बिस्कोहर की माटी Biskohar Ki Mati By Vishwanath Tripathi

बिस्कोहर की माटी – विश्वनाथ त्रिपाठी



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बिस्कोहर की माटी पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ बिस्कोहर की माटी लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी जी के द्वारा लिखित है। इस पाठ में लेखक ने स्वयं के ऊपर बीते हुए बातों को और अपने गाँव बिस्कोहर के सौंदर्य के बारे में बहुत ही सुंदर और सजीव वर्णन किया है। यह पाठ विश्वनाथ त्रिपाठी जी की आत्मकथा नंगा तलाई का गाँव का एक अंश है। यह पाठ आत्मकथा शैली में लिखा गया बहुत ही रोचक और पाठनीय है। लेखक ने अपने उम्र के कई पड़ाव पार करने के बाद अपने जीवन में माँ, गाँव और आसपास के प्रकृति परिवेश का वर्णन करते हुए ग्रामीण जीवन शैली, लोककथाओं, लोकमान्यताओं को पाठक तक पहुंचाने की कोशिश की है | लेखक ने इस पाठ में गाँव के कई प्रकार के फूलों का वर्णन करते हुए उनके विशेषताओं को भी बताया है जैसे कमल के फूल जो तलाबों में उगता है इनके बीज, डंठल आदि खाए जाते हैं। इसका पत्ता भोजन परोसने के काम आता है कोइयाँ के फुल तालाबों गड्डों के जल में खिलता है। इसमें से मीठी गंध आती है। सिघाड़े का फूल जल में उगने वाला सफेद रंग का होता है। इसके फूल से ही सिघाड़ा का फल मिलता है, जिसे खाया जाता है। हरसिंगार के फूल शरत ऋतु में खिलता है। यह सफेद रंग का होता है तथा खुशबूदार फूल है। इसे पूजा फुल कहते हैं, यह परिजात तथा शेफाली के नामों से जाना जाता है। इसके फूल, पत्ते तथा छाल आयुर्वेद में उपयोगी होते हैं। कदंब के फूल संतरी रंग का होता है तथा इसमें सफेद रंग की छोटी-छोटी सफेद पंखुड़ियाँ होती  है। यह गुच्छे में होता है। सरसों के फूल  पीले रंग के होते हैं। इनसे तैलीय गंध आती है। इससे सरसों के बीज मिलते हैं। भरभंडा इसे सत्यनाशी भी कहा जाता है। यह पीले रंग का होता है।  बरसात में जब आँखों की बीमारी का प्रकोप फैलता है तो दवाई के रूप में काम आता है। जूही का फुल सफेद रंग का खुशबूदार होता है। इसे गजरा बनाने में प्रयोग में लाया जाता है। भगवान को भी इसके फूल चढ़ाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त लेखक ने तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, बैंगन, कोंहड़ा, शरीफ़ा, आम के बौर, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर के फूल, सेमल के फूलों का भी वर्णन किया है। जिसे सब्जियों के रूप में खाया जाता है। 
           

इसके अलावा लेखक ने गाँव के बिलों खेतों के मेड़ों में रहने वाले सांपो एवं बिच्छुओं का भी उल्लेख किया है | जैसे- धामिन, गेहुआँ, करैत, आदि। लेखक कहते हैं कि गाँव शहर की तरह सुविधायुक्त नहीं होते। बल्कि प्रकृति पर निर्भर होते हैं। और इस प्रकृति की सुंदरता को लेखक ने बड़े मनोयोग से जिया और प्रस्तुत किया है। एक तरफ लेखक ने फल फूल से परिपूर्ण प्रकृति संपदा का और दूसरी ओर बारिश के दिनों में बदहाल गाँव जो चारो तरफ पानी से भरा होता था। बाढ़ से पूरा गाँव तहस-नहस हो जाता था। उसका जिक्र करते हुए गाँव की तकलीफ़ को बताया है। 
         

बिस्कोहर की माटी
बिस्कोहर की माटी

लेखक का मानना है कि ग्रामीण जीवन में शहरी दवाइयों के जगह प्रकृति से प्राप्त फूल पत्तियों को उपयोगी बताया है। बिस्कोहर में गर्मी, वर्षा और शरद ऋतु में होने वाली दिक्कतों का भी लेखक के मन में गहरा प्रभाव पड़ा है। जिसका उल्लेख पाठ में मिलता है। लेखक ने अपने बारे में एक  बात बताते हुए कहा है कि जब लेखक दस वर्ष के थे तब अपने से दस वर्ष बड़ी लड़की को देखा तब उनके मन में उठे, बसे भावों,  संवेगों से अमिट प्रभाव व उसकी मार्मिक प्रस्तुति के बीच संवादो की यथावत आंचलिक प्रस्तुति अनुभव की सत्यता और नैसर्गिक की उद्धोतक है। इस पाठ में लेखक ने माँ और बच्चे के बीच के संबध का गहरा चिंतन किया है लेखक कहते हैं की सभी बच्चों का अपनी माँ के प्रति बहुत गहरा सम्बंध होता है। यह संबंध  बच्चे का माँ की कोख में आने के साथ ही जुड़ जाता है।  जब बच्चा जन्म लेता है तो अपने माँ के दूध पर ही निर्भर होता है। वह शून्य से  छः माह तक माँ का ही दूध  अनिवार्य रूप से पीता है। जो अगले तीन साल तक पी सकता है।  माँ अपने बच्चे को दूध पिलाते समय अपने आँचल की छाँव में छुपा कर रखती है उसे अपने सीने से लगा कर दुध पिलाती है । इससे माँ-बच्चे के बीच संबंध गहरा रहता है। बच्चा  अपने माँ के साथ ही रोता, हँसता, खेलता, खाता, पीता बड़ा होता है। बच्चा माँ के आँचल में दूध पीता हुआ अपनी माँ के स्पर्श तथा गरमाहट को महसूस करता है।  बच्चा अपने जीवन के हर एक पल, हर खुशी-गम भूख, आँसु, सभी  क्रियाओं में माँ ही साथ होती है। माँ बच्चे के हर एक छोटी-छोटी क्रिया से खुश होती है। बच्चा माँ की गोद में सुकून से रहता है माँ बच्चे को गोद में लेकर अपनी ममता उस पर न्यौछावर कर देती है। 
         

लेखक ने आगे एक ठुमरी के बारे में कहा है यह ठुमरी बड़े गुलाम अलीखाँ साहब ने गाई है। जिसमें एक औरत व्याकुल नज़र आती है। सफ़ेद रंग की साड़ी पहने, काले घने बाल संवारे हुए, आँखों में नमी भरी हुई अपने साजन का इंतजार करती है। जिसे सुनकर हृदय रोने लगता है। इस स्मृति के साथ मृत्यु का बोध अजीब तौर पर जुड़ा हुआ है। पूरी रचना में लेखक ने अपने देखे महसूस किए हुए यथार्थ को प्रकृति सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक की शैली अपने आप में अनूठी और  बिल्कुल नई है । त्रिपाठी जी ने अपना पूरा जीवन गाँव में बिताया है और अपने गाँव बिस्कोहर की मिट्टी की और वहाँ की सुंदरता गाँव में होने वाले समस्याओं और बदलते मौसम वहाँ का रहन-सहन खान-पान और रातों की चाँदनी भरी फूलों की मधुर मंत्रमुग्ध खूशबू इन सभी का वर्णन किया है | 

विश्वनाथ त्रिपाठी का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी जी हैं। विश्वनाथ त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के बिस्कोहर नामक गाँव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा पहले गाँव में, फिर बलरामपुर कस्बे में प्राप्त की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के

विश्वनाथ त्रिपाठी
विश्वनाथ त्रिपाठी

लिए कानपुर और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी गए। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से पी.एच.डी. की उपाधि ग्रहण की। तत्पश्चात् उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया और मुख्य परिसर में अध्यापन कार्य से जुड़े रहे। और यहीं से वे सेवा में रहकर लेखन कार्य करने लगे। त्रिपाठी जी की भाषा और साहित्य दोनों गंभीर हैं। उनकी  पहली किताब हिन्दी आलोचना आज भी, अपनी मौलिकता, दृढ़ता से ईमानदार अभिव्यक्ति है। सटीक और व्यापक विश्लेषण के कारण अपने क्षेत्र में अद्वितीय है । उनके अनेक कविता-संग्रह है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ उन्होंने अद्दहमान (अब्दुल रहमान) के अपभ्रंश काव्य सन्देश रासक का संपादन किया था। कविताएँ 1963, कविताएँ1964 और कविताएँ 1965 अजित कुमार के साथ व हिंदी के प्रहारी रामविलास शर्मा अरुण प्रकाश के साथ संपादित की। उनकी एक पुस्तक व्योमकेश दरवेश प्रकाशित हुई जो हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक एवं साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पर केंद्रित है। त्रिपाठी जी को गोकुलचंद्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार , डॉ॰ रामविलास शर्मा सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, साहित्य सम्मान – हिन्दी अकादमी द्वारा, व्यास सम्मान ,भाषा सम्मान – साहित्य अकादमी द्वारा भारत भारती सम्मान से सम्मानित किया गया है | 

इनके प्रमुख कृतियाँ हैं — हिन्दी आलोचना, लोकवादी तुलसीदास, प्रारम्भिक अवधी, मीरा का काव्य ,हरिशंकर परसाई, पेड़ का हाथ, गुरुजी की खेती-बारी, देश की इस दौर में, जैसा कह सका आदि…|| 


बिस्कोहर की माटी के प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 कोइयाँ किसे कहते हैं ? उसकी विशेषताएँ बताइए |

उत्तर- कोइयाँ  तलाबों, गड्डों के जल में उगने  वाला एक प्रकार  का पुष्प है। इसे ‘कुमुद’ तथा ‘कोका-बेली’  भी कहते हैं।
कोइयाँ की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं — 
• कोइयाँ पानी से भरे गड्ढे में भी उग जाती है।
• इसकी खुशबू  मनमोहक होती है।
• शरद ऋतु की चाँदनी में तालाबों में उस चाँदनी की  जो छाया बनती है, वह कोइयों की पत्तियों के समान लगती है। दोनों एक समान दिखाई देती हैं।

प्रश्न-2 ‘बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ़ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है’ —  टिप्पणी कीजिए | 

उत्तर- सभी बच्चों का अपनी माँ के प्रति बहुत गहरा सम्बंध होता है। यह संबंध  बच्चे का माँ की कोख में आने के साथ ही जुड़ जाता है। जब बच्चा जन्म लेता है तो अपने माँ के दूध पर ही निर्भर होता है। वह शून्य से छः माह तक माँ का ही दूध अनिवार्य रूप से पीता है। जो अगले तीन साल तक पी सकता है। माँ अपने बच्चे को दूध पिलाते समय अपने आँचल की छाँव में छुपा कर रखती है | उसे अपने सीने से लगा कर दुध पिलाती है। इससे माँ-बच्चे के बीच संबंध गहरा रहता है। बच्चा  अपने माँ के साथ ही रोता, हँसता, खेलता, खाता, पीता बड़ा होता है। बच्चा माँ के आँचल में दूध पीता हुआ अपनी माँ के स्पर्श तथा गरमाहट को महसूस करता है। बच्चा अपने जीवन के हर एक पल, हर खुशी-गम भूख, आँसु, सभी  क्रियाओं में माँ ही साथ होती है। माँ बच्चे के हर एक छोटी-छोटी क्रिया से खुश होती है। बच्चा माँ की गोद में सुकून से रहता है माँ बच्चे को गोद में लेकर अपनी ममता उस पर न्यौछावर कर देती है | 

प्रश्न-3 बिसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार बिसनाथ अभी बहुत छोटे थे। माँ के दूध का सेवन ही कर रहे थे कि उनके छोटे भाई का जन्म हो गया। छोटे भाई के आ जाने से उन्हें माँ ने दूध पिलाना बंद कर दिया । अब  उनके माँ का दूध उनका छोटा भाई पीने लगा था। और उन्हें माँ से दूर होना पड़ा इसलिए बिसनाथ इसे स्वयं पर अत्याचार कहते हैं। छोटा भाई माँ का दूध पिता और बिसनाथ को गाय का बेस्वाद दूध पीना पड़ता था। 

प्रश्न-4 गर्मी और लू से बचने के उपायों का विवरण दीजिए। क्या आप भी उन उपायों से परिचित हैं ? 

उत्तर- गर्मी और लू से बचने के लिए निम्नलिखित उपाए किए जाते हैं — 

• धोती तथा कमीज़ में गाँठ लगाकर प्याज़ बाँध दिया जाता है।
• लू से बचने के लिए कच्चे आम का पन्ना पिया जाता है।
• कच्चे आम को भूना कर। गुड़ तथा चीनी के साथ उसका शरबत बनाकर पीते है। 
• कच्चे आम को भुनकर शरीर पर लगाया जाता था तथा उससे नहाया भी जाता है।
• कच्चे आम को भूनकर या उबालकर गर्मियों के समय उससे सिर को भी धोया जाता है। 

जी हाँ, हम प्याज और आम के उपायों से परिचित हैं। 

प्रश्न-5 लेखक बिसनाथ ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार बत्तख अंडे देते समय पानी से बाहर आ जाती है। अण्डे देने के बाद अपने अंडों को सेती है जब तक अंडे से बच्चे बाहर ना निकल जाए। बत्तख अपने अंडों को अपने पंखों के बीच में रखती है सबसे बचाकर वह अपने अंडों तथा बच्चों की सुरक्षा के लिए बहुत सतर्कता तथा कोमलता से कार्य करती है। और अपने बच्चों पर कड़ी नजर रखती है ताकि उनको कोई नुकसान न पहुँचा सके। ऐसे ही बिसनाथ की माँ भी करती है। वह अपने बच्चे की बहुत अच्छे से देखभाल करती है। वह उसे दूध पिलाती है। अपने साथ सुलाती है। उसका हर कार्य करती है। इसी कारण लेखक बिसनाथ ने अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है | 

प्रश्न-6 बिस्कोहर में हुई बरसात का जो वर्णन बिसनाथ ने किया है उसे अपने शब्दों में लिखिए ? 

उत्तर- लेखक कहते हैं कि बिस्कोहर में बरसात सीधे नहीं होती है। बिस्कोहर में पहले आकाश में बादल घिर जाते हैं। उसके बाद वह गड़गड़ाहते लगते हैं। दिन में आकाश में बादल छा जाए तो लगता है रात हो गई है। बहुत तेज़ बारिश होने लगती है। बारिश का स्वर तबला, मृदंग तथा सितार जैसा सिनाई देता है। लेकिन जब तेज़ बारिश होने लगती  है, तो लगता है मानो दूर से घोड़े भागे चले आ रहे हों।यहाँ वर्षा एक दिन होकर बंद नहीं होती है। कई दिनों तक होती रहती है। बारिश के कारण किसी के घर के मकान गिर जाते हैं तो  कभी जमीन धंस जाती है। नदियों में पानी उछाल मारने लगती है ।बाढ़ आ जाती है। चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगती है गाँव के सभी पशु-पक्षी बरसात का आनंद उठाते हुए यहाँ से वहाँ भागते दिखाई देते हैं। पहली बरसात में भीगने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं। गाँव लोगों का ऐसा भी मानना है | 

प्रश्न-7 ‘फूल केवल गंध ही नहीं देते दवा भी करते हैं’, कैसे ? 

उत्तर-  लेखक के अनुसार लोगों का मानना है कि सारे फूल अपने रंग तथा गंध के कारण पहचाने जाते हैं। लेखक सिर्फ फूलों के  रंग एवं गंध की बात को नकारता है। वह कहता है कि फूल केवल गंध नहीं देते, वह दवा भी करते हैं। वह भरभंडा नामक फूल के बारे में बताते हैं । इस फूल से निकलने वाला दूध गर्मी के दिनों में आँखे आने पर दवा का काम करता है। इसे आँख में निचोड़ देने से आँख की बीमारी सही हो जाती है। नीम के फूल चेचक के मरीज को ठीक कर सकते हैं। बेर के फूलों को सूँघने मात्र से ही बर्रे-ततैये का डंक अपने आप झड़ जाता है। लेखक फूलों के महत्व को बताते हुए दवा का उल्लेख करते हैं। 

प्रश्न-8 ‘प्रकृति सजीव नारी बन गई’- इस कथन के संदर्भ में लेखक की प्रकृति, नारी और सौंदर्य संबंधी मान्यताएँ सपष्ट कीजिए | 

उत्तर- लेखक की प्रकृति, नारी और सौंदर्य संबंधी कुछ मान्यताएँ हैं। जो आपस में  जुड़ी हुई है। जब लेखक दस बरस का था, तो उसने एक स्त्री को देखा था। वह उससे दस वर्ष बड़ी थी। उसका सौंदर्य अद्भुत था। लेखक कहते हैं कि संतोषी भईया के घर के बाहर आँगन में एक जूही की लता लगी थी। उससे आने वाली मनमोहक सुंगध लेखक के प्राण को भी महका देती थी। लेखक को चाँदनी में सफेद फुल ऐसे लगते हैं मानो पेड़ों  लताओं ,खिले फूलों में चाँदनी  खुद उतर आयी  हो वहाँ लेखक को औरत एक औरत के रूप में नही बल्कि जूही की लता बन गई चाँदनी के रूप में दिखाई देती है। फुलों की खुशबू आ रही थी प्रकृति सजीव नारी बन गई थी। और लेखक नारी में आकाश, चाँदनी, सुगंधि सब देख रहे थे। लेखक प्रकृति में उस औरत को और औरत को प्रकृति के रूप में देखता है | 

प्रश्न-9 ऐसी कौन सी स्मृति है जिसके साथ लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है ? 

उत्तर- लेखक कहते हैं कि बड़े गुलाम अलीखाँ साहब ने एक पहाड़ी ठुमरी गाई है। जिसमें एक औरत व्याकुल नज़र आती है। सफेद रंग की साड़ी पहने, काले घने बाल संवारे हुए, आँखों में नमी भरी हुई अपने साजन का इंतजार करती है। जिसे सुनकर हृदय रोने लगता है। इस स्मृति के साथ मृत्यु का बोध अजीब तौर पर जुड़ा हुआ है। 

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योग्यता विस्तार

प्रश्न-1 पाठ में आए फूलों के नाम, साँपों के नाम छाँटिए और उनके रूप, रंग, विशेषताओं के बारे में लिखिए | 

उत्तर- पाठ में आए फूलों के नाम इस प्रकार हैं — 

• कमल — इसके बीज, डंठल आदि खाए जाते हैं। इसके पत्ता भोजन परोसने के काम आता है।
• कोइयाँ — यह  तालाबों गड्डों के जल में खिलता है। इसमें से मीठी गंध आती है।
• सिघाड़े का फूल — जम में उगने वाला फूल सफेद रंग का होता है। इसके फूल से ही सिघाड़ा का फल मिलता है, जिसे खाया जाता है।
• हरसिंगार — यह शरत ऋतु में खिलता है। यह सफेद रंग का होता है तथा खुशबूदार फूल  है। इसे पूजा फुल कहते हैं यह परिजात तथा शेफाली के नामों से जाना जाता है। इसके फूल, पत्ते तथा छाल आयुर्वेद में उपयोगी होते हैं। 
• कदंब के फूल — यह संतरी रंग का होता है तथा इसमें सफेद रंग की छोटी-छोटी सफेद पंखुड़ियाँ होती  है। यह गुच्छे में होता है।
• सरसों के फूल — यह पीले रंग के होते हैं। इनसे तैलीय गंध आती है। इससे सरसों के बीज मिलते हैं।
• भरभंडा — इसे सत्यनाशी भी कहा जाता है। यह पीले रंग का होता है।  बरसात में जब आँखों की बीमारी का प्रकोप फैलता है तो दवाई के रूप में काम आता है। 
• जूही — यह सफेद रंग का खुशबूदार होता है। इसे गजरा बनाने में प्रयोग में लाया जाता है। भगवान को भी इसके फूल चढ़ाए जाते हैं। 

इसके अतिरिक्त लेखक ने तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, बैंगन, कोंहड़ा, शरीफ़ा, आम के बौर, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर के फूल, सेमल के फूलों का भी वर्णन किया है | 

साँपों के नाम इस प्रकार हैं — 
• डोंड़हा — यह विषहीन साँप हैं। इसे मारा नहीं जाता है। यह वामन जाति का कहलाता है।
• मजगिदवा — यह विषहीन साँप हैं।
• धामिन — यह लंबा होता है। यह भी विषहीन होता है। यदि मुँह से कुछ पकड़कर अपनी पूँछ मारे दे तो वह अंग सड़ जाता है।
• गोंहुअन — इसे फेंटारा नाम से भी जानते हैं। 
• घोर कडाइच — यह किसी को काट ले तो मनुष्य घोड़े की तरह हिनहिनाकर मर जाता है।

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बिस्कोहर की माटी पाठ से संबंधित शब्दार्थ 

भसीण – कमलनाल, कमल का तना
कुमुद – जलपुष्प, कुइयाँ, कोकाबेली
सिंघाड़ा – जलफल, काँटेदार फल पानी में उगता है .
बतिया – फल के अविकसित रूप 
प्रयोजन – उद्देश्य
कथरी – बिछौना
साफ-सफ्फाक – साफ और स्वच्छ
इफरात – अधिकता
भिंटो – टीले ढूह
बरहा – खेतो की सिंचाई के लिए बनाई गई नाली
सुबुकना – धीमे स्वर में रोना
• आँख आना – गर्मियों के मौसम में आँख का रोग होना .
थिरकना – नाचना
अगाध – भरपूर
• आद्र – नमी  | 



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