तुलसीदास का जीवन

तुलसीदास का जीवन

जन्म  हुआ तो मरण हुआ चल बसी जन्म देते ही माँ,
कहते सब अभागा आया जलता हुआ दिया बुझाया,
कुछ समय बाद हुआ ऐसा अपराध छोड़ आये तुलसीदास को किसी गरीब के पास,
फिरती द्वार- द्वार लेके तुलसी जी को साथ, कभी एक, कभी दो रोटी मिलती बार बार
सीखे राम के दोहे, गाती भजन बार बार
सिख गया धीरे धीरे भजन राग तुलसीदास
दोनों साथ रहते, दोनों साथ रोते, एक ही कुठिया में रोज़ दिन कटते
न चल पाए ये सुख के दिन ज्यादा छोड़ के चलीं गयीं तुलसीदास का हाथ
सब कहे रे आभागा दूसरी माँ को भी मार डाला रोता रहा पूरी रात
समेत लिया खुद को बहते झरने के साथ
तुलसीदास
चल पड़ा दुसरे गावं की ओर, भटकता सबके द्वार
सब आशा छोड़ कर बैठ गया हनुमान के द्वार
वहां रहते थे बंदर हज़ार, लोग देते उन्हें चने कई बार
बंदरो के साथ रहते और खा लेते थे वही आहार
मुश्किल से उनके ये दिन कटे, वहीँ मिली एक कन्या कुमारी
तभी आई तुलसीदास के जीवन में खुशियाँ ढेर सारी
कभी न छोड़ा उस सुंदरी का साथ क्योंकि था उसे दूर जाने का अहसास
दोनों के जीवन में आई बहार हुई नन्ही सी एक संतान
एक दिन चली गयी सुंदरी माँ के घर, तुलसीदास रह न सके एक भी पल
तुलसीदास गये रात्रि में उसी समय,
वही क्रोधित सुंदरी कहे- लाज न तोहे आई इतना रमा को भजते तो होती भलाई
सुन तुलसीदास जी ये वचन चला गया छोड़ के सुंदरी का संग
आवध में गाते रामा रामा वहीँ से शुरू हुई तुलसीदास जी की अभिलाषा
दिन रात जपते राम का नाम बस थी उनकी जीवन प्राण

– आकांक्षा दांगी 
सागर, मध्य प्रदेश 

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