लाल सिग्नल | हिंदी कहानी

लाल सिग्नल 

  
मिता को ऑफिस के लिए देर हो रही थी। सुबह से ही बहुत ही हड़बड़ी में थी। आज ऑफिस में बहुत जरूरी मीटिंग थी। ड्राइवर आकर खड़ा था। अमिता ने अपना पर्स और कुछ फाइलें उठाई और गाड़ी में जाकर बैठ गई। गाड़ी थोड़ी दूर ही गई थी की रुक गई अमिता की नजर अपनी फाइल पर ही थी। गाड़ी रुकने से बिना नजर उठाये ही उसने ड्राइवर से पूछा क्या हुआ ? ड्राइवर ने कहा मैम लाल सिग्नल हो गया है। अमिता ने गाड़ी का शीशा थोड़ा नीचे किया, देखा तो ट्रैफिक बहुत था तभी स्कूटर की किक की लगातार आती आवाज़ में उसका ध्यान खींचा,उसने देखा की एक 10 साल की लड़की स्कूल ड्रेस में खड़ी गुस्सा कर रही है ,और कह रही है “पापा आप ही खटारा स्कूटर के चक्कर में मुझे स्कूल के लिए देर हो जाएगी ” , और उसके पापा  लगातार किक मारे जा रहे है और साथ में कहते भी जा रहे है ” बेटा  बस अभी स्टार्ट हो जाएगी तुम्हें देर नहीं होगी” .
                                       
यह सब देखकर अमिता को अपना समय याद आ गया। की जब वह 9 से 10 साल की इस शहर में नयी आई थी, और जब उसे स्कूल के लिए देर हो जाती थी तो उसके पापा भी अपनी स्कूटर निकालते और किक मारना शुरू करते,‌ और वह स्टार्ट नहीं होती तो वो गुस्से में पैदल ही स्कूल चली जाती थी, या कभी स्कूल से लेने जाते तो लाल बत्ती होने पर रोकते फिर तो वह स्टार्ट होने का नाम ही नहीं लेती थी। सारी गाड़ियां चली जाती, और पापा किक ही मारते रहते थे। यह सब सोच कर वह  हंसने लगी।
                                       
आज उसके पास ईश्वर की कृपा से सब कुछ है। उसे याद आता है कि तीसरी कक्षा पास करके कक्षा चार में उसे यहां दाखिला लिया था ।नया शहर नया स्कूल नयी अध्यापिकाएं नये दोस्त यहां तक की घर का माहौल भी नया था क्योंकि अभी तक वह बाबा दादी बुआ चाचा सबके साथ थी लेकिन यहां केवल मम्मी पापा थे। शुरू में तो अमिता छुप-छुप कर रोती थी।उसे सबकी बहुत याद आती थी उसे याद आता है कि पहली बार कंप्यूटर के टेस्ट में उसे 10 में से 2 नंबर मिले थे पापा से खूब डांट पड़ी थी। तब केवल मम्मी ही भी जिन्होंने बचाया था। उस समय बाबा की बहुत याद आयी थी। बाबा हर समस्या के समाधान थे। मुंह से कुछ कहते ही बाबा सारी इच्छाएं पूरी कर देते थे। चाहे चॉकलेट हो कोल्डड्रिंक हो कोई खिलौना हो मेरे लिए बाबा सेन्टाक्लाज से कम नहीं थे।हां मम्मी भी कभी-कभी ₹2 या ₹5 की चॉकलेट दिला देती थी। तो मुझे आश्चर्य होता था, पापा भी कभी-कभी ला देते थे ,क्योंकि अभी तक तो बाबा ही दिलाते थे।                                 
पापा से मेरी मुलाकात इतवार को ही हो पाती थी क्योंकि पापा जब ऑफिस से आते थे, तब तक मैं सो जाती थी। और जब मैं सुबह स्कूल जाती थी तब तक वह सोते रहते थे।शुरू में उन्हें ₹3000 प्रतिमाह मिलता था ,₹1000 तो मेरी फीस ही थी। सारा खर्चा मम्मी को बहुत कम पैसे में चलाना पड़ता था। मैं किसी चीज के लिए भी जिद नहीं करती थी। मैं बहुत अच्छी बच्ची थी, ऐसा मम्मी  बताती थी, मैं इकलौती संतान थी ,मम्मी पापा बहुत मेहनत करते थे। मुझे अच्छी शिक्षा देने के लिए इसी तरह चौथी और पांचवी एक ही स्कूल में निकल गया, इन दो सालों में दो बार रेस्टोरेंट गए थे मम्मी पापा की शादी की सालगिरह पर वह भी मेरी वजह से मैं अक्सर कहती थी, की सौंफ खाने कब चलेंगे मतलब रेस्टोरेंट। मेरा बर्थडे तो घर में ही मन जाता था।छठी कक्षा में मेरा दाखिला शहर के सबसे बड़े स्कूल में हुआ था। वह भी मम्मी की जान पहचान से 40% फीस माफ हो गई थी ,और पुरानी किताबों का जुगाड़ हो गया था। छ्ठी कक्षा से दसवीं तक मैंने ऐसे ही पढ़ाई की घर में किताब कॉपी के अलावा सभी भौतिक सुख-सुविधाओ की कमी थी।लेकिन इन सब के बावजूद मेरी पढ़ाई में कोई असर नहीं पड़ा।

लाल सिग्नल | हिंदी कहानी
                                        
इकलौती संतान होने का सबसे बुरा परिपेक्ष यह है की, घर हो या रिश्तेदार सभी आपसे बहुत अच्छा करने की अपेक्षा करते हैं, सबकी यही उम्मीद होती है। की आप हर चीज में अव्वल हो।मैंने भी उन्हें निराश कभी नहीं किया। मेरा परफॉर्मेंस सदैव ही बहुत अच्छा रहा, और शायद यही कारण था की ननिहाल और ददिहाल में मैं हमेशा से ही सब की बहुत ही चहेती रही। शायद ईश्वर को मुझमें पर तरस आ गया और पापा को दूसरे शहर में बहुत अच्छी तनख्वाह पर नौकरी मिल गई। अब हमारे पास सभी सुख-सुविघाये  हो चुकी थी।अब 11वीं और 12वीं में मैं और मम्मी अकेले ही रहते थे। कहावत है की “दांत है तो चने नहीं और चने हैं तो दांत नहीं” यानी सब कुछ होते हुए भी पापा बाहर चले गए।एक दिन मैंने मम्मी पापा को बात करते सुना, की पापा बहुत दुखी मन से कह रहे थे। की मैं अपनी बेटी को सारे सुख देना चाहता हूं जो अभी तक नहीं दे पाया मैंने देखा है की स्कूल में एक से एक बड़े घर की बच्चे पढ़ते थे। सभी बड़ी-बड़ी गाड़ियों में आते थे। सब के पास महंगे महंगे फोन होते थे। बच्चे खूब पैसा खर्च करते थे। लेकिन अमिता ने आज तक कभी कोई मांग नहीं राखी अपने बाबा से तो जिद भी कर लेती थी।हमसे तो कभी कुछ मांगती ही नहीं है। यह सुनकर मेरी आंख में आंसू आ गए और मैं वहां से चली गई उसी दिन उन्होंने मुझे मेरी फेवरेट चॉकलेट टेंपटेशन मुझे ला कर दी मैं खुशी से झूम उठी थी।
                                
12वीं के बाद मैंने बी•टैक बाहर से किया। और इंडिया के टॉप 10 कॉलेज में से मैंने एम•बी•ए भी किया। मैंने मां-बाप की मेहनत और हिम्मत को जाया नहीं किया। आज मैं भी इंडिया के टॉप कंपनी में सीईओ के पद पर हूं। मुझे खुशी है की मैं मां-बाप की उम्मीदों पर खरी उतर पाई और संतुष्ट कर पायी, अगर आज मेरे बाबा जीवित होते तो, आज मेरी और उनकी दोनों की खुशी एक अलग ही मुकाम पर होती।यह सब सोच कर मेरी आंखें भर आई। तब तक हरा सिग्नल हो चुका था। गाड़ी आगे बढ़ गई और मैंने गाड़ी का शीशा ऊपर कर लिया। और फाइल में फिर सर झुका लिया।

– संगीता शर्मा
गुलेरिया रेजीडेंसी, 
सुलेम सराय , प्रयागराज 

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