रक्षा/ महेंद्र भटनागर

महेंद्र भटनागर 

देश की नव देह  पर
चिपकी हुई
जो अनगिनत जोंकेजलौकें,
रक्तलोलुप
लोभमोहित
बुभुक्षित
जोंकेजलौकें —
आओ
उन्हें नोचेंउखाड़ें,
धधकती आग में  झोंकें !
उनकी
आतुर उफ़नती  वासना को
फैलने से
सबकुछ लील लेने से
अविलम्ब रोकें !
देश की नव देह
यों टूटे नहीं,
ख़ुदगरज़ कुछ  लोग
विकसित देश  की सम्पन्नता
लूटे नहीं !



महेंद्र भटनागर स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-कविता के बहुचर्चित यशस्वी हस्ताक्षर हैं। महेंद्रभटनागर-साहित्य के छह खंड ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ अभिधान से प्रकाशित हो चुके हैं।  ‘महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा’ के तीन खंडों में उनकी अठारह काव्य-कृतियाँ समाविष्ट हैं। महेंद्रभटनागर की कविताओं के अंग्रेज़ी में ग्यारह संग्रह उपलब्ध हैं। फ्रेंच में एक-सौ-आठ कविताओं का संकलन प्रकाशित हो चुका है। तमिल में दो, तेलुगु में एक, कन्नड़ में एक, मराठी में एक कविता-संग्रह छपे हैं। बाँगला, मणिपुरी, ओड़िया, उर्दू, आदि भाषाओं के काव्य-संकलन प्रकाशनाधीन हैं।


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