स्त्री की नियति : हार्डी और अंग्रेजी उपन्यास

स्त्री की नियति : हार्डी और अंग्रेजी उपन्यास 
टॉमस हार्डी 
अंग्रेजी उपन्यास करीब 200 साल पुराना है . “रोबिंसन क्रूसो’ से इसका प्रारंभ मान सकते हैं.यह कथा व किस्सा गोई की एक विधा है जिसमें वार्तालाप ही व्यक्तित्व और चरित्र उजागर करता है . 
 1840 के आसपास , जब यह प्रारंभिक अवस्था में था , तब विक्टोरया का शासन था . सर्कुलटिन्ग लाइब्रेरी का प्रचलन था . स्त्रियों के पात्र प्राय: पुरुष ही करते थे .यह समय भौगोलिक विस्तार , साइंटिफिक खोज और नए रहन सहन के लिए भी जाना गया है . जिसमें धार्मिक विचार के खिलाफ कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है , से काफी निराशा व्याप्त हो गई थी . टेनीसन ने तो कविता डोवर बीच में इसको लिखा भी है .

टेस दर्बी फील्द से टेस उबर्विलेस बनने की गथा बहुत दुखभरीहै . प्रेमचंद के गोदान के लछमा के तरह जिसे दुनिया की चिंता है लेकिन किसी को भी उसकी चिंता नहीं . टेस शब्द की व्युत्पत्ति टेरेसा से है जो संत प्रवृत्ति के व्यक्तियों के लिए है . यह उसी का संक्षेपण है . एक गरीब परिवार की कन्या ( लेकिन ज़मींदार वंश से ) जैक 8 बच्चों के साथ लंदन से दूर गांव मास्फेट में रहता है . टेस को वह धन प्राप्ति के लिए लंदन उस परिवार के पास जाने केलिए उकसाता है जिसके वे वंशज हैं ,लेकिन इस के बाद उस भोली कन्या का पतन शुरू हो जाता है . . यह कहाँ एक भोलीभाली लडकी और कहां एक लम्पट छोकरा वैसे तो हार्डी को फेट और चांस के लिए जाना जाता है .पूरेविश्व की बात करें तो फिर चाहे वह गोर्की की “ मॉ “ हो , अमेरिकी उपन्यास “ स्कारलेट लैटर” हो , रेणू की मैला आंचल या फिर प्रेम चंद ( गोदान की धनियां ) की “ कफन “ किताब , सभी महिला नायिकाएं हमें बेकली और छटपटाहट लिए हुए मिलती हैं डॉ राम विलास शर्मा के अनुसार “सेवा सदन” की मुख्य विचारणीय बात नारी की पराधीनता है . मैला आंचल में तो बीमार स्त्री के फोडे तक को डाक्टर को पति नहीं दिखाना चाहता चूंकि वह नहीं चाहता कोई उसे देखे . 

क्षेत्रपाल शर्मा
 हार्डी ने भी अपने समय के श्रेष्ठ और सशक्त उपन्यास लिखे हैं वे वेसेक्स उपन्यासों और फेट चांस और नैराश्य के लिए विख्यात हैं

स्त्री की समस्याओं को एक स्त्री सुलभ नज़र से देखा जाए तो वह अर्थवान रहेगा.

प्रेम और सेक्स पर इरा त्रिवेदी का उपन्यास “ 21 वीं शती में शादी और यौन संबंध “ इंडिया इन लव पर अमर उजाला के शब्दिता पन्ने पर 27.10.14 को ओम गुप्ता की समीक्षा पृ 17 पर पढने लायक है . “ कीचड कहे जाने वाले इस जोहड में हर भाषा के लेखक ने डुबकी लगाई है उनका यह मत है कि निष्कर्ष से यह किताब मनुष्य के मनुष्य बने रहने की वकालत करती है और किसी ज़िंदगी की सबसे बडी जरूरत की व्याख्या . 

 इस उपन्यास पर  लिखते वक़्त मुझे कवि नवीन जी की वह पंक्ति याद आ गई कि  “ कवि कुछ एसी तान सुना ,
जिससे उथल पुथल मच जाए “
सटीक लगा .

यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी हैआप पूर्व में सहायक निदेशक (राजभाषा) ईएसआईसी में कार्यरत थेआप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध हैआपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैआकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके  आलेख प्रसारित हो चुके है . 

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