ओथैलो के यागो और महाभारत के शकुनि

ओथैलो  के यागो और महाभारत के शकुनि के चरित्र का तुलनात्मक अध्ययन  

शेक्सपियर ने एक जगह बहुत ही सुंदर बात कही है कि लंबे समय की आपस की नोकझोंक संबंधों में खटास पैदा कर देती है।शौक जब असीमित और बेपरवाह होकर  लंपट हो जाती है तब ईर्ष्या और जलन में बदल जाती है तो परिणाम अत्यधिक भयंकर होते हैं चाहे वह जयचंद और पृथ्वीराज के बीच का वैमनस्य हो, कौरवों और पांडवों के बीच का वैमनस्य हो ,और मित्रों    के आपस की द्रोह की   बात हो ,जैसे राजा द्रुपद गुरु  एवम  गुरू  द्रोणाचार्य
आपस की ईर्ष्या और जलन के कारण   कटुता तक पहुंच जाती है  के परिवार और  व्यक्ति खून के प्यासे हो जाते हैं।  

ओथैलो के यागो और महाभारत के शकुनि
 शकुनि

फ्रान्सिस बेकन ने , “ऑफ रिवेंज” नाम के अपने  एक निबंध में यह कहा है : “बदला भी एक तरह से जंगली न्याय हैं “ . लेकिन जानकार लोग कहते हैं कि अपने शत्रु को  एहसान से ही मारिए उसी पर एक शेर इस तरह है कि नादान दोस्त से दाना दुश्मन अच्छा शकुनि की पृष्ठभूमि में यही बातें थी  किसी ने चुगली  की थी धृतराष्ट्र   से ,संदेह का यह कहकर जहर बोया था कि गांधारी तो पहले से ही विधवा है, जबकि पूरी वास्तविकता कुछ और थी और फल स्वरुप  कान्धार के ऊपर जो चढ़ाई की  और  गान्धारी के  प्रिय जन  बंदी बना लिएऔर   बंदियों का वध तो किया नहीं जा सकताऔर जो एक मुट्ठी चावल में    गुजर  करने के लिए , बेवश प्रति अपने परिवारी जनों को शकुनि ने मरते हुए देखा तभी उसने यह प्रण किया था कि वह भी इस  कुरु वंश का नाश करेगा दूसरे जो चौसर की गोटियां थी ,किंबदंती अनुसार  उसके पिता की रीढ़ की हड्डियों से निर्मित थे, इच्छा के अनुसार ही खेल  का  पासा  पड़ता था। आपसी बदले  की यही मानसिकता मानसिंह और महाराणा प्रताप  और नंद वंश और चाणक्य  में देखने को मिलती है। 

जो लोग दूसरों की खिल्ली उड़ाते हैं ,दूसरों का मजाक बनाते हैं ,अकारण ही पीठ पीछे अथवा सामने नीचा दिखाने की ,अपमानित करने की कोशिश करते हैं अथवा  चीप -पापुलैरिटी के द्वारा या घटिया सोच के द्वारा दूसरों के सामने  सामने अच्छा बनने की  कोशिश करते हैं  और  किसी को सहयोग नहीं करते और ढोंग रचाते हैं उनको  अपनी जबान और कार्य में सुधार लाकर बातचीत करनी चाहिए बात नहीं करनी चाहिए  क्योंकि मित्रता एक ऐसी गांठ है, जिसके  खुलने पर उसी प्रिय मित्र को परम  शत्रु बनने में देर नहीं  लगती। 

यागो परले दर्जे का कलाबाज कलाकार है.  उसकी कोई दुश्मनी नहीं ओथैलो से लेकिन वह अकारण ही अपनी  ढीठ और  घोर  लापरवाही  के कारण एक  नहीं क ई  घर बरबादकरना चाहता है लेकिन वह प्रदर्शित ऐसा करता है कि जैसे  वह सही आदमी है, ईमानदार आदमी है ,वस्तुतः वह घिनौना  इंसान है ,जो कंज्यूमेट हाइपोक्राइट है  
लेकिन बहुत ही जबरदस्त कोटेशन, यागो ओथैलो में कहता है :-

“हे देवा   ,
किसी स्त्री अथवा पुरुष के लिए
उसका नाम ही, नाम  की साख ही,
उसके जीवन का 
तात्कालिक मूल्यवान गहना है.
यदि कोई मेरा बटुआ चुराता है
तो  कोई  बात  नहीं
यह मेरे हाथ का मैल है, 

पर यदि कोई मेरे नाम पर कीचड़ उछालता है तो सबसे मूल्यवान  निधि पर डाका डालता है, जो कि उसके पास नहीं है और इस तरह मुझे निर्धन बनाना चाहता है.”

यागो इस तरह छल पूर्ण,  कपट पूर्ण कथन से  केसिओ  और ओथैलो  के बीच दीवार खड़ी करता है और वही दीवार डैस्डेमोना और ओथेलो, पति -पत्नी के बीच में उत्पन्न कर देता है. यहां वह चौसर के कैंटरबरी टेल्स के पार्डनर को भी पीछे छोड़ देता है। 

पात्र तुलना

यागो                                  शकुनि


काल्पनिक                          जीवित  व्यक्ति
दरबारी                               रिश्तेदार
परम धूर्त                             बदले  का  प्रण किया
प्रयोजन :                            जीत  निश्चित होते भी वंश  नष्ट करना
अकारण           
संबंधो को
नष्ट करना

मानव स्वभाव अत्यंत विचित्र है. परिस्थितियों, कारणों और स्वभाव के अनुसार इस में परिवर्तन आता रहता है.  सच्ची मित्रता के लिए बात को जल्दबाजी में नहीं  बल्कि  पूर्णता में समझ कर ही,  मित्रता के अटरीब्यूट्स को अपनाना चाहिए ताकि नाश और सर्वनाश का बीज संदेह के रूप में कोई बो न  सके। 

संपर्क  – क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/17  शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001
मो  9411858774    ( kpsharma05@gmail.com )

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