मेल जोल की दिलों में हरारत करे कोई

मेल जोल की दिलों में हरारत करे कोई


मेल-जोल की दिलों में हरारत करे कोई,
नफ़रत को मेरे मुल्क से ग़ारत करे कोई।

लोगों में प्रेम का ताना-बाना बिगड़ जाए,
शहर में ना कभी ऐसी शरारत करे कोई।

मेल जोल की दिलों में हरारत करे कोई

ये दावा है कम होगा अदालतों का बोझ,
शर्त है अमानत में ना ख़यानत करे कोई।

आदमी का आदमी से फ़र्क नहीं अच्छा,
जिस मज़हब की चाहे इबादत करे कोई।

शहर तो विकसित हैं और भी हो जाएंगे,
गांवों पर भी तो नज़रे-इनायत करे कोई।

जिसका भी जुर्म हो, मुकम्मल सज़ा हो,
नाम पूछ पूछ कर ना रियायत करे कोई।

हक़ की बात करता हूं ईमान सलामत है,
मुझसे ना सामने की हिमाकत करे कोई।

कितना ही बड़ा क़द हो चाहे आदमी का,
लाशों की शहर में ना तिजारत करें कोई।

ज़फ़र हर पल करता हूं मैं दुआ ख़ुदा से,
वो ग़द्दारी करे कोई ना बग़ावत करे कोई।

– ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

एफ-413,

कड़कड़डूमा कोर्ट,

दिल्ली -32,

zzafar08@gmail.com

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