देख ! वो जो आ रहा

देख ! वो जो आ रहा

देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा 
हृदय में भरती जा रही 
नित्य ही आवेश सा,
ध्रुव सिंह "एकलव्य''
ध्रुव सिंह “एकलव्य”
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा।  
मुट्ठी बाँधे तूं खड़ा है 
लाचार सा,असहाय सा 
कर समेकित ज्ञान को 
आत्मा में आवेग सा,
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा।  
टपक रहीं हैं ! रक्त बूँदें 
शौर्य का द्योत्तक यही 
चक्षु से निकलीं हैं माना 
संदेश हैं तुझको वही,
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा। 
उठ खड़ा ! तूं मेदनी पर 
प्रलय सा ताण्डव दिखा !
नेत्र तेरे नींद में हैं 
उनमें थोड़ा जल सजा ,
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा। 
देख ! वो ले जा रहें 
अस्मिता,तेरे हाथ से 
रोक ले ! उनको अभी 
एक नया दिनकर
तूं ला !
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा। 
डर नहीं ! तूं 
वो हैं कायर 
जो चलें, कुमार्ग पे 
तूं अडिग सा 
बन खड़ा रह !
बिम्ब सत्य का,
तूं अजेय !
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा।  
अजात शत्रु ! तूं  नहीं है    
शत्रु तेरे जात हैं
निर्णय करेंगे !
युद्ध केवल 
विजयश्री अथवा हार के 
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा।  
खो दिया ! जो आज तूने 
स्वर्ण अवसर भीरु बन 
धिक्कारेगी ! ये आत्मा 
चिरस्थाई जीवन सा  
देख ! वो जो आ रहा 
बुत बना ख़ामोश सा। 

रचनाकार परिचय – 
ध्रुव सिंह “एकलव्य”
उपनाम : ‘एकलव्य’ ( साहित्य में )
जन्मस्थान : वाराणसी ‘काशी’
शिक्षा : विज्ञान में परास्नातक उपाधि
सम्प्रति : कोशिका विज्ञान(आनुवांशिकी ) में तकनीकी पद पर कार्यरत ( संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ) लख़नऊ ,उत्तर प्रदेश ,भारत
साहित्य क्षेत्र : वर्तमान में  kalprerana.blogspot.com नाम से ब्लॉग का संचालन एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में हिंदी कवितायें प्रकाशित।
‘अक्षय गौरव’ पत्रिका में स्थाई लेखक 

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