एक बार उस दिन

दूर कहीं तस्वीर बनाता हूँ

किसी की तस्वीर 
मेरी आंखों में जब बनती है 
मैं चौंधियां जाता हूं 
घूप अंधेरे में 
अचानक आई हुई 
रोशनी की तरह 
वक्त का दायरा जब बदलता है 
दिन और रात में 
जहां मैं कैद हूं 
अपने ख्वाबों को समेटे 
मेरे अतीत में कोई झांकता है 
वहां से मुझे कुछ 
सुनाई दे रहा है 
जैसे सन्नाटे में कहीं 
पानी की बूंद 
टप टप टप टप टप…

एक बार उस दिन

गहरी रातों में तुम नहीं आना 
बिखरे सन्नाटों में तुम नहीं आना 

एक बार उस दिन

शहर,गलियों,गांव में तुम नहीं आना 
घर के आंगन में तुम नहीं आना
जहां हो सके तुम बता देना
शाम होने पर
एक चिराग होगा
एक तारीख होगी
न इरादे होंगे
न होंगे हमारी बीच की तकरीरें
बस पल भर के लिए
एक छत होगा
न जुबां होंगे
न इसके शब्द होंगे
बस बैठकर एक-दूसरे के सामने
बातें करेंगी हमारी आंखें
और कानों में गुंजेगी हमारे
मद्धम-मद्धम सुरमयी
जगजीत सिंह की ग़ज़लें
बोलो आओगे न !


– राहुलदेव गौतम

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