एहसास का चादर

एहसास का चादर

लोग कहते है
शीशा सच दिखाता है।
मैं आज तक वो,
आईना ढूँढ रहा हूँ।

एक मछली की तरह हो गई है,
जिन्दगी की कश्मकश..
जीवन भी पानी
आँसु भी पानी।

एहसास का चादर
एहसास का चादर

जीवन को अगर समझना था तो,
इसमें उलझना शायद
बहुत जरूरी था।

तुम आईना फेंक कर..
तो देखो,
तुम्हें दिल के टूकड़े
गिनने नही पड़ेगे।

एहसास का चादर
कितना कोरा निकला।
वक्त और यादों का दाग,
कितना गहरा हो गया था।
               

आँखों में शाम

आज बिना कोट के,
सर्दी में घर से बाहर आ गये।
गरीबो की सर्दी महसूस करने।

कचरों की ढेर पर..
सिर्फ कचरे नही होते है साहब!
कितने बच्चों की,
जिन्दगीयाँ बिखरी होती है।

दिन भर सच कहता हूँ..
लेकिन हर शाम,
एक झूठ भारी हो जाता है।
जब किसी से कहता हूँ..
सूरज देखो पश्चिम की ओर चला।

अब बच्चों में ताकत,
संस्कारो से नही मिलता है।
अब तो ताकत,
पाँच रूपये के बोनबीटा के,
पैकेट में बिकता है।

मेरे सामने ही दुनिया इल्मदार हो गई..
मैं अभी तक,
उसके जैसा समझदार नही हो पाया।

– राहुलदेव गौतम

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