भारत में लोकतंत्र का भविष्य पर निबंध | Indian Democracy Essay In Hindi

भारत में लोकतंत्र का भविष्य पर निबंध

भारत में प्रजातंत्र का भविष्य निबंध भारत में लोकतंत्र का भविष्य पर निबंध features of democracy principles of democracy bharat ka bhavishya  – २६ जनवरी १९५० ई. को भारत का संविधान लागू हुआ और भारत एक सर्व प्रभुत्व संपन्न गणराज्य के रूप में उभरा। भारत में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गयी तथा लोकसभा और राज्यसभा के रूप में दो सदन स्थापित किये गए। प्रान्तों में भी विधान सभाओं और विधान परिषद् की व्यवस्था की गयी गयी थी परन्तु कालांतर में अनेक राज्यों ने विधान परिषद् को अनुपयोगी मानकर इस सदन को भंग कर दिया। संविधानिक दृष्टि से केंद्र में राष्ट्रपति और प्रान्त में राज्यपाल सर्वोच्च अधिकारी है परन्तु व्यवहार में प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्रीमंडल केंद्र में तथा मुख्यमंत्री और उनका मंत्रीमंडल प्रान्तों में सर्वोच्च शक्ति के प्रतिक है। जिस दल का बहुमत होता है उसी दल को प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री बनाया जाता है। गत ७० वर्षों से भारत का प्रजातंत्र निर्विवाद रूप से कार्य कर रहा है और विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्र होने का गौरव प्राप्त है। 

सत्ता परिवर्तन शांतिपूर्ण

प्रजातांत्रिक व्यवस्था निश्चय ही अधिक मानवीय एवं न्यायपरक है। प्रजातंत्र में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं और मतदान के समय इसकी पुष्टि होती है। प्रजातंत्र में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि जनता की आशाओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक होते हैं। जनमत की अभिव्यक्ति संसद तथा विधानमंडल में सत्रों में होती है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था एक खुली शासन व्यवस्था है जिसमें जनता को यह जानने का अधिकार रहता है कि उसके चुने प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में आतंक ,हिंसा ,उपद्रव एवं शक्ति प्रदर्शन के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि इस व्यवस्था का आधार सहमती अथवा बहुमत की स्वीकृति है। सत्ता परिवर्तन के लिए हिंसक उपायों का अपनाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है क्यों प्रजातंत्र में सत्ता परिवर्तन मतदान ही होना चाहिए। 

चुनावों में सुधार आवश्यक

भारत में लोकतंत्र का भविष्य पर निबंध | Indian Democracy Essay In Hindi

भारत एक विशाल राष्ट्र है जिसकी जनसँख्या १३५ करोड़ को पार कर चुकी है। वयस्क मताधिकार के आधार पर यहाँ हर पाँच वर्ष के पश्चात चुनाव करवाए जाते हैं। चुनाव प्रक्रिया चुनाव आयुक्त की देख रेख में चुनाव आयोग करवाता है। चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है जिस पर सरकार का सीधा अधिकार नहीं है। चुनाव प्रायः निष्पक्ष ढंग से एवं स्वतंत्र होते हैं। चुनाव प्रक्रिया गत कुछ वर्षों से अधिक दूषित होती जा रही है। पैसे का महत्व चुनावों में बढ़ता जा रहा है। राजनीति में अपराधीकरण तेज़ी से हो रहा है ,जिसके परिणामस्वरूप चुनावों में चुनाव केन्द्रों पर अवैध कब्ज़ा करने ,अवैध मतदान करने और चुनाव अधिकारियों को डराने धमकाने की घटनाएँ बढने लगी। कमजोर वर्गों को चुनाव केन्द्रों तक जाने से रोकना ,शराब आदि बाँटकर मतदाताओं को गुमराह करना और आतंक फैलाकर मतदाताओं को चुनाव केन्द्रों पर जाने से रोकना भी आम बात हो गयी है। भारत के प्रजातंत्र की सफलता के लिए चुनावों में सुधार आवश्यक है। 

भारत में अधिकाँश लोग अनपढ़ है। अशिक्षित लोग भावना में बहकर भी मतदान कर सकते हैं। संसद और विधान सभाओं में चुने हुए प्रतिनिधिओं का अभद्र व्यवहार भी इसी कारण से है। राजनीति का अपराधीकरण होने से अधिक अपराधी विधान सभाओं और लोक सभा के लिए चुने जाते हैं। चुने जाने वाले प्रतिनिधिओं का शैक्षिक स्तर निश्चित किया जाना चाहिए और नए विधायकों तथा सांसदों के प्रशिक्षण का प्रबंध होना चाहिए। 

लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका

प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। भारत में अनेक राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दल है। प्रायः ये दल सम्प्रदाय ,जाति ,क्षेत्र अथवा संकीर्ण मांगों को उठाकर वोट मांगते हैं। धर्म और राजनीति के तालमेल से राष्ट्र का धर्म निरपेक्ष स्वरुप बिगड़ रहा है। सभी दलों के लिए आचार संहिता बननी चाहिए और उसका उलंघन करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। 
भारतीय प्रजातंत्र में कमजोर वर्गों तथा अल्पसंख्यक के उत्थान के लिए विशेष व्यवस्था की गयी है। सभी भारतीयों का कर्तव्य है कि कमजोर वर्गों के उत्थान में सहायक बने। शिक्षा और रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करने की आवश्यकता है। भारतीय नारी आज समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। नारियों को हर प्रकार के प्रोत्साहन की आवश्यकता है। 

लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां

भारतीय प्रजातंत्र के सम्मुख साम्प्रदायिकता ,पृथकता ,क्षेत्रवाद ,भाषावाद एवं जातिवाद की चुनौतियां हैं। जनसँख्या को नियंत्रित करने ,आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने और जन कल्याण के कार्यक्रम को बढ़ाने की भी आवश्यकता है। विदेशी शक्तिओं से सीमाओं की रक्षा का प्रश्न भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना विदेशी कंपनियों द्वारा भारतीय अर्थ व्यवस्था पर अधिकार ज़माने के प्रयास हो रहे हैं। आज आतंकवाद की चुनौती सबसे भयंकर है। निश्चय ही भारतीय प्रजातंत्र में इतनी क्षमता है कि वह इन चुनौतियों का सामना कर सके और समय की आवश्यकताओं के रूप में अपने को ढाल सके। सारे विश्व की आँखें भारत के प्रजातंत्र पर लगी है। 

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