कुरुक्षेत्र महाकाव्य का नायक युधिष्ठिर और भीष्म

कुरुक्षेत्र महाकाव्य का नायक भीष्म या युधिष्ठिर

कुरुक्षेत्र रामधारी सिंह दिनकर Ramdhari Singh Dinkar Kurukshetra – भारतीय काव्यों का आदर्श किसी महापुरुष के व्यापक जीवन द्वारा आदर्श की प्रेरणा देता रहा है। इसीलिए मानवता के सर्वगुण संपन्न किसी धीरोदात्त व्यक्ति को काव्यकारों ने नाटक के पद पर सुशोभित किया है। रामचरितमानस महाकाव्य के नायक राम ऐसे ही महापुरुष है। कुरुक्षेत्र एक समस्यात्मक काव्य है। इसमें विचारों की श्रृंखला को ही लेकर प्रबंधकता है। अत्याचारी के दमन के लिए युद्ध आवश्यक है। मानव को निवृत्ति मार्ग का पथिक बनना उचित है या अनुचित आदि समस्याओं

कुरुक्षेत्र महाकाव्य का नायक भीष्म या युधिष्ठिर

पर विचार किया गया है। जिनका माध्यम कवि ने युधिष्ठिर और भीष्म दो पात्रों को बनाया है।कवि के कथनानुसार इनके अभाव में भी इन समस्याओं को रखकर सुलझाया जा सकता था। किन्तु तब काव्य का प्रबंधात्मक रूप न रहता। अतः स्पष्ट है कि कुरुक्षेत्र कथानक काव्य नहीं है। इसी कारण इसमें चरित्रों का विकास पूर्णतया नहीं है। 

कुरुक्षेत्र में केवल दो पात्र हैं – युधिष्ठिर और भीष्म। दोनों आदर्श गुणों से युक्त होने के कारण नायकत्व के पद पर बैठने की क्षमता रखते हैं। भीष्म के चरित्र में युधिष्ठिर से अधिक दृढ़ता भी दिखाई पड़ती है और कुरुक्षेत्र की कथा का विशेष भाग उनके उपदेशों और शंकाओं के समाधान से भरा हुआ है। अतः यह प्रतीत सा होने लगता है कि कुरुक्षेत्र के नायक भीष्म हैं न की युधिष्ठिर। परन्तु ऐसा नहीं है। नायक निर्णय के लिए यह देखना आवश्यक होता है कि मुख्य घटना क्या है और उस घटना का मुख्य सम्बन्ध किस पात्र से है तथा घटना का फल भोगने वाला कौन है। 

कुरुक्षेत्र के नर संहार के उपरान्त युधिष्ठिर को विजयश्री प्राप्त हुई है। वह उनको वरण के लिए प्रतीक्षा रत खड़ी हुई है। किन्तु विजयश्री का नायक विराग की भावना से भरकर निवृत्ति का मार्ग पथिक बन रहा है। वह शर शय्या पर लेटे हुए भीष्म के पास जाता है। वे समस्याओं को सुलझाते हुए उसकी विरक्ति का निवारण करके उसे पुनः प्रवृत्ति मार्ग का पथिक बनाते हैं। वह आशा का नवदीप जलाने के लिए कर्म क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। अतः सम्पूर्ण घटना का सम्बन्ध युधिष्ठिर से है न कि बाण शय्या पर पड़े हुए भीष्म से। इसीलिए युधिष्ठिर ही कुरुक्षेत्र के नायक है। 

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