एक वृद्ध दर्पण से बात करता हुआ

एक वृद्ध दर्पण से बात करता हुआ

रेली में  जब मैं अपने घर से टहल ने  के लिए मैन रोड  पर आता  हूं तब दो रास्ते मिलते हैं। एक स्टेडियम को जाता हे और दूसरा एयर  फोर्स  स्टेशन को जाता हैं। सुबह सुबह  स्टेडियम रोड पर  आपको तमाम  तीस  पेंतीस  साल की औरत या लड़कियां मिल जाती हैं जो ऐसा श्रृंगार करके आती हैं मानो मॉर्निंग वाक पे ना आकर किसी पार्टी में आयी हों और साथ में  कुत्ते  टहला रही होती हैं जबकि  उनकी उम्र बच्चे टहलाने की होती हैं। चालीस  पेंतालिस  साल की औरत मिल जाएंगी जो सास ससुर ,पति और पता नहीं किन किन की बुराई करती  हैं। कुछ अमीरजादे यंग व्यक्ति  मिल जायें गे जिनकी नाक चढ़ी होती हैं।  और   एयर  फोर्स  स्टेशन रोड की तरफ  शुरू में  राजस्थानी घूमकरो के तम्बू मिलते हैं  जो लोहे के बर्तन, कुल्हाड़ी ,फाबरे आदि बनाकर गुजारा करते हैं।  एक ही तम्बू में पांच  छः  आदमी ,औरत  और बच्चे सो जाते हे।  ना बिजली ,ना पंखा और ना कोई सुविधा।  सामान  के नाम पर एक बैलगाड़ी।  आज यहाँ कल बांह , ना कोई टोर ना कोई ठिकाना।  मुझे इन  लोगो का जीवन  बहुत  प्रभाबित करता हैं।  बेकार ही हम लोगो ने जीवन की  जरूरतों  को बड़ा रखा हैं।  जब जीवन ही स्थाई  नहीं हैं और इस दुनिया से बिना कुछ लिए जाना हैं तो फिर इतना ताम  झाम  क्यों।
                             
एक वृद्ध दर्पण से बात करता हुआ

एयर  फोर्स  स्टेशन रोड पर कुछ आगे जाने पर कबाड़ी की दुकानें मिलती हैं  जो पुरानी चीजें  पुरानी  किताबे  और पुराना  घर का सामान बेचते है।  इसी दुकान पर  उसकी निगाह  एक दर्पण पर पड़ती हैं।   दर्पण   में कुछ आकर्षित  नहीं था  फिर भी उसने दुकानदार से उसकी कीमत पूँछी।  दुकानदार ने कहा ,” साहब जी ,यह जादुई  दर्पण हैं।  दस साल पहले एक साधु   सो रुपए में दे गया था। तब से इसकी कीमत सो रुपए  ही हैं।  लोग खरीदते  हैं  और फिर वापस कर जाते हैं।   मेंने आश्रयचकित हो कर पूछा ,” ऐसा क्यों “।   दुकानदार  बोला,” दर्पण सत्य बोलता हैं  और लोग सत्य सुनना बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।   इसलिए वापस कर जाते हैं ।  कुछ समय पहले आप जैसा एक बूढ़ा  आया था।  दर्पण ले गया।  उस  बूढ़े ने दर्पण से पूछा ,” क्या मेरी पत्नी सिर्फ मुझे ही प्यार करती हैं  और में ही उसका एक मात्र आशिक हूं ।  दर्पण ने कहा ,” नहीं ,तुम्हारी पत्नी के सो आशिक रहे हैं  और उसमे तुम्हारा नाम नहीं हैं ।  फिर उस बूढ़े ने  दर्पण से पूछा ,कम से कम  बच्चे तो मेरे हैं “।  दर्पण ने कहा, “नहीं ।  फिर उस बूढ़े ने पत्नी से पूछताछ  की  और इसके बाद आम के पेड़  से लटक कर आत्महत्या कर ली।  दुकानदार मेरी तरफ देखते हुए बोला ,” अब आप बताये , बुढ़ापे में  उस बुड्ढे को पत्नी से यह बात पूछ नी चाहिए थी।  यह बुड्ढे  भी पागल होते हैं।  मरने की उम्र हैं और पत्नी से पूँछ रहे कि क्या बह ही उसके एक मात्र आशिक हैं।  और साहब यह क्या प्रश्न हैं कि बच्चे मेरे हैं या नहीं।  अरे बच्चे तो भगवान की देन हैं।  इसमें मेरा तेरा क्या होता हैं।

                       
उससे पहले एक नौजवान  इस दर्पण को ले गया था ।  बोह नौजवान  ऐश्वर्या  रॉय  का बड़ा फेन था।  उसने मिरर से पूछा ,” क्या  ऐश्वर्या  रॉय  जितनी बहार से सुन्दर हैं उतनी अंदर से ” दर्पण ने एक चुड़ैल की तस्वीर दिखा दी।  तब से बोह नौजवान पगला गया हैं और ऐश्वर्या  रॉय  का नाम लेने  पर काटने को  दौड़ता हैं।  उससे पहले एक पेंतीश साल की महिला  जो बहुत मैक अप करती थी इस मिर्रिर को ले गयी थी।  उसने दर्पण से पूछा कि साठ साल के बाद बोह बगैर मैक अप के कैसे लगे गी।  दर्पण ने उसे एक बंदरिया की तस्वीर दिखा दी।  बो बहुत नाराज हुई और दर्पण वापस कर गयी। 
                                
मेंने उस कबाड़ी से पूछा कि कभी उसकी इच्छा अपने भविष्य  को जानने और इस दर्पण से पूछने की नहीं हुई।  कबाड़ी  मेरी आँखों में घूरते हुए और मुस्कराते हुए बोला ,” नहीं साहब ,हमें उस परबरदिगार से कोई शिकायत नहीं हैं। जो हैं सो हैं। हमें अपने भविष्य के बारे में नहीं जानना हैं।  हम संतुष्ट हैं। 
                     
कबाड़ी मुझसे बोला ,” आप चाहो तो दर्पण ले जा सकते हो ,कीमत बही सो रुपए  मगर कोई ऐसा सवाल मत पूछना  जिसकी सत्यता  बर्दाश्त  ना कर  पाओ। “ बस मैं  बह दर्पण ले आया हूं।  अभी  अभी अपने कमरे में रखा हैं  और पत्नी जी की आवाज  आ रही हैं।  बो चीख चीख  कर पड़ोसन से कह रही हैं ,”उम्र के साथ साथ इनका दिमाग भी खराब हो गया हैं। पता नहीं कँहा से सो रुपए में पुराना दर्पण  ले आये हैं। “
                      
मॉर्निंग वाक से आकर  सुस्ता रहा  हूं।  बड़ी जल्दी थकान हो जाती हैं।  मन घबरा ने लगता हैं।  ऐसा लगता हैं की कुछ  बुरा होने बाला हैं।  लम्बी लम्बी  सांश लेता हूं तब कंही जाकर आराम मिलता हैं। जिंदगी की आपा धापी में जिंदगी  को समझने का अब सर ही  नहीं मिला या आप कह सकते हैं कि इस और ध्यान ही नहीं गया।  अब जब साठ बरस के हो गए हैं  और जिंदगी ब्रद्धावस्ता की और जाने लगी हैं और कुछ अंदर से  टूटने लगा हैं। कुछ हैं जो चाहिए ,लेकिन बोह क्या हैं ,पता नहीं हैं। मन अजीब सा रहता हैं उदास  उदास सा तब समझ में आया कि यह जिंदगी को सही से समझ ना पाने की कीमत हैं  या बुढ़ापे  की शुरुआत
                               
बुढ़ापे में कोई बात ही नहीं करता हैं ,ना बेटा ,ना बेटे की बहू और ना ही पत्नी।  सब समझते हैं की यह बेकार के आदमी हैं। पहले जबरदस्ती अपने खो कले  आदर्श  हमारे  ऊपर  धोपते  रहे  और हमारे जीवन को नरक बनाते रहे  और अब भी परेशान करते रहते हैं।  । सोचता हूं जिन प्रश्नों के उत्तर मेरे पास नहीं हैं  और किसी दूसरे से पूछ नहीं सकता ,दर्पण से पूछ  लुंगा।  इस तरह से सो रुपए की कीमत बसूल भी हो जाएगी  और भड़ास  भी निकल जाएगी। 
                 
डरते डरते मेंने दर्पण  से पूछा , मन  घबराता हैं।  ऐसा लगता हैं की कुछ अधूरा  हैं।  आर्थिक  रूप  से संपन्न हूं।  मन  क्यों  घबराता हैं  ,क्यों ऐसा लगता हैं की कुछ बुरा होने बाला हैं और यह अधूरापन क्या हैं।  में देख कर दंग रह गया।  मिरर में जो व्यक्ति बोल रहा था  उसकी शक्ल मेरी जैसी थी किन्तु आवाज में भिन्नता थी। 
                            
दर्पण  के अंदर बाला व्यक्ति बोल रहा था ,” तुम मुर्ख थे ,मुर्ख हो और मुर्ख ही रहो गे। तुम इस मायावी संसार में इतने लीन हो गए कि इससे निकलने या इसे छोड़ने मात्र की कल्पना से भयभीत हो रहे हो। मनुष्य का मन इन्द्रियों के चक्रव्यूह के कारण भ्रमित रहता हैं। जो वासना, लालच, आलस्य जैसी बुरी आदतों से ग्रसित हो जाता हैं। इसलिए मनुष्य का अपने मन एवं आत्मा पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। किसी चीज को पढ़ना अलग बात हैं  और किसी चीज को समझ कर जीवन में उसका पालन करना अलग बात हैं।  मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए और न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए।   मनुष्य को अपने कर्मों के संभावित परिणामों से प्राप्त होने वाली विजय या पराजय, लाभ या हानि, प्रसन्नता या दुःख इत्यादि के बारे में सोच कर चिंता से ग्रसित नहीं होना चाहिए।” दर्पण  के अंदर बाला व्यक्ति बोले जा  रहा था ,’’  भगवान कृष्ण ने गीता में कहा हैं अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर हैं। आत्म-ज्ञान की तलवार से अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को काटकर अलग कर दो। उठो, अनुशाषित रहो।समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी किसी को कुछ नही मिलता हैं। नि:सन्देह मन चंचल किन्तु उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता हैं।जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित हैं, जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य हैं उस पर शोक मत करो।
                              
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में हैं ना ही कहीं और।कोई भी इंसान जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्म से महान बनता हैं।प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं।”श्री कृष्ण पुनः : गीता में कहते हैं ,’’कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं।” फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता हैं। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा हैं वह अच्छा हो रहा हैं, जो होगा वो भी अच्छा ही होगा। जो होने वाला हैं वो होकर ही रहता हैं और जो नहीं होने वाला वह कभी नहीं होता, ऐसा निश्चय जिनकी बुद्धि में होता हैं, उन्हें चिंता कभी नही सताती हैं।अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर दो, यही सबसे बड़ा सहारा हैं। जो कोई भी इस सहारे को पहचान गया हैं वह डर, चिंता और दुखों से आजाद रहता हैं।तुम क्यों व्यर्थ में चिंता करते हो ? तुम क्यों भयभीत होते हो ? कौन तुम्हें मार सकता हैं ? आत्मा न कभी जन्म लेती हैं और न ही इसे कोई मार सकता हैं, ये ही जीवन का अंतिम सत्य हैं |”
                                  
दर्पण के अंदर बाला व्यक्ति  बोले जा रहा था ,”अब तुम खुद को  इस संसार से और इस परिवार से खुद को अलग कर लो। तुम्हारे बेटे बहू कैसे रहते हैं  उसकी चिंता तुम मत करो।  कोई बेटा  बेटी शादी करता हैं या नहीं  यह उनकी मर्जी हैं।  उनके कर्म , उनके पुरूषार्थ से उनकी जिंदगी  तय होगी।  अब तुम इन सबसे खुद को मुक्त करो  और शांत जीवन व्यतीतः करो। 
                             
दर्पण से बात करके मुझे बड़ा सुकून मिला हैं और में अच्छा महसूस कर रहा हूं। 
                                                        
अशोक कुमार भटनागर,
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी,
                रक्षा लेखा विभाग,भारत सरकार

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