बोतल में बंद पन्ने | विज्ञान कथा

बोतल में बंद पन्ने

मेरा घर समुद्र-तट के पास है । यह सन् 2500 का साल है । आज सुबह जब मैं समुद्र-तट पर टहल रहा था तो मुझे बड़े ढक्कन वाली प्लास्टिक की एक बोतल मिली जिसके भीतर कुछ पन्ने घुसे हुए थे । उत्सुकतावश मैंने काई लगी उस बोतल का ढक्कन खोल कर वे पृष्ठ निकाल लिए । उन में नीले बॉल-पेन से अंग्रेज़ी में कुछ लिखा हुआ था ।
मैं आप को बता दूँ कि वर्ष 2350 में भीषण गर्मी की वजह से ध्रुवों पर जमी बर्फ़ पिघलने से समुद्रों का जल-स्तर कई मीटर ऊपर उठ गया था । यह महा-विनाश कई महीनों तक क़ायम रहा जिसकी वजह से धरती पर रहने वाली आधी से अधिक आबादी भयावह बाढ़ की चपेट में आ कर मारी गई थी । जो लोग उस महा-प्रलय से बच पाए , उन्होंने भीषण बाढ़ से बर्बाद हो चुकी धरती पर दोबारा जीवन जीने के लिए संघर्ष शुरू किया ।
बोतल में बंद पृष्ठ उसी महा-विनाश के समय के प्रतीत हो रहे थे। अब मैं आपके समक्ष उन पन्नों का हिंदी अनुवाद ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
बोतल में बंद नोट्स —-
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19 जुलाई , 2350 :
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पिछले तीन दिनों से पूरी दुनिया में भयानक बाढ़ आई हुई है । यह बाढ़ नहीं बल्कि महा-प्रलय प्रतीत हो रहा है । इस साल सभी देशों में तापमान 55 डिग्री को पार कर गया और लाखों लोग भीषण गर्मी से मारे गए ।
पता चला है कि विश्व का औसत तापमान भी कई डिग्री बढ़ जाने के कारण ध्रुवों पर जमी सैकड़ों मीटर मोटी बर्फ़ की चादर पिघल गई है जिससे पिछले तीन दिनों में समूची दुनिया भयानक बाढ़ की विनाश-लीला की चपेट में आ गई है । दुनिया के समुद्रों में जल-स्तर कई मीटर ऊपर बढ़ गया है जिसकी वजह से दुनिया के नक़्शे से कई निचले इलाक़े वाले देशों की आबादी का डूबने से सफ़ाया हो गया है ।
20 जुलाई , 2350 :
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बोतल में बंद पन्ने
बोतल में बंद पन्ने 

आज मेरा शहर आधा से ज़्यादा डूब चुका है । मैं अपनी जान बचाने के लिए भाग कर एक बहुमंज़िली इमारत की ऊपरी मंज़िल में चला आया हूँ । कई आधे-अधूरे परिवारों के बिलखते हुए लोग भी यहाँ तक पहुँच पाए हैं । कहीं पति की मृत्यु हो गई है और केवल रोती हुई पत्नी और बच्चे बचे हैं । कहीं पत्नी और बच्चे डूब गए हैं और कोई अभागा पति अपनी जान बचा कर यहाँ तक पहुँच पाया है । चारों ओर भय और संत्रास का माहौल है । जल-स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है । बाढ़ का पानी हमारी मंजिल से कुछ ही मीटर नीचे रह गया है । हे ईश्वर , हमारी रक्षा करो ।

21 जुलाई , 2350 :
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आज बाढ़ का बढ़ता हुआ पानी हमारी मंज़िल पर भी पहुँच गया ।मैं और बाक़ी लोग अब इमारत की खुली छत पर भाग आए हैं । खाने-पीने का सामान नहीं के बराबर है । एक हेलिकॉप्टर हफ़्ते में एक बार बहुमंज़िली इमारतों की छत पर फँसे लोगों के लिए राहत-सामग्री गिरा कर चला जाता है , जो पर्याप्त नहीं है । यदि बाढ़ का पानी कुछ मीटर और बढ़ा तो छत के साथ-साथ हममें से अधिकांश लोग डूब कर मर जाएँगे । केवल वे ही बचेंगे जिन्हें तैरना आता है । ईश्वर हमारी रक्षा करे ।
22 जुलाई , 2350 :
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आज लगातार बढ़ता बाढ़ का पानी इस बहुमंज़िली इमारत की छत पर भी पहुँच गया । चारों ओर चीख-पुकार मची हुई थी । जिन्हें तैरना नहीं आता था वे गिड़गिड़ा कर तैरने वालों से अपनी जान बचाने की गुहार लगा रहे थे । जिन्हें तैरना आता था वे बाढ़ के हहराते पानी के मलबे और बहते शवों के बीच से हो कर तैरते हुए पास में ही मौजूद एक इससे भी ऊँची इमारत की खुली छत पर पहुँच गए । कई लोग तैरने वालों की पीठ पर सवार हो कर बच गए । मैंने भी एक बच्चे को अपनी पीठ पर बैठा कर पानी में तैर कर अपनी जान बचाई और ज़्यादा ऊँची इमारत की छत पर जा कर शरण ली । त्रासदी यह रही कि पिछली बहुमंज़िली इमारत की छत पर मौजूद वे अधिकांश लोग जिन्हें तैरना नहीं आता था , बाढ़ के पानी में डूब कर मारे गए । हे ईश्वर , मुझे इस महाप्रलय से बचाओ ।
23 जुलाई , 2350 :
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क्या पूरी दुनिया का अंत हो जाएगा ? क्या धरती से इंसान का अस्तित्व उसी तरह समाप्त हो जाएगा जैसे एक ज़माने में यहाँ मौजूद डायनासोर विलुप्त हो गए ? इस भीषण बाढ़ के हहराते जल का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है । इस नई इमारत की छत पर भी अब ख़तरा मंडरा रहा है । पास की सभी बहुमंज़िली इमारतें पहले ही बाढ़ के पानी में डूब चुकी हैं । यदि यह जल-स्तर यूँ ही ऊपर बढ़ता रहा तो शायद इस छत पर मौजूद कोई शख़्स जीवित नहीं बचेगा । ऐसा इसलिए होगा क्योंकि अब दूर-दूर तक इससे ऊँची कोई बहुमंज़िली इमारत नहीं है । प्रभु , हमें इस विनाश-लीला से बचाओ ।
24 जुलाई , 2350 :
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अब बाढ़ का पानी हमारी इमारत की छत पर भी पहुँच गया है । हमारे जीवित बचने की सारी सम्भावनाएँ धूमिल हो गई हैं । मैं अपनी डायरी के ये पृष्ठ बड़े ढक्कन वाले इस प्लास्टिक की बोतल में बंद करके बाढ़ के हहराते जल में फेंक रहा हूँ । शायद इस महाप्रलय से बचे हुए किसी व्यक्ति को बाद में यह बोतल मिल जाए । मैं अब डूब कर मरने से पहले ईश्वर से अंतिम प्रार्थना करने जा रहा हूँ …”
यहीं पर उस बोतल में मौजूद अंतिम पृष्ठ पर लिखी अंतिम पंक्ति ख़त्म हो जाती है । आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व आई उस भयावह और त्रासद विनाश-लीला का यह जीवंत दस्तावेज़ है । मैं इसे अपने शहर के बड़े पुस्तकालय के हवाले करने जा रहा हूँ ।
प्रसन्नता इस बात की है कि उस भीषण तबाही के बाद बचे लोगों ने धरती पर जीवन जीने का संघर्ष फिर से शुरू कर दिया था । आज उस विनाश-लीला में मारे गए अरबों लोगों की मृत्यु के बावजूद इंसान धरती पर फिर से फल-फूल रहे हैं । उम्मीद अभी बाक़ी है । 
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प्रेषक :
सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी,
वैभव खंड,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद-201014
उ. प्र.
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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