हिंदी भाषा का इतिहास

हिंदी भाषा का इतिहास


बारह वर्गों में बटा ,विश्व भाष अभिलेख।
“शतम “समूह सदस्यता ,हिंदी भाष प्रलेख।

देव वाणी है संस्कृत ,कालिक देशिक रूप।
हिंदी की जननी वही ,वैदिक लोक स्वरुप।

हिंदी
हिंदी 

ईस पूर्व पंचादशी ,संस्कृत विश्व विवेक।
ता पीछे विकसित हुई ,पाली ,प्राकृत नेक।

अपभ्रंशों से निकल कर ,भाषा विकसित रूप।
अर्ध ,मागधी ,पूर्वी ,हिंदी के अवशेष।

एक हज़ारी ईसवी ,हिंदी का प्रारम्भ।
अपभ्रंशों से युक्त था ,आठ सुरों का दम्भ।

वाल्मीकि ,अरु व्यास थे ,संस्कृत के आधान।
माघ ,भास अरु घोष थे ,कालीदास समान।

आदि ,मध्य अरु आधुनिक ,हिंदी का इतिहास।
तीन युगों में बसा है ,भाषा रत्न विकास।

मीरा,तुलसी, जायसी ,सूरदास परिवेश।
ब्रज की गलियों में रचा ,स्वर्ण काव्य संदेश।

सिद्धो से आरम्भ हैं ,काव्य रूप के छंद।
दोहा ,चर्यागीत में ,लिखे गए सानंद।

संधा भाषा में लिखे ,कवि कबिरा ने गीत।
कवि रहीम ने कृष्ण की ,अद्भुत रच दी प्रीत।

पद्माकर ,केशव बने ,रीतिकाल के दूत।
सुंदरता में डूबकर ,गाये गीत अकूत।

भारतेन्दु से सीखिए ,निज भाषा का मान।
निज भाषा की उन्नति ,देती सब सम्मान।

“पंत “‘निराला ‘से शुरू ,’देवी ‘अरु ‘अज्ञेय ‘
‘जयशंकर’ ‘दिनकर ‘बने ,हिंदी ह्रदय प्रमेय।

अंग्रेजों के काल से ,वर्तमान का शोर।
हिंदी विकसित हुई है ,चिंतन सरस विभोर।

सब भाषाएँ पावनी ,सबका एकल मर्म।
मानव निज उन्नति करे ,मानवता हो धर्म।

हिंदी हिंदुस्तान है ,हिन्द हमारी शान।
जन जन के मन में बसी ,भाषा भव्य महान।

– सुशील शर्मा 

You May Also Like