नालंदा विश्वविद्यालय

नालंदा विश्वविद्यालय 

नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ है भारतीय शिक्षा का इतिहास  – नालंदा बिहार राज्य में पटना के निकट स्थित है। शिक्षा केंद्र के रूप में इसकी ख्याति पांचवी शताब्दी में हुई। चीनी यात्री फाहियान और ह्वेनसांग के भारत यात्रा वर्णन से नालंदा की ख्याति का ज्ञान होता है।नालंदा की उन्नति में गुप्त सम्राटों को विशेष योगदान रहा है। 

नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर

नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण एक निश्चित योजना के आधार पर हुआ था। विश्वविद्यालय का क्षेत्र के विशाल और मजबूत चारदीवारी से घिरा हुआ था। विश्वविद्यालय प्रांगण में भीतर ८ बड़े बड़े सभा भवन बने हुए थे। यहाँ पर विद्यार्थियों को भाषण दिए जाते थे। यहाँ पर ३०० अध्ययन कक्ष बने हुए थे ,जिनमें अध्ययन अध्यापन का कार्य होता था। विश्वविद्यालय के छात्रावास की व्यवस्था भी बहुत सुन्दर थी। विभिन्न मंजिलों में छात्रों के निवास के लिए भारी संख्या में कमरे बने हुए थे। विश्वविद्यालय में ही एक विशाल पुस्तकालय था। इसमें सभी विषयों की पुस्तकों की एक विशाल संग्रह था। सम्पूर्ण पुस्तकालय तीन भागों में विभाजित कर दिए गए थे। इनके नाम थे – 

  • रत्नसागर
  • रत्नोदधि
  • रत्नरंजक 

नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा के विषय 

नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय का शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा था। अतः उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए न केवल भारत के विभिन्न भागों से बल्कि दूसरे देशों जैसे चीन ,कोरिया ,जापान ,जावा ,सुमात्रा इत्यादि देशों से भी विद्यार्थी नालंदा विश्वविद्यालय आते थे। विश्वविद्यालय का प्रबंध तथा अनुशासन अनूठा था। विश्वविद्यालय में लगभग १०००० विद्यार्थी और १५०० अध्यापक अध्यापन का कार्य सम्पादित करते थे। 

नालंदा विश्वविद्यालय में छात्रों का प्रवेश

नालंदा विश्वविद्यालय में छात्रों का प्रवेश कठिन था। प्रवेश के लिए इच्छुक विद्यार्थियों के दरवाजे पर द्वार पंडित के द्वारा परीक्षा ली जाती थी। इस परीक्षा में जो विद्यार्थी सफल हो जाते थे ,केवल उन्ही को विश्वविद्यालय में प्रवेश का अधिकार था। विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता था। छात्रों के निवास ,भोजन ,वस्त्र और चिकित्सा इत्यादि की व्यवस्था निशुल्क थी। शुल्क या खर्च का यह सब भार राजा और प्रजा पर था।  

उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र 

विश्वविद्यालय में बुद्ध धर्म की दोनों शाखाओं जैसे महायान और हीनयान के अलावा वैदिक धर्म की भी शिक्षा प्रदान की जाती थी। इसके अतिरिक्त यहाँ व्याकरण ,वेद ,ज्योतिष ,दर्शन ,पुराण ,वास्तुकला ,आयुर्वेद इत्यादि की भी उच्च शिक्षा प्रदान की जाती थी।आधुनिक विश्वविद्यालयों की भाँती यह विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था। विश्वविद्यालय में तीन प्रकार की शिक्षण विधियों का प्रयोग था – 
  • मौखिक विधि ,
  • व्याख्यान विधि और 
  • शास्त्रथ  विधि।  

विश्वस्तरीय शिक्षा 

विद्वानों ने नालंदा विश्वविद्यालय की तुलना ऑक्स्फ़र्ड, कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्यालयों से की है।इसने भारतीय संस्कृति के विकास ,प्रसार तथा परिवर्धन में सराहनीय योगदान किया है। विद्या का महान केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय लगभग ८०० वर्षों तक अपने ज्ञान के प्रकाश से विश्व को आलोकित  करता रहा। ११वीं शताब्दी के अंत में आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने सदा के लिए इस विख्यात विश्वविद्यालय को धराशायी कर दिया। इस प्रकार यह ज्ञान प्रदीप जो युगों तक प्रकाशित बना रहा ,सदा के लिए बुझ गया। 

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