राग मलार
मिटि गई अंतरबाधा
खेलौ जाइ स्याम संग राधा।
यह सुनि कुंवरि हरस मन कीन्हों मिटि गई अंतरबाधा॥
जननी निरखि चकित रहि ठाढ़ी दंपति रूप अगाधा॥
देखति भाव दुहुंनि को सोई जो चित करि अवराधा॥
संग खेलत दोउ झगरन लागे सोभा बढ़ी अगाधा॥
मनहुं तडित घन इंदु तरनि ह्वै बाल करत रस साधा॥
निरखत बिधि भ्रमि भूलि पर्यौ तब मन मन करत समाधा॥
सूरदास प्रभु और रच्यो बिधि सोच भयो तन दाधा॥
खेलौ जाइ स्याम संग राधा।
यह सुनि कुंवरि हरस मन कीन्हों मिटि गई अंतरबाधा॥
जननी निरखि चकित रहि ठाढ़ी दंपति रूप अगाधा॥
देखति भाव दुहुंनि को सोई जो चित करि अवराधा॥
संग खेलत दोउ झगरन लागे सोभा बढ़ी अगाधा॥
मनहुं तडित घन इंदु तरनि ह्वै बाल करत रस साधा॥
निरखत बिधि भ्रमि भूलि पर्यौ तब मन मन करत समाधा॥
सूरदास प्रभु और रच्यो बिधि सोच भयो तन दाधा॥