दवाइयों का भ्रम जाल
दवाइयों का भ्रम जाल इस दुनियाँ में हर दिन बढ़ता जा रहा है। हर एक बीमारी एक दूसरे को अपने जाल में फ़साने में लगी है। ये तो खुद को भी पता है, कि ऐसा नहीं होता फिर भी, दूसरों को फ़साने में लगा है।
हर दिन आप अखबारों और मीडिया की तरफ से तरह -२ के लुभावने विज्ञापनों के साथ नई-२ दवाइयों की कम्पनियाँ मार्किट में आतीं हैं। तथा पुरानीं कम्पनियाँ भी मार्किट में होते हुए, भी,अपने नए प्रोडक्ट को बेचने के लिए , इस तरह के कदम उठा रहीं हैं। जैसे कि हर आदमीं जनता है। गठिया-बाय , ब्लड प्रेसर, तथा शुगर एक बार होने पर कभी ठीक नहीं होते, फिर भी अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए , इन बीमारियों को ठीक करने का दावा करतीं हैं। और लोगों को अपने जाल में फसातीं हैं। तथा अपने प्रोडक्ट को अच्छा बताने के लिए क्या -२ नहीं करवाते, वो लोग पैसा देकर प्रचार करवाते हैं। आपके हीरो या एक्ट्रेस को इस तरह तैयार करते हैं। कि उन्हें ये वाली बीमारिया थीं। और वो बिलकुल ठीक हो गए। और अब वो बिलकुल सामान्य जीवन बिता रहे हैं। और वो लोग सारी वही प्रॉब्लम बताते है। जो आपको है।
आये दिन आप टी वी पर या अखबारों में इस तरह के विज्ञापन देखते रहते हैं। और लाखों करोड़ों लोग इस तरह के झांसे में आते रहते हैं। सालों दर साल दवाइयां खाते रहते हैं। और फिर भी कोई फायदा नहीं होता। लकिन फायदा नज़र न आने पर भी खुद को ही जिम्मेदार मान लेते हैं। अगर उनके किसी कंसलटेंट से मिलते हैं। तो भी वो आपकी गलती बताकर आपको गलत ठहरा देते हैं। आपने ऐसा नहीं किया , इसीलिए ऐसा नहीं हुआ। और आप इस दवाई को छोड़ दूसरी पर भरोसा करने लग जाते हैं।
यदि हम भारत की बात लें तो पाएंगे, कि यहां पर लगभग १३० करोड़ लोग रहते हैं। इनमें से कुछ हज़ार ही लोग भरोसा करते रहें, तो भी कंपनियों का काम कभी नहीं रुकेगा। किसी भी दवाई का इस्तेमाल क्यों न कर रहे हों। सालों साल आपको दवाई तो खानी ही है। चाहें फायदा करे या न करे। चाहें वो दवाई नकली ही क्यों न हो , आप प्रयोग करते रहेंगे। और उसमें भी आपको अपनी ही गलती नज़र आती रहती है। अच्छा मैंने ये चीज खा ली थी , इस लिए ऐसा हो गया , इसी लिए दवा का असर नहीं हुआ। अच्छा मैंने ये काम कर लिया है , इस लिए ऐसा हो गया। डॉक्टर के पास जाएंगे , तो फिर वो नई दवाई लिख देगा । आप इसे खाकर देखें, फिर बताएं , आपको थोड़ा अच्छा लगा तो ठीक है , अगली बार से पहले जो दवाई खाते आ रह थे , उसे छोड़ दें, और अब इस दवा का सेवन करें। और आप इस दवा को लेने लग जाते हैं। क्या वो कंटेंट उस दवा में हैं। जो आप उस दवा के कवर पर लिखे देखते हैं।
ये तो ना आपको पता, न ही डॉक्टर को , क्योंकि डॉक्टर भी उसी लिखित कंटेंट की वजह से आपको वो दवा लिखता है। ये सब तो उस कंपनी को ही पता है। जिसने वो दवा बनाई है। कि वो तुम्हें क्या खिला रहा है। जिस मात्रा में वो कंटेंट मिलाना था। ये भी वही जानती है। टेस्ट करवाने के लिए पैसा चाहिए, और बिना मतलब तो टेस्टिंग लैबोरेटरी भी टेस्ट नहीं करेगी। अब टेस्ट करवाने के लिए न तो मरीज के पास समय है। और न ही पैसा। वो तो वैसे ही परेशान है। डॉक्टर से मिलने के लिए समय भी नहीं मिल पाता। जैसे तैसे वो समय निकाल कर आधी छुट्टी काम की करके, दौड़ा-भाग करके निकालता है। बाकी कामों के बारे में भी सोच कर ही रह जाने में उसे अपनीं भलाई नज़र आती है। उधर जिन कंपनियों की दवाई खाते हैं। वो कंपनियां भी बहुत ही रसूक वाली हैं। टेस्टिंग लेबोरेटरी भी उन कंपनियों स मिली हुई होतीं हैं। क्यों कि क्लीन चिट भी तो वही लेबोरेटरी देतीं हैं।
इसका मतलब साफ़ है। कि आपको तो भरोसा करना ही है। अगर कुछ गलत होता है, तो भी आपकी ही
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कमलेश संजीदा |
गलती का नतीजा है। इसमें कंपनी की कोई गलती नहीं हैं। कंपनी भी डॉक्टर्स को नये-२ लुभावने ऑफर्स देती रहतीं हैं। कि इस दवा को अपने मरीजों के लिए लिखें । इसमें उनका भी फायदा है। और हमारा भी इस तरह से दवा बदल -२ कर किसी न किसी को तो दवा खानीं है। तो कंपनी को तो लाभ होना ही है। उस लाभ में से कुछ हिस्सा डॉक्टर्स तक तो पहुंचना ही है।
डॉक्टर्स तो लैब टेस्ट में भी खूब कमिसन खाते हैं। डॉक्टर्स अपने बताये हुए लैब के टेस्ट पर ही विश्वास करते हैं। इस का मतलब साफ़ है। कभी- कभी तो कुछ टेस्टों की जरुरत भी नहीं होती। टेस्टों के पूरे के पूरे ग्रुप लिख देते हैं। डॉक्टर्स को कमिसन बड़ी ही ईमानदारी से ३० से ४० प्रतिसत उनके घर पहुँच जाता है।
इस तरह से कंपनियों को नए -२ ग्राहक मिलते रहते हैं। तथा दिन प्रति दिन कंपनियों के टर्नओवर बढ़ते ही रहते हैं। कुछ दवा जो हमें थोड़ा भी फायदा करती हैं। हम भी किसी दूसरे को बता देते हैं। और डॉक्टर से वही दवा लिखवा लेते हैं। इस तरह से ये भ्रम जाल बना ही रहता है। और हर आदमीं इसी जाल में फसता चला जाता है। उधर दवा का कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी कमाई करता चला जाता है। मरीज का खर्च हर साल बढ़ता चला जाता है। और दवाइयों के दाम भी दिन प्रति दिन बढ़ते ही चले जाते हैं। जिसका सीधा ही असर हमारी जेब तथा सेहत दौनों पर ही पड़ता है। फिर भी गलती हम खुद को ही देते हैं। इस तरह कभी हम न तो दवा को गलत ठहराते हैं। और न ही डॉक्टर को। कभी अपनीं किस्मत को कोसते हैं। कि हमें ये बीमारी हो गई। इसी का फायदा देशी दवा निर्माता भी उठाते हैं। और दावा करते हैं कि शुगर , गठिया और ब्लड प्रेसर हम ठीक कर देते हैं। अगर ठीक नहीं होते तो उसमें भी तुम्हारी शारीरिक रचना और अंग्रेजी दवाइयों पर सारा दोष मढ़ देते हैं।
और कहते हैं , देशी दवा कभी भी नुक्सान नहीं करती , इसी चक्कर में सालों -साल दवाई खिलाते रहते हैं। कभी ये वाली तो कभी वो वाली, बस इसी में मरीज को फसाये रहते हैं। न तो कभी रोग ठीक होता है, न ही दवाई छूटती है। रोगी बस रोग से पीड़ित रहता है। आगे चलकर और भी परेशान हो जाते हैं। डॉक्टर से डॉक्टर बदलते रहते हैं। और दवाई पर दवाई बदलती रहती है। पर बीमारी है, कि तस से मस नहीं होती है , लेकिन इन तीनों रोगों में से कोई भी ठीक नहीं होते, बल्कि आगे जैसे -२ उम्र बढ़ती है। ये रोग और भी हावी होते चले जाते हैं , और इन रोगों के कारण नई-२ परेशानियां आने लगती हैं। दवाई पर होने वाले खर्चे बढ़ते चले जाते हैं। आदमीं बस इन में ही उलझकर रह जाता है। अंतिम दम तक ठीक होने की उम्मींद में जीता चला जाता है।
यह रचना कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम जी द्वारा लिखी गयी है। आप १९८७ से कविता, गाने, शायरी,लेख,कॉमिक्स , कहानियां लिख रहें हैं। अब तक आपने लगभग ५०० कवितायेँ ,५००- गाने ,६००- शायरी ,३-कॉमिक्स, २०-कहानियाँ लिखें हैं। संपर्क सूत्र – कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम अस्सिटेंट प्रोफेसर – डिपार्टमेंट ऑफ़ कंप्यूटर ऍप्लिकेशन्स , एस. आर. एम यूनिवर्सिटी एन. सी. आर. कैंपस मोदीनगर, गाज़ियाबाद , उत्तर प्रदेश मोबाइल नंबर. ९४१०६४९७७७ ईमेल. kavikamleshsanjida@gmail.com