ज़माना बेशक आज बहुत आगे बढ़ चूका होओ,मगर स्त्रियों के बारे में पुरुषों के द्वारा कुछ जुमले आज भी बेहद प्रचलित हैं,जिनमें से एक है स्त्रियों की बुद्धि उसके घुटने में होना…क्या तुम्हारी बुद्धि घुटने में है ऐसी बातें आज भी हम आये दिन,बल्कि रोज ही सुनते हैं….और स्त्रियाँ भी इसे सुनती हुई ऐसी “जुमला-प्रूफ”हो गयीं हैं कि उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता इस जुमले से…मगर जैसा कि मैं रो देखता हूँ कि स्त्री की सुन्दरता मात्र देखकर उसकी संगत चाहने वाले,उससे प्रेम करने वाले,छोटी-छोटी बच्चियों से मात्र सुन्दरता के आधार पर ब्याह रचाने वाले पुरुषों…और ख़ास कर सुन्दर स्त्रियों, बच्चियों को दूर-दूर तक भी जाते हुए घूर-घूर कर देखने की सभी उम्र-वर्गों की जन्मजात प्रवृति को देखते हुए यह पड़ता है कि स्रियों की बुद्धि भले घुटने में ही सही मगर कम-से-कम है तो सही….तुममे वो भी है,इसमें संदेह ही होता है कभी-कभी….स्त्रियों को महज सुन्दरता के मापदंड पर मापने वाले पुरुष ने स्त्री को बाबा-आदम जमाने से जैसे सिर्फ उपभोग की वस्तु बना कर धर रखा है और आज के समय में तो विज्ञापनों की वस्तु भी….तो दोस्तों नियम भी यही है कि आप जिस चीज़ को उसके जिस रूप में इस्तेमाल करोगे,वह उसी रूप में ढल जायेगी….समूचा पारिस्थितिक-तंत्र इसी बुनियाद पर टिका हुआ है,कि जिसने जो काम करना है उसकी शारीरिक और मानसिक बुनावट उसी अनुसार ढल जाती है…अगर स्त्री भी उसी अनुसार ढली हुई है तो इसमें कौन सी अजूबा बात हो गयी !!
दोस्तों हमने विशेषतया भारत में स्त्रियों को जो स्थान दिया हुआ है उसमें उसके सौन्दर्य के उपयोग के अलावा खुद के इस्तेमाल की कोई और गुंजाईश ही नहीं बनती…वो तो गनीमत है विगत कालों में कुछ महापुरुषों ने अपनी मानवीयता भरी दृष्टि के कारण स्त्रियों पर रहम किया और उनके बहुत सारे बंधक अधिकार उन्हें लौटाए….और कुछ हद तक उनकी खोयी हुई गरिमा उन्हें प्रदान भी की वरना मुग़ल काल और उसके आस-पास के समय से हमने स्त्रियों को दो ही तरह से पोषित किया….या तो शोषित बीवी….या फिर “रंडी”(माफ़ कीजिये मैं यह शब्द नहीं बदलना चाहूँगा…. क्योंकि हमारे बहुत बड़े सौभाग्य से स्त्रियों के लिए यह शब्द आज भी देश के बहुत बड़े हिस्से में स्त्रियों के लिए जैसे बड़े सम्मान से लिया जाता है,ठीक उसी तरह जिस तरह दिल्ली और उसके आस-पास “भैन…चो….और भैन के…..!!)जब शब्दों का उपयोग आप जिस सम्मान के साथ अपने समाज में बड़े ही धड़ल्ले से किया करते हो….तो उन्हीं शब्दों को आपको लतियाने वाले आलेखों में देखकर ऐतराज मत करो….बल्कि शर्म करो शर्म….ताकि उस शर्म से तुम किसी को उसका वाजब सम्मान लौटा सको….!!
तो दोस्तों स्त्रियों के लिए हमने जिस तरह की दुनिया का निर्माण किया….सिर्फ अपनी जरूरतों और अपनी वासनापूर्ति के लिए….तो एक आर्थिक रूप से गुलाम वस्तु के क्या हो पाना संभव होता….??और जब वो सौन्दर्य की मानक बनी हुई है तो हम कहते हैं कि उसकी बुद्धि घुटने में….ये क्या बात हुई भला….!!….आपको अगर उसकी बुद्धि पर कोई शक तो उसे जो काम आप खुद कर रहे हो वो सौंप कर देख लो….!!और उसकी भी क्या जरुरत है….आप ज़रा आँखे ही खोल लो ना…आपको खुद ही दिखई दे जाएगा….को वो कहीं भी आपसे कम उत्तम प्रदर्शन नहीं कर रही,बल्कि कहीं -कहीं तो आपसे भी ज्यादा….कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि इस युग में किसी को छोटा मत समझो…ना स्त्री को ना बच्चों को…वो दिन हवा हुए जब स्त्री आपकी बपौती हुआ करती थी…अब वो एक खुला आसमान है…और उसकी अपनी एक परवाज है…और किसी मुगालते में मत रहना तुम….स्त्री की यह उड़ान अनंत भी हो सकती है….यहाँ तक कि तुम्हारी कल्पना के बाहर भी….इसीलिए तुम तो अपना काम करो जी…और इस्त्री को अपना काम करने दो…..उसकी पूरी आज़ादी के साथ……ठीक है ना…..??आगे इस बात का ध्यान रखना….!!!