान कि प्रणाली मेँ सगुण निराकार या निर्गुण निराकार परमात्मा के रूप में मन को समाहित किया जाता है | इसे ‘ध्यान ‘ कहते हैं |ध्यान योग के चमत्कार का लक्ष्य चमत्कार या सिद्धि प्रदान करना नहीं है वरन इसका उद्देश्य है मन के मल को साफ करना | मन विक्षेप और आवरण निर्दोष ही हमारी आत्म स्वरूपता को ढके हुये है |
-सुखमंगल सिंह ,
अवध निवासी 

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