तेरी याद आयी

तेरी याद आयी

ढ़ रहा था अचानक ये क्या हो गया
आंख पर क्यों अंधेरा घना छा गया
चल रही थी कलम हर कदम संग मेरे
चल रही थी जो सांसे ह्रदय में मेरे 
रुक गए हैं सभी अब मैं कैसे बढूं
कैसे अपना स्वर्णिम भविष्य गढूं
कैसी है ये अतिथि भांति आंधी आई
शायद…. तेरी याद आयी।
तेरी याद आयी

हैं आंखो में पानी समझ कुछ नहीं

हैं किताबें खुली दिख रहा कुछ नहीं
बंद शायद घड़ी की हैं सुईयां पड़ी
हो गई हैं अतीत स्मृतियां खड़ी
कश्मकश में हूं मैं अब कहो क्या करूं
सोचता ही रहूं या फिर आगे बढूं
“कुछ बनोगे बड़े तुम” ये तुम्ही ने सिखाई
शायद… तेरी याद आयी।
कर लिए साफ आंसू उठा सोचकर
अब लगूं काम में सारे भय त्याग कर
देखा तस्वीर ये जो बताती सदा
हम मिलेंगे कभी , तो किसी मोड़ पर
तुम सदा साथ हो बात मन में बनाई
हां …. तेरी ही  याद आयी ….तेरी याद आयी।

मैं थक गया था

आ रहा था पास पर मैं थक गया था
धूप निकली थी बहुत ही तेज पर मैं चल रहा था
पेट खाली, जेब मेरे थे अकिंचन
ढूंढते थे उस मरुस्थल में भी मधुवन
किंतु क्या पाया तथा क्या खो दिए हम
याद ना था कुछ सिवा उनके मिलन के
दुःख भरी थी राह , दिन भी ढल गया था।
आ रहा था पास पर मैं थक गया था।
जानता हूं वो कहां प्रासाद वासी
मैं कहां इस पर्ण कुटिया का निवासी
पय समान धवल स्निग्ध कपोल उनके
मार्ग के ज्यों गर्त हों यूं काय मेरे
तुम गगन मैं अवनि अपना मेल क्या है
ईश विरचित क्षितिज का यह खेल सा है
बस यही सब सोचकर मैं रुक गया था।
आ रहा था पास मैं थक गया था।

जो लड़ रहे हमारे खातिर हम उनका सहयोग करें

उठो साथियों समय नहीं अब शैय्या पर आराम का
बिस्तर छोड़ो चलो लड़ो, ले नाम प्रभु श्री राम का
बिना किए संघर्ष, मिली न सीता प्रभु श्री राम को
मांग – मांग थक गए, न पाए पांडव अपने राज को।
मांगा था एक मार्ग राम ने, उस विशाल सागर से
किंतु दिया क्या कभी उदधि ने, मार्ग विनय-अनुनय से
जैसे कुपित, उठे सौमित्र, कोदंड विशिख ले धाए
उसी समय, अंबुधि विशाल अपने घुटनों पर आए।
याचक बने कभी माधव भी, दुर्योधन के आगे
पांच गांव तो दूर, अंगुलि भर न मिला, जो मांगे
रघुनंदन भी रावण वध कर, सीता मां को लाए
उधर महाभारत रचकर केशव , पांडव को राज्य दिलाए।
मोती खातिर गोताखोर उतरता गहरे पानी में
फिर हम हाथ धरे क्यों बैठे, अपनी भरी जवानी में
शक्ति, ओज हममें अपार, आओ उनका उपयोग करें
जो लड़ रहे हमारे खातिर, हम उनका सहयोग करें।
वे भाई अपने हैं, उनके साथ लड़ो और खड़े रहो
जब तक न प्राप्त कर लो अभीष्ट, मत हिलो, वहीं तुम अड़े रहो
ध्यान रहे हे बंधु , समय अब नहीं शयन करने का,
नहीं मिली नौकरी तो फिर घाव नहीं भरने का
अगर सो गए, लड़ न सके, तो पीछे पछताओगे
और अगर वे हारे ,तुम भी चैन नहीं पाओगे।
– सुव्रत शुक्ल 
B.Sc.,D.El.Ed.(B.T.C.2017),M.A.(Sanskrit)
पूरे पयाग, रामगंज (सांगीपुर) , प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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