सियाराम मिलन

सियाराम मिलन

जब सिया कर रही राम बखाना ,
सुन श्री राम बहुत मुस्काना …..
बोले कौन बात है जनक कुमारी ,
जो प्रेम पूजन तुम बरनत हमारी….
बोली सिया फिर मुस्काए ,
अहो भाग्य! जो तोहे हम पाए….
सियाराम मिलन
सियाराम मिलन
यह कर्म तुम्हारो पूज्यनिधि ,
जो अपने अंश देव मोहे आधा….
जन्म भी साथी ना रहा मेरे ,
बाबुल छूट गयो बिसेरो….
बस तुम ही एकसाथी इस जीवन का ,
जो सात जन्म का दियो है वादा…..
सुन रघुनंदन फिर मुस्काए ,
सीता को लिए ह्रदय लगाएं ….
जनक सुता के नैना ,
नदियां बनने लगी बहे….
बिनु बदरा बारिश कहां आई ,
छेड़ सिया रामचंद्र कहे…..
फिर वह समाँ होई गया प्रीत का ,
जैसे सुर हो मधुबन के गीत का…..
सांवले सलोने से रामचंद्र मेरो ,
सिया सुंदर सील चकोर ,,
बंध रहे हैं सियाराम जैसे एक ही डोर….
ऊँ छवि अब के बरनुँ मैं ,
लागै कितना सुखद सलोना….
औ देख मतवाला हो गया ,
ह्रदय मन का हर कोना….
हाथ जोड़ विनती करूं ,
सुनहु सिया रघुवीर …..
यह साथ सदा मैं ऐसे बखानु ,
नहीं खोऊं कबहूं धीर….


– दिव्यलक्ष्मी शुक्ला 
भंडहा,गोंडा ,उत्तर प्रदेश

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