अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी.
संत रविदास |
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अँग–अँग बास समानी.
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा.
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती.
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा.
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भगति करै रैदासा.
संत कुलभूषण कवि रैदास उन महान् सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एवं सहज संत रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतु की तरह है।
सौजन्य – हिंदी विकिपीडिया
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