छूट गए सब
जो छोड़ा उसे पाने का मन है।
जो पाया है उसे भूल जाने का मन है।
छोड़ा बहुत कुछ पाया बहुत कम है।
खर्चा बहुत सारा जोड़ा बहुत कम है।
छोड़ा बहुत पीछे वो प्यारा छोटा सा घर।
छोड़ा माँ बाबूजी के प्यारे सपनों का शहर।
सुशील कुमार शर्मा |
छोड़े वो हमदम वो गली वो मौहल्ले।
छोड़े वो दोस्तों के संग दंगे वो हल्ले।
छोड़े सभी पड़ोस के वो प्यारे से रिश्ते।
छूट गए प्यारे से वो सारे फ़रिश्ते।
छूटी वो प्यार वाली मीठी सी होली।
छूटी वो रामलीला छूटी वो डोल ग्यारस की टोली।
छूटा वो राम घाट वो डंडा वो गिल्ली।
छूटे वो ‘राजू ‘वो ‘दम्मू ‘वो ‘दुल्ली ‘.
छूटी वो माँ के हाथ की आँगन की रोटी।
छूटी वो बहनों की प्यार भरी चिकोटी।
छूट गई नदिया छूटे हरे भरे खेत।
जिंदगी फिसल रही जैसे मुट्ठी से रेत।
छूट गया बचपन उस प्यारे शहर में।
यादें शेष रह गईं सपनों के घर में।
यह रचना सुशील कुमार शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं | अापकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं :-1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान “द्रोणाचार्य “सम्मान 20122.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 20073.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 20024.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |