सुगंधा | सुखमय वैवाहिक जीवन की कहानी

सुगंधा

माधव एक ख्यात नाम बैरिस्टर थे और दिल्ली में तीसहजारी कोर्ट में प्रेक्टिस करते थे। वह अपने वकील साथियों में ही नहीं अपितु अपने मुविक्कलों में भी प्रशंसा के पात्र थे। बैरिस्टर साहब ने अपने जीवन काल में कोई भी मुकदमा हारा नहीं था, विजय श्री तो उनके गले में विजय माला डालने को सदा आतुर रहती थी। उनका सीधा और सरल स्वभाव ही उनका परिचय था। इसके अतिरिक्त उनकी एक और विशेषता यह भी थी कि वह किसी भी गरीब का मुकदमा बिना पैसे लिए लड़ते थे और उसे विजय भी प्राप्त होती थी।
   
बैरिस्टर साहब ने नई दिल्ली में एक पाश कालोनी में फ्लैट ले लिया था और उसी में अपनी धर्मपत्नी श्रीमती राजकुमारी के साथ सुख पूर्वक रहते थे। उन्हें फूलों से बहुत प्यार और शौक़ था इसीलिए फ्लैट में गुलाब और गैंदा की विभिन्न किस्म गमलों में लगा रखी थी जिनसे पूरा वातावरण सुगंधित और सुवासित रहता था। किन्तु फूलों की यह सुगंध और सुवास उनके जीवन की बगिया को महकाने में  अपने को असमर्थ पा रही थी।
     
बैरिस्टर साहब के जीवन की बगिया को ऐसे फूल की तलाश थी जो उसे अपनी मोहक सुगंध से सुवासित कर रिक्तता को भर सके। ईश्वर ने अभी तक कोई भी पुष्प गुच्छ उनकी झोली में नहीं डाला था। बैरिस्टर साहब और उनकी धर्मपत्नी दोनों ने इसे ईश्वर की मर्जी मान स्वीकार लिया था।
     
एक दिन बैरिस्टर साहब कोर्ट में किसी मुकदमे में बहस कर रहे थे कि अचानक उनके नौकर रामू काका का फोन आया कि उनकी धर्मपत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। यह सुनकर उन्होंने जज साहब से अपनी समस्या बताते हुए बीच में ही पैरवी की कारवाई रोकने का निवेदन किया और पैरवी की तारीख को भी आगे बढ़ाने के लिए अनुरोध किया। जज साहब ने बैरिस्टर साहब का अनुरोध स्वीकार कर लिया तथा मुकदमा आगे की तारीख तक बढ़ा दिया।
      
बैरिस्टर साहब तुरंत अपनी कार से घर के लिए रवाना हो गए और वहां पहुंच कर शीघ्र ही अपनी धर्मपत्नी को कार में बिठाकर हास्पिटल पहुंच गए। उनकी धर्मपत्नी की समस्त जांच की गई और फीमेल वार्ड में भर्ती कर लिया गया। रिपोर्ट नार्मल होने से बैरिस्टर साहब की चिंता दूर हो गई और वह अपने फ्लैट पर लौट आए। बैरिस्टर साहब ने अभी अपने वस्त्र उतारे भी नहीं कि फोन की घंटी घन घना उठी, मानो उनसे कुछ कहना चाहती थी। बैरिस्टर साहब ने फोन उठाया और दूसरी ओर से एक मधुर ध्वनि सुनाई पड़ी जो हास्पिटल से किसी नर्स की थी। नर्स ने उन्हें शुभकामनाएं दी और बताया कि उनकी धर्मपत्नी ने एक फूल सी बिटिया को जन्म दिया है।
यह सुनकर बैरिस्टर साहब ने वापस वस्त्र धारण किए और कार में बैठ कर हास्पिटल आ पहुंचे। अपनी फूल सी बिटिया को देखकर उन्हें लगा कि जैसे उनकी जीवन बगिया का सूनापन दूर हो गया हो और बगिया में चारों ओर फूलों की सुगंध फैल गई हो या किसी चातक को पावस की एक बूंद मिल गई हो। बैरिस्टर साहब ने अपनी खुशी में फीमेल वार्ड के नर्सिंग स्टाफ को भी शामिल कर लिया था और मिठाई मंगाकर पूरे स्टाफ को बांटी।
 
सुगंधा | सुखमय वैवाहिक जीवन की कहानी

दो दिन बाद उनकी धर्मपत्नी को हास्पिटल से डिस्चार्ज किया जाना था।आज बैरिस्टर साहब के फ्लैट का गेंदा, गुलाब के फूलों की माला से नई दुल्हन की तरह श्रृंगार किया जा रहा था और  कालोनी के प्रवेश द्वार पर शहनाई वादक बैठे थे जिनकी शहनाई से मधुर स्वर लहरियां निकल कर पूरे वातावरण को संगीत मय बना रही थी। प्रवेश द्वार से बैरिस्टर साहब के फ्लैट तक गुलाब की पंखुड़ियों से मार्ग को सजाया गया था। आज बैरिस्टर साहब अपनी धर्मपत्नी श्रीमती राजकुमारी को हास्पिटल से डिस्चार्ज करा कर ला रहे थे। उसी के स्वागत में ये तैयारीयां की गई थी। बैरिस्टर साहब की कार जैसे ही मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंची , शहनाई की मधुर ध्वनि गूंज उठी। बैरिस्टर साहब की कार अब फ्लैट तक पहुंच गई थी और जैसे ही कार रुकी तो कालोनी की महिलाओं ने राजकुमारी और उसकी नवजात कन्या को आहिस्ता से कार से उतारा। फ्लैट के द्वार पर मंगलाचार और आरती से उसका स्वागत किया गया। इसके बाद उन दोनों को एक अलग कक्ष में ले जाया गया जहां उनके विश्राम करने का इंतजाम किया गया था।बैरिस्टर साहब ने अपनी नवजात कन्या का नाम सुगंधा रखा था क्योंकि आज उनके मन की बगिया इस नन्हे से पुष्प की सुगंध से सुवासित हो उठी थी। 

    
सुगंधा दूज के चांद की तरह बढ़ने लगी थी। अब उसके लिए बैरिस्टर साहब नए नए महंगे खिलौने लेकर आने लगे। सुगंधा के मासूम चेहरे पर छाया मधुर हास्य ऐसा प्रतीत होता था कि मानों कुमुद पति की चंद्रिका चेहरे पर छिटक आई हो। धीरे धीरे सुगंधा के मुख में चावल सी श्वेत दंत पंक्तियां उभरने लगी थी जिन्हें देखकर लगता था मानो किसी सुंदर सीप में श्वेत मुक्तावलि बंद हो गई हो। सुगंधा की बाल-सुलभ अठखेलियां बैरिस्टर साहब और उनकी धर्मपत्नी दोनों के मन को हर्षित करती थी।
     
सुगंधा अब पांच वर्ष की हो चुकी थी, बैरिस्टर साहब ने उसकी शिक्षा के लिए उसे दिल्ली की एक प्रसिद्ध मिशनरी स्कूल में दाखिला दिलवा दिया था। सुगंधा ने अपनी तीव्र स्मरण शक्ति के बल पर अपनी प्रारम्भिक शिक्षा समय से पूर्व ही सफलतापूर्वक पूर्ण कर ली थी। अब आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए उसे एक प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया। यहां भी उसने शीघ्र ही अपनी सफलता के परचम गाड़ दिए और अपनी स्मरण शक्ति  और प्रतिभा का लोहा मनवाया। उसके माता-पिता को तो सुगंधा की प्रतिभा ने अपना दास ही बना लिया था। 
    
सुगंधा ने अब कालेज में प्रवेश ले लिया था और यहां भी वह अपनी प्रतिभा दिखाते हुए पूरे कालेज में शिखर पर रही। कालोनी में उसकी प्रतिभा पुष्पों की सुगंधि की भांति फैल गई। अब सुगंधा का एक ही लक्ष्य था कि वह आरएएस अफसर बनकर देश की सेवा करे।
सुगंधा अब अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की तैयारी में जुट गई थी और जब परीक्षा परिणाम घोषित हुआ तो सुगंधा पूरे दिल्ली स्टेट में शिखर पर रही थी। अब उसे अपनी नियुक्ति की प्रतीक्षा थी। बैरिस्टर साहब सुगंधा के लिए अच्छा परिवार देखने में लग गए थे। एक बार उन्हें बार कौंसिल की बैठक में जयपुर जाना पड़ा वहां उन्हें अपने साथ ही वकालत करने वाले मित्र कामतानाथ पाठक मिल गये थे। दोनों मित्र काफ़ी पीने के लिए एक काफ़ी बार में जाकर बैठ गये और बातों ही बातों में बैरिस्टर साहब ने अपनी बिटिया के रिश्ते की बात छेड़ दी। कहने लगे कि उन्हें अपनी बिटिया के बराबर की योग्यता का लड़का चाहिए क्योंकि उनकी बिटिया सुगंधा अब आरएएस अफसर बनने वाली है।
      
यह सुनकर कामतानाथ बोले कि मेरा बेटा रमन है जो पास ही तहसील में तहसीलदार है, आप चाहें तो उसे देखलें। यह कहकर उन्होंने रमन का फोटो माधव बैरिस्टर साहब को व्हाट्सएप कर दिया। बैरिस्टर साहब बैठक में शामिल हो कर दिल्ली लौट आए थे। उन्होंने रमन का फोटो अपनी पत्नी राजकुमारी और सुगंधा दोनों को दिखलाया। उनसे मौन स्वीकृति मिलते ही बैरिस्टर साहब ने अपनी बेटी सुगंधा का फोटो कामतानाथ को व्हाट्सएप कर दिया। कुछ दिन बाद कामतानाथ पाठक के यहां से सुगंधा को पसंद करने का समाचार मिला।
      
रमन और सुगंधा का विवाह हो गया और बैरिस्टर साहब ने सुगंधा के विवाह में दिल खोलकर पैसे खर्च किए। कामतानाथ के दहेज़ न मांगे जाने पर भी बैरिस्टर साहब ने खूब सामान दिया। सुगंधा अपने ससुराल के लिए विदा हो चुकी थी। बैरिस्टर साहब ने उसे नम आंखों से विदाई दी। दूर कहीं गाना बज रहा था ” बाबुल की दुआएं लेती जा ,जा तुझको सुखी संसार मिले “
    
सुगंधा का उसके ससुराल में दिल खोलकर स्वागत किया गया। उसकी सास मीनाक्षी ने उसकी बलैयां लेते हुए कहा कि आज मुझे बहू के साथ बेटी भी मिल गई है। 
   
सुगंधा अपने पति के साथ सुख से जीवन व्यतीत कर रही थी। उसे ससुराल में किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था। एक दिन सुगंधा शीघ्र ही उठ गई थी और से। स्नान करने बाथरूम में प्रवेश करने वाली थी कि रमन का मोबाइल बज उठा। रमन उस समय नींद में था इसलिए सुगंधा ने  ही मोबाइल उठाया। किसी काजल अग्रवाल का फोन था। सुगंधा ने हैलो कहा तो दूसरी ओर से उसका परिचय पूछा गया। सुगंधा ने बताया कि वह कामतानाथ पाठक के यहां काम करने वाली बाई है और रमन बाबू ने अभी बिस्तर नहीं छोड़ा है। काजल अग्रवाल ने कहा कि रमन बाबू को बोल देना कि वह मुझसे आज शाम को अशोका काफ़ी हाउस में आकर मिले। अब तो रमन के मोबाइल पर काजल के रोज फोन आने लगे थे। अब तो कभी काफ़ी हाउस में, कभी पब्लिक पार्क में मिलने के लिए फोन आने लगे थे।
   
सुगंधा को अपने पति के चरित्र को लेकर संदेह होने लगा था। रमन आजकल घर देरी से लौटने लगा था। अब सुगंधा का संदेह यकीन में बदल गया था। एक दिन उसने अपनी कालेज की सहेली कावेरी के साथ मिलकर रमन को सही रास्ता दिखाने की योजना बनाई। उसकी सहेली कावेरी उन दिनों जयपुर अपने मामाजी के आई हुई थी और उसे  बाजार में मिल गई थी जब सुगंधा किसी कार्यवश बाजार गई थी। सुगंधा ने अपनी सहेली को अपने पति के विषय में सब कुछ बता दिया था कि उनके काजल अग्रवाल नाम की युवती से संबंध बने हुए हैं। 
     
उस दिन काजल अग्रवाल का फोन आया , उस समय रमन सो रहा था। सुगंधा को फोन से ही पता चला कि आज दोनो अशोका काफ़ी बार में मिलने वाले हैं। इसलिए उसने सहेली को वहां आने को कहा और स्वयं भी पहुंच गई। कुछ देर बाद रमन बाबू भी उस काफ़ी हाउस में आकर काजल अग्रवाल के साथ एक कुर्सी पर बैठ गए थे और दोनों के लिए कोल्ड ड्रिंक्स का आर्डर दे दिया था। सुगंधा की सहेली कावेरी उस समय पुरुष वेश में थी और सुगंधा से बातें कर रही थी कि किसी बात को सुनकर सुगंधा खिलखिला कर हंसने लगी। रमन बाबू सुगंधा की हंसी पहचान गए थे और उन्होंने देखा कि सुगंधा किसी पर पुरुष के साथ घुल मिल कर बातें कर रही थी। वह पुरुष भी सुगंधा को बार-बार छू रहा था। यह सब रमन बाबू से सहा नहीं गया और वह जहां सुगंधा बैठी हुई थी , पहुंच गए। सुगंधा को फटकारते हुए कहा कि बड़ी बेशर्म हो जो पर पुरुष के साथ प्रेमालाप में निमग्न हो। लोक लाज की भी तुम्हें जरा भी चिंता नहीं है।
यह सुनकर सुगंधा की सहेली जो उस समय पुरुष वेश में थी, रमन बाबू को फटकारते हुए बोली कि बेशर्म तो आप हैं जो अपनी पत्नी के होते हुए भी पर स्त्री से संबंध बनाये हुए हैं। ” रमन बाबू बाहरी स्त्री का सौन्दर्य तो लोहे पर सोने का मुलम्मा चढ़ा जैसा है जो बढ़ती उम्र के साथ ही ढलने लगता है जबकि गृह लक्ष्मी का सौन्दर्य शुद्ध स्वर्ण की आभा सा होता है जिसकी आभा अक्षुण्ण बनी रहती है और बढ़ती उम्र के साथ ही उसकी आभा और भी  बढ़ती है। ऐसी स्त्रियां अपने मृग मरीचिका के सौन्दर्य के रूप जाल में फंसाकर उनसे प्यार करने का झूठा नाटक कर, धन ऐंठती हैं जबकि गृह लक्ष्मी अपने सौंदर्य से पति को आकर्षित कर उनसे प्यार पाना चाहती हैं। ” 
इतना सब सुन कर रमन बाबू की आंखे खुल गई और वह सुगंधा से क्षमा मांगने लगे। इसी बीच काजल अग्रवाल वहां से रफ़ूचक्कर हो चुकी थी। सुगंधा ने रमन बाबू को बताया कि यह कोई पर पुरुष नहीं है, यह तो मेरी सहेली कावेरी है जो किसी कारण से विवाह में शामिल नहीं हो पाई थी। रमन बाबू ने कावेरी से क्षमा मांगते हुए कहा कि आज तुमने मेरी आंखें खोल दीं हैं। इसके बाद कावेरी उन दोनों से अनुमति लेकर अपने मामा जी के यहां चली गई।
कुछ दिन बाद सुगंधा का भी नियुक्ति पत्र आ गया था और उसे उसी तहसील में एसडीएम बना दिया गया था जहां रमन बाबू तहसीलदार थे। अब रमन बाबू के जीवन में परिवर्तन आ चुका था और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो गया था।
– विनय शर्मा

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