अवधी भाषा का परिचय व साहित्यिक महत्व

अवधी भाषा का परिचय व साहित्यिक महत्व

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अवधी भाषा , पूर्वी हिन्दी की सबसे मुख्य बोली है और हिन्दी की उन बोलियों में है जिन्हें विश्वस्तरीय ख्याति प्राप्त हुई है। इस बोली का नाम ‘अवधी’, अवध’ शब्द से स्थानान्तरण सम्बन्ध के आधार पर बना है। ‘अवध”अयोध्या’ का ही नामान्तर है जो मध्ययुग में एक बहुत बड़े सूबे के रूप में विकसित था। प्राचीन भारतीय इतिहास में ‘अयोध्या’ को दक्षिण कोशल की राजधानी माना गया है। इस आधार पर इस बोली का एक अन्य नाम ‘कोशली’ भी कहीं-कहीं प्राप्त होता है। सन्तों, कवियों ने कभी-कभी इसे ‘पुरबिया’ भी कहा है पर आज इसका मुख्य और मान्य नाम ‘अवधी’ है। 

अवधी भाषा क्षेत्र

अवधी भाषा का परिचय व साहित्यिक महत्व
अवधी का क्षेत्र आज उसी भू-भाग में है जिसमें ‘अवध’ प्रान्त या राज्य था। वर्तमान फैजाबाद और लखनऊ मण्डल के कुल 14 जिले अवधी क्षेत्र में आते हैं- ये हैं बहराइच, गोण्डा, फैजाबाद, अम्बेडकरनगर, बाराबंकी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई। इस समय अवधी बोली बोलने वालों की क्षेत्रीय संख्या लगभग 5 करोड़ के आस-पास है। 

अवधी साहित्य का इतिहास व महत्व 

हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल का सम्पूर्ण सूफी प्रेमाख्यान काव्य और रामकाव्य धारा का अधिकतर साहित्य अवधी बोली में है। सूफी कवियों में मुल्ला दाउद, कुतुबन, मंझन, जायसी, उसमान, नूरमोहम्मद, कासिमशाह, शेखनिसार आदि इसी अवध क्षेत्र के निवासी थे और इसी में इन कवियों ने अपनी रचनाएँ भी की हैं। राम काव्यधारा में गोस्वामी तुलसीदास ने इस बोली की रामचरित मानस के माध्यम से विश्व कीर्ति प्रदान की। अन्य रामभक्त कवि जो तुलसी वाले मार्ग के हैं अथवा रसिक धारा के हैं, अवधी का माध्यम ही अपनाते रहे हैं। 
भक्तिकाल की निर्गुणधारा में कई सन्तों जैसे जगजीवन साहब, मोहन साईं आदि ने भी अवधी में ही काव्य रचना की। सम्पूर्ण सतनामी सम्प्रदाय इसी धारा में है। आधुनिककाल के कवियों की एक लम्बी परम्परा भी अवधी से जुड़ी है जैसे रमईकाका, वंशीधर शुक्ल, बलभद्रप्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’, पं० द्वारकाप्रसाद मिश्र, गुरुप्रसाद ‘मृगेश’, विश्वनाथ पाठक, त्रिलोचन शास्त्री आदि। रीतिकाल में भी अवधी में रचनाएँ चलती रहीं। इस तरह भक्तिकाल से लेकर आधुनिक काल तक अवधी बोली का साहित्यिक महत्त्व  सर्वविदित है। 

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