कोरोना से जीती जंग

कोरोना 

पूरा संसार हैं उदास, चारो तरफ मचा हैं, हाहाकार l
तू क्यों आई कोरोना .,आखिर क्यों आई
मज़दूर  पहले तो, किसी तरह गुजारा कर रहा था l
गरीबी से मर रहा था,
पर अब तो अन्न भी, बहुत मुश्किल से हैं मिलता l

कोरोना से जीती जंग
कोरोना से जीती जंग 

तू कब जायेगी? अपनी जाने की तिथि तो बता दे।
क्या तुझे प्रकृति माँ ना बेजा? या तू खुद आई।
जानती हूँ मैं, की बहुत पाप किए हैं हमने
पर प्रकृति माँ, हम बच्चों का इतना बुरा नहीं सोच सकती l
यह तो तेरी ही जिद होगी,

क्या तुझे भूखों की चित्कार, सुनाई नहीं देती?
लगता हैं , तू बहरी है
जानती है ,लोग तेरी बीमारी के साथ साथ भूखमरी से भी मर रहे हैं।
क्या तू अंधी भी है ? , यह सब देख नहीं सकती।
थोड़ी शर्म कर, थोड़ी रहम कर

क्या तुझे हंसी आती है अर्थी और कफनो को देखकर
हंस ले हंस ले
आखिर कब तक हंसेगी
एक दिन हम सब भी हंसेंगे तुझको भागा कर
इस दुनिया से मिटाकर

जानती हैं, कुछ लोग अपने परिवार से दूर है
मजबूर है, उदास है, परेशान हैं, हैरान हैं
पर तुझे क्या, तू  तो जश्न मना रही है
हमे सता रहीं हैं, हमे रुला रही हैं।
परंतु इठला मत, तेरा अंत एक ना एक दिन निश्चित हैं l

शायद तू अपनी शक्ति के अहंकार के कारण –
बेहरी, अंधी और ना समझ हो गयी हैं,
पर याद रखना, एक दिन तेरा घमंड जरूर टूटेगा l
उस दिन तुझे अपनी गलती का एहसास होगाl
तू बहुत पछताएगी भी,
जा जो करना है कर ले, परन्तु याद रखना
जीत एक दिन हमारी होंगी, जीत एक दिन हमारी ही होगी।

                               






– अमृता सिन्हा 
हिंदी शिक्षिका ,कोलकाता 

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