निरक्षरता की समस्या पर लेख

 निरक्षरता : सामाजिक विकास में बाधक 

आजादी के बाद भारत ने विरासत में एक ऐसी शिक्षा प्रणाली को अपनाया ,जो व्यापक पैमाने पर तथा अंतर –क्षेत्रीय असंतुलनों से युक्त थी । इस शिक्षा प्रणाली के द्वारा मात्र कुछ ही लोगों को शिक्षित किया जा रहा था ,जिससे शिक्षित ऑर निरक्षर लोगों की संख्या के बीच का अंतर बहुत अधिक बढ़ रहा था । वर्ष 1947 में देश की साक्षरता की दर 14 प्रतिशत की थी तथा महिला साक्षारता निम्नतम होते हुए भी 8 प्रतिशत थी । सामान्य तौर पर ऐसा विश्वास किया जाता है ,कि निरक्षरता को समुचित रूप से दूर किए बिना सामाजिक विकास संभव नहीं है ऑर लोगों को वह जीवन उपलब्ध नहीं हो सकता जिसके लिए वे लंबे समय से तरसते रहें हैं । 

 भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरांत से ही निरक्षरता समाप्त करना प्रमुख चिंता रहा है । हालांकि आजादी के बाद साक्षारता देश में काफी तेजी से बढ़ी है । वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में करीब 74 फीसदी नागरिक साक्षर हैं जबकि ब्रिटिश शासन के समय सिर्फ 12 फीसदी लोग साक्षर थे । केरल में साक्षारता प्रतिशत सर्वाधिक 93.91 प्रतिशत जबकि बिहार में सबसे कम 63.82 प्रतिशत है । यदि भारत में निरक्षर लोगों की प्रतिशत की तुलना अन्य देशों के निरक्षर लोगों के प्रतिशत से किया जाय ,तो हमारा देश बहुत ही पिछड़ा हुआ प्रतीत होगा । वर्ष 1998 में यूनिसेफ के द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक निरक्षरता की सर्वाधिक ऊंची दर एशिया ,अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के कम विकसित देशों में पायी गई थी, जबकि आस्ट्रेलिया ,जापान तथा यूरोप एवं उतरी अमेरिका के तकनीकी रूप से ऑर अधिक उन्नत देशों में यह न्यूनतम थी । जैसे अमेरिका तथा कनाडा की कुल निरक्षरता दर मात्र 1 प्रतिशत की है । 

 
भारतीय संदर्भ में निरक्षरता को दो प्रमुख कारण से समझ सकते हैं ,विधालयों तथा साथ हीं साथ शिक्षक का अभाव । एनसीईआरटी के द्वारा जारी की गयी 8वीं  अखिल भारतीय शिक्षा सर्वेक्षण की रिपोर्ट की मुताबिक देश में छात्र तथा शिक्षकों के बीच सम्पूर्ण प्राथमिक ,उच्च –प्राथमिक तथा मध्यमिक स्तर पर अनुपात 1:32 का है । ऑर स्कूलों में साफ –सफाई की स्थिति बहुत अच्छा नहीं है ,जहां शौचालय तथा पेय जल की सुविधाएं भी मौजूद नहीं हैं । साथ ही निरक्षरता के लिए ऑर भी कारण ज़िम्मेवार है । जैसे – साक्षरता प्राप्त कर रही वयस्क जनसंख्या की निम्न दर के सापेक्ष जनसंख्या विकास की ऊंची दर ,छात्रों का नामांकन करने एवं उन्हे रोके रखने में प्राथमिक विधालयों का निष्प्रभावी होना ; निम्न वर्गीय लोगों का या तो धनार्जन के लिए अथवा परिवार में बच्चों की देखभाल के लिए बड़े बच्चों की सेवाओं का उपयोग करने संबंधी पारिवारिक दृष्टिकोण ,बजाय इसके कि उन्हे विधालय भेजा जाय ; गरीबी का उच्च स्तर ; शिक्षा के लिए कम बजट का आवंटन किया जाना । 

निरक्षरता की समस्या
निरक्षरता की समस्या 

सरकार अकेले ही देश में निरक्षरता की समस्या को समाप्त नहीं कर सकती है । निरक्षरता के सम्पूर्ण उन्मूलन के उद्देश्य मात्र सरकारी प्रयासों के द्वारा ही हासिल किया जाना संभव नहीं है । सरकार निः संदेह स्थिति का जानकारी ले सकती है ,एजेंसिया, संस्थाओं एवं व्यक्तियों की कर सकती है ,मानवीय सामाग्री एवं वित्तीय संसाधनों को उपलब्ध कराये जाने हेतु एक उत्प्रेरक अभिकर्ता के रूप में कार्य कर सकती है ,किन्तु स्वयं ही साक्षारता को प्रवर्तित नहीं कर सकती । इसलिए ,केंद्र तथा राज्य दोनों ही सरकारों के प्रयासों को ऐसे स्वैच्छिक संगठनों एवं व्यक्तियों के द्वारा पूरक सहायता एवं शक्ति प्रदान करनी होगी । इसलिए हम कह सकते हैं कि हम सब को शिक्षा के लिए मात्र सरकार की विशिष्ट ज़िम्मेदारी की अवधारणा से बाहर निकलकर सरकार एवं समुदाय के बीच साझा उतरदायित्व की अवधारणा को अपनाना होगा । 

अतः यह अर्थ निकाला जा सकता है कि करोड़ों लोगों को साक्षर बनाए जाने का कार्य करने की दृढ़ता की आवश्यकता है । निरक्षरता की इतनी गंभीर समस्या कठोर उपायों को आवाहन करती है ,बजाय उन आधे –अधूरे मन वाले दृष्टिकोण के जिनका अनुसरण हम पिछले कई वर्षों के दौरान बिना किसी मूर्त परिणाम को प्राप्त किए श्रमसाध्यता के साथ करते रहे हैं । समस्या के व्यापक परिणाम के कारण बड़े पैमाने वाली निरक्षरता एवं बाल शिक्षा के साथ युद्धस्तर पर निबटना होगा ।  निरक्षरता निदान के लिए गंभीर प्रयास होना नितांत आवश्यक है ,ताकि भारत एक सम्पूर्ण साक्षर देश बनने का गौरव प्राप्त कर सके । आखिरकार, शिक्षा किसी भी देश ,समाज की मेरुदंड होती है ।                    

               


– जे आर पाठक ( लेखक ) 

रांची 

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