दमघोंटू हवा हत्या या आत्महत्या

दमघोंटू हवा हत्या या आत्महत्या

दमघोंटू हवा हत्या या आत्महत्या आज जब बाहर निकली तो धुंध थी पर ये वो धुंध नहीं थी जिसमे भिनी भीनी महक होती है,हल्की ठंड की गुनगुनाहट होती है।जिसमे हाथो को मल के आंखों पे रखो तो गर्माहट आ जाती है।मुंह खोलो तो धुआं सा बाहर आ जाता है और फिर वो एक खेल बन जाता है।ये वो धुंध थी जिससे आंखों मै जलन थी, सांसों में घुटन।जो ज़िन्दगी को ही एक खेल बना रही थी।मै सोचने पे मजबूर हो रही थी कि क्यूं हुआ ये।ठंड तो है पर वह हसीन मौसम को क्या हो गया?
दमघोंटू हवा
दमघोंटू हवा
मुझे लगा ये खून हो रहा है हमारा प्रकृति की ओर से।उसने हमारी ज़िन्दगी दी थी अब वही वापस ले रही है।पर क्या सच में!पर अगर कोई हमारा कतल करने आए तो हम अपना बचाव कर सकते हैं।वो तो हम कर नहीं रहे  यानी हम आत्महत्या करने पे उतारू हैं।अपना ही गला हम दबा रहे हैैं और घूंट रहे तो हाथ खोल स्वयं को बचा भी नहीं रहे हैं।
हम अपना बचाव जानते हैं।पर हम बचने के लिए कुछ नहीं कर रहे। जैसे ही हाथ थोड़ा खुलते हैं हम भूल जाते उन बातों को जिससे हाथ कस गया था।आत्महत्या से हम ही हम को बचा सकते हैं। हमें ही खुद को रोकना होगा।रोकना होगा हरेक उस गलती से जिससे ये परिस्थिति आ रही है।ये हमें तय करना है कि आगे हमें कोहरा देखना है या कफ़न का दोहर ओढ़ना है।
करे प्रकृति से प्यार जो,करे जगत का उत्थान वो।
करे प्रेरणा सबसे निवेदन , जागृत करलो अभी से भी मानव चेतन ।।

– प्रेरणा सिंह 

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