औरत बनायी जाती है…

औरत बनायी जाती है…

इतना सरल नही है औरत पे कविता करना,
औरत जो पैदा नही होती 
बल्कि बनायी जाती है,
बनाया जाता ह उसके 
श्रद्धा मिश्रा
श्रद्धा मिश्रा
अंगों को कोमल,
कुछ भी कोमल होता नही है लेकिन,
इमारतों के लिए ईंट उठाने में
जलते तवे पे रोटी बनाने में,
उनकी कोमलता को 
कोई मोलता नही है।
बनाया जाता है उसे देवी
जिसका सीधा सा अर्थ
यही होता है कि
जो नही है सामान्य मनुष्य,
जिसके होने से घर स्वर्ग हो जाता है,
फिर भी उसका कोई 
अपना घर नही होता।
देवी जो दे ही र 
बदले में न ले कुछ भी।।।
सचमुच सिर्फ एक ही दिन में
नही जाना जा सकता उसे,
जो खुद ही खुद को नही जानती,
औरत खुद को कुछ भी नही मानती,
वो बाप के लिए बोझ,
पति के लिए दासी,
बच्चों के लिए
हर बात मनवाने का साधन
होती है,
ये सब बातें उसे बचपन से ही
सिखायी जाती है।
सच है औरत पैदा नही होती 
बनायी जाती है।।।
रचनाकार परिचय 
श्रद्धा मिश्रा
शिक्षा-जे०आर०एफ(हिंदी साहित्य)
वर्तमान-डिग्री कॉलेज में कार्यरत
पता-शान्तिपुरम,फाफामऊ, इलाहाबाद

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