बाली यात्रा

बाली यात्रा

कटक का बाली यात्रा बहुत प्रसिद्ध है । पूरे ओडिशा में सबसे बड़ा मेला यही है । महानदी के किनारे इस मेले का आयोजन किया जाता है । कार्तिक पूर्णिमा के दिन इसकी शुरुआत होती है और यह सात दिनों तक चलता है । 
बाली यात्रा
बाली यात्रा
बालीयात्रा में लोगों की भारी भीड़ होती है । मैं हर साल जाता हूं । इस साल भी गया था । हर साल वही स्टाल, वही दुकान, वहीं मिठाइयां, एक के साथ एक अाइसक्रीम फ्री, वह गुम हो गया है, पांच साल की बच्ची मिली है, गुलाबी रंग की फ्राक पहनी है । उसके माता-पिता आकर उसे ले जाएं । वही धूल । भीड़ । हर साल एक ही दृश्य । फिर भी मैं हर साल बालीयात्रा जाता हूं और भीड़ में चलते-चलते सोचता हूं कि लोग बाली यात्रा क्यों आते हैं ?
सामान खरीदने …? पहले जब आनलाइन शापिंग की व्यवस्था नहीं थी तो लोग इसी तरह मेले से घर का सामान खरीदते थे लेकिन अब आनलाइन शापिंग ने सब आसान कर दिया है । मुझे कुछ दोस्तों ने कहा कि वह केवल खाने के लिए बाली यात्रा जाते हैं । बाली यात्रा में खाने-पीने का सामान सबसे अधिक है । दहिबड़े से लेकर मटन बिरयानी, पिज्जा-बर्गर सब उपलब्ध है लेकिन यह सब तो बाहर भी मिलता है । बाली यात्रा में धूल-मिट्टी के कारण खाने को मन भी नहीं करता । उसपर स्वच्छता का भी खयाल मन में आता है । 
तो फिर लोग क्यों बाली यात्रा घूमने आते हैं ?  कुछ दोस्त कह रहे थे कि लड़के-लड़कियां एक-दुसरे से मिलने बालीयात्रा आते  हैं । लेकिन बाली यात्रा की भीड़ में भला कोई भी किसीसे शांति से कैसे मिल सकता है ? आजकल के इंटनरेट, मोबाइल फोन, शांपिग माल के जमाने में भला कौन प्रेमी जोड़ा बाली यात्रा में समय बिताना चाहेगा ! मुझे तो कम से कम यह कारण नहीं लगता ।
तो फिर लोग बाली यात्रा क्यों आते हैं !
और किसीके बारे में नहीं कह सकता लेकिन मैं बाली यात्रा जाता हूं -इंसानों को देखने । एक साथ समंदर की तरह लोग । लाल, नीला, सफेद, काला  इंसान । अच्छा इंसान, खराब इंसान । लोभी इंसान, भोगी इंसान, त्यागी इंसान । ख़ूबसूरत इंसान । बदसूरत इंसान । लंबा इंसान, छोटा इंसान । मेले में खाने का स्वाद लेता इंसान । बंदुक में गुब्बारों पर निशाना दाग कर कुछ जितने के बाद खुश होता इंसान । दुसरों के सामने अपनी वजूद का दिखावा करता इंसान । दुसरों का पाकिट मारने के लिए कहीं चुपचाप खड़ा जेबकतरा इंसान । किसी के इंतिजार में इधर-उधर भटकता इंसान । कहीं सबसे अलग खड़ा अकेले चुपचाप देखता इंसान । कितने इंसान हैं यहां…भांति भांति के इंसान…
– मृणाल चटर्जी
अनुवाद- इतिश्री सिंह राठौर

मृणाल चटर्जी ओडिशा के जानेमाने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं । मृणाल ने अपने स्तम्भ ‘जगते थिबा जेते दिन’ ( संसार में रहने तक) से ओड़िया व्यंग्य लेखन क्षेत्र को एक मोड़ दिया । इनका एक नाटक संकलन प्रकाशित होने वाला है। 

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