ईश्वर बँट गया है / इतिश्री सिंह की कविता

ईश्वर बँट गया है आज
यह अल्लाह की इबादत या राम की आराधना की वजह से नहीं बँटा
यह तो बँटा है लोगों की ख्वाहिशों के नाम पर
मैंने देखा था उसे कल सड़क पर
नुमाइश कर रहा था लोगों के भरोसे को मूरत में पिरोये
और खरीदारों की भीड़ इस तरह लगी थी
जैसे गुड़ पाने की आश में लगती है चीटिंयों की
या फिर किसी दुकान पर लगे हुए सेल में आते हैं ग्राहक
मुरादों के नाम पर चढ़ाई जा रही थी श्रद्धा की बलि
बहाये जा रहे थे दूध मंशा पूरी होने की लालच में
ताकी दौड़ कर आए हड्डियों में भूख की खाल सजाए बच्चे
जैसे झुंड में आती है कुत्तों की फौज
किसी ने फेंका प्रसाद का टुकड़ा
वे इस तरह जश्न मनाने लगे
जैसे मिल गए हों उन्हें ईश्वर


यह रचना इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . फिलहाल वह हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं  लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.

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