तेरी जुदाई का दर्द
तेरी जुदाई का दर्द…… मेरे जीने की दुआ कर रहा हैं
तेरा गम रहे सलामत जो आज तक वफा कर रहा हैं
तेरी जुदाई का दर्द |
मुद्दतें गुज़री किसी हरजाई को चाहत की कसमें भूले
कोई टूट कर भी… मोहब्बत का हक अदा कर रहा हैं
वो वजह तक ना बता सका पुछने पर मुझे ठुकराने की
कोई उस की खातीर बरबाद… अपना जहाँ कर रहा हैं
वो बैठे हैं मेहंदी लगाए लाल जोड़े में सज सँवर कर
कोई तबाह….. अपने ख्वाबों का आशियाँ कर रहा हैं
मुद्दतें गुज़री तुम्हें उस बेवफा की राह तकते हुए मुसाफीर
उसे अरसा गुज़रा… तेरे साथ चाहत में दगा कर रहा हैं
कभी तेरी याद को समझाते हैं
शाम ढले तन्हाई में तेरी याद आए तो खुद को बहलाते हैं
कभी खुद से बतीयाते हैं… कभी तेरी याद को समझाते हैं
किसी को टुट कर चाहने वाले….. क्या खूब सज़ा पाते हैं
कभी दिन का चैन खोते हैं… कभी रात की नींदें गँवाते हैं
वो मुझे देख कर खुद में सिमट जाना उस का हया से
चाहत के ज़माने भला…. फिर कहाँ लौट कर आते हैं
कभी मुद्दतों बाद जाते हैं….. उस हरजाई के दर पर
फिर कुछ याद कर बिना दस्तक दिए ही लौट आते हैं
आशिकों का चलन भी अजीब होता हैं मुसाफीर