लाइफ इज वैरी शार्ट

लाइफ इज …… वैरी शार्ट

आज सीमा बार-बार वाट्सअप के एक ही मेसेज को पढ़े जा रही थी..
“लाइफ इज वैरी शार्ट, इसे हर रूप मे जी लो, इसके हर रंग को महसुस करो।” …इस मेसेज ने जैसे उसके दिल
इंद्रधनुष

को छु लिया था, उसे सोई नींद से जगा दिया था।

सोचने लगी..”सच ही तो है , इसमें क्या गलत है ..? मैंने कभी अपने बारे मे सोचा ही नहीं , हमेशा मन की इच्छाओं को दबाकर कोम्प्रोमाइज करती रही, दूसरो के लिए ही आधी से ज्यादा उम्र गवा दी,पर बदले मे क्या हाथ लगा पति की बेवफाई ,,सबकी स्वार्थपरस्ती, आरोप-प्रत्यारोप , बच्चों  की बेरुखी।” …मै इतनी पढ़ी-लिखी प्रतिभाशाली थी पर फिर भी ‘कुँए का मेंढक”..बनकर रह गई..अच्छी खासी नौकरी भी सास के कहने से छोड़ दी।.. पति ने कहा ..”क्या करेगी बाहर कुछ करके, घर मे बैठ ,मज़े कर ..घर का बच्चों का सास-ससुर का ध्यान रख।”
मैने भी ख़ुशी से गदगद हो उनकी बात को शिरोधार्य .किया और खुद को दुनियां की सबसे खुशनशीब औरत मानने लगी ..पति के तबादले पर भी उसके साथ नहीं गई सोचा ,मन लगाकर काम करेगे और रहने का फाल्तु का खर्चा भी बच जायेगा।”
पर आज इतने सालो बाद जब उनकी बेवफाई का राज खुला तो मुझको मानो ‘काटो तो खून नहीं’..वाली स्थिति हो गई ।
सब भुलाकर , माफकर नया जीवन तो शुरू कर दिया..हरदम दुःखी रहते देख किसी सहेली की सलाह पर अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू किया , आज मेरी खुद की आर्ट -गैलरी है ..मेरी हर पैंटिंग मानो लोगो को सजीव , बोलती हुई नज़र आती है .जो भी देखते है .फैन हो जाते है ।”
प्रीति जैन
प्रीति जैन
उस दिन भी तो  यही हुआ एक प्रशंसक ने ऑटोग्राफ लिया और मेरा फ़ोन न. भी।आज उसी का वाट्सअप  पर आया मेसेज मुझे अंदर तक हिला गया।
इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी मै मन से सुखी कहाँ हूँ ..भीतर से मानो खालीपन खालता रहता है ..लगता है वाकई मे मै जीवन के हर रंग को जी ही नहीं पाई न किसी से दोस्ती न मन की बात तक बाँटी किसी से , हमेशा दो गज की दूरी बनाये रखती मानो सामने वाला गर पुरुष है तो खा ही जायेगा।चाहे वो मेरी मदद ही करना चाहता हो..पर क्या किसी ने मेरे बारे मे सोचा हमेशा मुझे रोकते रहे और खुद…हर रंग को जीते चले गये।
“मम्मा …ओ ..मम्मा ..गेट खोलो..गेट खोलो ..।”
छोटी बेटी पीहू की आवाज ने मानो एकदम से नींद से जगा दिया।
“हाँ..आई बेटे ..आई ..आई.डोंट वरी।” 
बोलते हुए तपाक से दरवाजा खोल दिया ..पर लगा दरवाजा घर का नहीं अपने बंद जीवन का अपने सोये दिल का खोल दिया है । एकाएक घनघोर घटायें छटकर  बारिश शुरू हो गई ..
मानो घरती की धूल के साथ ही मेरे जीवन मे लगे जाले भी बहती आँखों के साथ ही धूल गए है …इक नए जीवन का आगाज, नहीं मनचाही राह।
“मम्मा देखो….रैंबो…. रैंबो(इंद्रधनुष)..”
लगा मानो  वो प्रकृति का इंद्रधनुष नहीं ..मेरे जीवन का सतरंगी अहसास है ..मेरे जीवन का रैंबो है …सच ही तो है …’लाइफ इस वैरी शॉर्ट ..लाईफ इज वैरी शार्ट।

यह रचना प्रीति जैन(परवीन)द्वारा लिखी गई है।आप स्वतंत्र रूप से,काव्य,लेख,संस्मरण,कहानी लिखती रही है।लोकजंग,समाचार जगत, हमारा दैनिक मेट्रो समाचार पत्र व विश्व -गाथा,कलम के कदम, सत्यम प्रभात पुस्तको आदि मे रचनाये छपती रही है।

You May Also Like