असम्भव कह कर मत टालो

असम्भव कह कर मत टालो 

असम्भव, कहकर मत टालो
आकांक्षा, आज जगी है
सघन हो रहे जीवन वृत
उसे तोडूं, आन लगी है ;
मुझे खुशी चाहिए, हाँ आनन्द
और जीवन का नया उन्माद
कुछ ऐसा ही तत्व को पा लूँ
मेरे पागलपन सा ही प्रमाद ;

असम्भव कह कर मत टालो

तटस्थ रहा, कुछ कर न सका
यह कठिन प्रश्न है, अपमान
मैं उस पार उतर जाऊंगा
करूँगा, सम्यक फिर सन्धान
देखो, तर्क लिए बैठा है
हास्य, उद्धारक का हार
पर मैं धधकती इच्छाओं से
करूँ सर्वोच्च, शक्ति प्रहार
मचलेगा मेरा स्वप्न द्वीप
प्रफुलित इच्छा, अनन्त छोर
काली नियति विचलित होगा
प्रत्यंचा खींच, दिग दिगंत जोर
न करूँ आत्मसमर्पण,विश्व
न बढ़ते कदम कहीं रुक जाए
मानव वृन्द के कल्याण हित
पत्थर सा सीना टूट जाए
     


~सुरेन्द्र प्रजापति

You May Also Like