पेड़ बुलाते मेघ

पेड़ बुलाते मेघ / हिंदी हाइकु साहित्य में एक नया अध्याय 

                           
बहुमुखी प्रतिभा के ब्याख्याता श्री रमेश कुमार सोनी का दूसरा हाइकु संग्रह – पेड़ बुलाते मेघ पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ यह अपने आप में अब तक का सबसे अधिक संख्या वाला हाइकु लेकर प्रस्तुत हुआ है | यह  आपका दूसरा संग्रह है जो १५ वर्ष बाद आया है इसमें आपके लेखनी की पूरी परिपक्वता प्रकट होती है | ज्ञात हो कि आप छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे हिंदी के हाइकुकार हैं जिनकी पहली हाइकु संग्रह – रोली अक्षत के रूप में पाठकों के द्वारा पसंद की गयी थी | हाइकु विधा हिंदी साहित्य के लिए अब कोई नयी विधा नहीं रही जिसे किसी परिचय की जरुरत हो इसका श्रेय समस्त हाइकुकारों को जाता है जिनकी लेखनी की अकूत मेहनत ने इस विधा से हिंदी साहित्य को पुष्ट किया | 
                          
श्री रमेश कुमार सोनी जी का हाइकु संग्रह – पेड़ बुलाते मेघ आरम्भ से अंत तक इतना सुब्यवस्थित व रोचक है कि पाठक एक बार शुरू करके अंत तक पढ़ते ही चले जाते हैं | जैसे हर कार्य के प्रारम्भ में माँ शारदा को याद किया जाता है , आपने भी अपने हाइकु से उनकी पूजा की है – 
मन की वीणा / शारदा कृपा बिना / सुर ना ताल || 
      इसके बाद गुरु का स्मरण और फिर राजभाषा हिंदी को नमन करते हुए हाइकु आते हैं – 
हिन्द में हिंदी / सदा सधवा रही / माथे की बिंदी || 
     शहीदों को श्रद्धांजली , बेटियों की भ्रूण में हत्या की पीड़ा और बचपन की यादें लिए ये हाइकु अद्भुत निखार के साथ प्रकट हुए हैं – 
हिन्द का नक्शा / शहीदी खून रंगा / कश्मीर मेरा || 
छाती दरके / शहीदी चिता देख / शत्रु को चिन्हें || 
बेटी पढ़ेगी / विकास ही गढ़ेगी / कोख में बचा || 
युग विज्ञानी / भ्रूण तक ना छोड़े / सारे हत्यारे || 
बच्चों सा खेलें / तनाव जो भगाना / धूम मचा दें || 
      साहित्य में यदि प्रेम , श्रृंगार का उल्लेख ना हो तो अधूरी सी लगती है वास्तव में पूरी जिंदगी ही इसके इर्द – गिर्द घुमती है इसलिए हाइकु में इनका उल्लेख भी आया है जिसमें विरह , दर्द , आंसू , मनुहार …. भी है – 
ब्रह्माण्ड सारा / तेरी आँखों में बसा / डूबा तो देखा || 
दावानल सा / दिल जलता रहा / वो नहीं आयी || 
     
पेड़ बुलाते मेघ
पेड़ बुलाते मेघ
प्रकृति का वर्णन हाइकु की जान है जिस प्रकार ये चराचर जगत प्रकृति के बिना अधूरी है उसी प्रकार प्रकृति की सुन्दरता और उसके बेइंतहा शोषण की चिंता हाइकु में आना लाजिमी है | प्रकृति के विभिन्न मौसम , रूप , फूल , फल , सब्जियों  की रंगीली दुनिया व पक्षियों की सुरीली दुनिया में ले जाने वाले ये हाइकु देखिये – 
बाँस जंगली / कमसीन हसीना / बैले नाचती || 
बीजों में दम / सीना फाड़ दिखाती / हरी है छाती || 
खिले बौराए / कनक सा बसंत / झरे बौराए || 
सूर्य खिलाड़ी / खेलता लू कबड्डी / लोग अनाड़ी || 
      पर्यावरण के त्यौहार को आनंद के साथ ये हाइकु मनाते हैं वहीँ बिगड़ते मौसम पर अपना रोष भी प्रकट कर रहे हैं – 
वर्षा बचा लो / सावन राखी लाता / पानी बाँध लो || 
चिड़िया आओ / वर्षा दे गयी धान / दिवाली मानो || 
पाखी बुलाने / पेड़ लगाया मैनें / वे जा चुके थे || 
ख़त्म हो रहे / दाना – पानी यहाँ के / समेटो डेरे || 
बस्ती वालों ने / जंगलों को खा लिया / खेत खा रहे || 
      आज की सबसे बड़ी जरुरत और अभियान – स्वच्छता और पानी भी आपके हाइकु में चिंता प्रकट कर रहे हैं – 
आबादी बढ़ी / यूस थ्रो प्रणाली में / आबाद कूड़ा || 
पानी उद्योग / पानी नहीं बनाते / पैकिंग ठगे || 
     आज की आपाधापी वाली जिंदगी में देर रात तक काम करने की संस्कृति में सुबह होती है और रात होती है ; सुना है कभी शाम हुआ करती थी !! हाइकुकार ने भोर से सांझ के हाइकुओं द्वारा भोर व शाम की याद दिला दी – 
भोर चहकी / दिन – रात का मेल / साँझ महकी || 
गोधुली बेला /साँझ रंभाते आई / दीप जलाने || 
भोर – साँझ से / उषा – निशा की होली / लाल – नारंगी || 
         इस संग्रह की विशिष्टता है कि सभी हाइकु अलग – अलग उपशीर्षकों में सुब्यवस्थित  रचे हुए हैं कहीं भी कोई बिखराव नहीं है जो पाठकों के भावों को बहकने नहीं देता ; अपने रस में बांधकर रखता है | चौदहवीं का चाँद , उत्सव , रिश्तों की संजीवनी , जीत का बीज , किराए का मकान , दुनियादारी ….. आदि सभी विषयों पर वर्णित हाइकु को पढ़कर ऐसा लगता है मानो प्रत्येक विषय हाइकुकार की पैनी नज़रों से काब्यमय हो गया है ; कुछ हाइकु देखिए – 
अम्बर शैया / पसरे फैला चाँद / देखो तो भैया || 
पलाश लाल / जित देखूं है लाल / फागुन लाल || 
रंगोली सजी / कहे शुभ दिवाली / पटाखे फूटे || 
माँ का आँचल / जादू पिटारा खुला / जो माँगा मिला || 
        मेरे अनुसार किसी भी कवि के लिए शायद क्षणिकाएँ रूपी लघु कविताओं द्वारा अपनी बात पाठकों तक पहुँचाना अधिक सरल है जबकि जापानी विधा  हाइकु में पाँच – सात – पाँच एवं कुल मिलाकर सत्रह अक्षरों तथा तीन पंक्तियों द्वारा कविमन के सारे भावों जैसे – हर्ष , विषाद , प्रेम , विरह , कष्टों , अनुभूतियों , करुणा , संवेदनाओं ……आदि का विशाल परिदृश्य उत्पन्न कर पाठकों  तक पहुँचाना गागर में सागर भरने जैसा है | 
        कवि अपने आस – पास के वातावरण , देश , समाज , प्रकृति , काल के प्रति अत्यंत जागरूक एवं संवेदनशील होता है इसलिए अपनी अभिब्यक्ति द्वारा सामाजिक विषयों जैसे – भ्रूण हत्या , भ्रष्टाचार , जल प्रदूषण , वायुप्रदूषण , बेरोजगारी , हिंसा ,शिक्षा …… आदि को बड़ी बेबाकी से बिना लाग लपेट एवं बिना किसी भय के लोगों तक पहुँचाने का साहस कर सकता है | इस संग्रह के सभी हाइकु पाठकों को अपनी दुनिया में ले जाते हैं और उस दृश्य की अनुभूति से जुड़ी चिंता , हर्ष …. आदि का रसास्वादन कराते हैं | यह एक प्रभावशाली हाइकु संग्रह है जो पाठको को अवश्य पसंद आएगी तथा यह संग्रह हिंदी साहित्य के लिए एक नया अध्याय लिखने में कामयाब रही है | हाइकुकार श्री सोनी जी निश्चय ही बधाई के पात्र हैं || 

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पेड़ बुलाते मेघ – हाइकु संग्रह , रमेश कुमार सोनी – बसना 
सर्वप्रिय प्रकाशन – दिल्ली  2018 , मूल्य – ३१०=०० रु. , पृष्ठ – 100 
ISBN -978-81-936634–4-8  
भूमिका – डॉ. सुधा गुप्ता , वरिष्ठ हाइकुकार – मेरठ 
समीक्षा – डॉ. अर्पिता अग्रवाल – मेरठ 


                                   

   –  डॉ. अर्पिता अग्रवाल 
                                   120 – B / 2 साकेत , मेरठ [ उ.प्र.]
   

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