मत जाओ प्रिये

मत जाओ प्रिये

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मत जाओ प्रिये
इस हाल में
मुझे छोड़कर
मेरे जीवन को
मत बिखेरो
कौन देखेगा
इन दो नन्हीं परियों को

प्रिये

जीना तुम
मुश्कान के साथ
मुश्काराना तेरा
कितना भाता है
तेरे वो गीत
जो बार बार
चिढ़ाने के लिये गाती थी
चाहे फिर गा लेना
बार-बार रूलाना चाहो तो
तुम निर्भीक होकर
सब कुछ कह लेना
लेकिन इस विरह हाल में
मत जाओ छोड़
मुझे अकेला

किससे करेंगी
ये दोनों तोतली बातें
किसे पुकारेंगी अम्मा
किसकी आँचल में
लोटेगीं
कहाँ मारेगी कुलेलें
कौन इनका रोना
चुप करायेगा
कौन देगा चाय बनाकार
कौन दिलायेगा
आइसक्रीम
मम्मी-मम्मी किसे कहेंगी
मत जाना
इन घने वन में
छोड़कर

गाँव मुहल्ले की लड़कियाँ
किसे कहेंगी भाभी चाची
किसके साथ
करेंगीं जी भर कर बातें
रह-रह कर उठने वाली
मन की तरंगों में
कौन रंग भरेगा
यह आँगन भी सूना हो जायेगा
इस बछड़े को
कौन डालेगा भूसा
कौन पिलायेगा पानी
यह कुआँ भी
क्या कहेगा
कौन भरेगा मेरा पानी
रूक जा प्रिये
अभी तुम्हें जी भर जीना है.

यह घर कौन सजायेगा
कोना का जाला साफ करेगा कौन
कौने लीपे पोतेगा आँगन
मेरा कुछ भी मत करना
कर लूँगा साफ अपने कपड़े
खुद ले लूँगा थाली में खाना
नहीं कहूँगा
लाने को पानी
जी भर कर लेना
श्रृंगार तुम
रहना मेरी डेहरी पर तुम
नहीं तो
जीतेजी मर जाऊँगा
मत जाओ प्रिये

यह रचना जयचंद प्रजापति कक्कू जी द्वारा लिखी गयी है . आप कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं . संपर्क सूत्र – कवि जयचन्द प्रजापति ‘कक्कू’ जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद ,मो.07880438226 . ब्लॉग..kavitapraja.blogspot.com

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