फूलों के ढेर पर
भिनभिनाती मधुमक्खी
रगड़कर पैर
पंख फैलाकर
लाँघकर दीवारें
चूसती
रस की कटोरी !
हवा
सरसराकर
उड़ाकर धूल
तिनके भी
घास के
कागज के टुकड़े
अनगिनत फैंकती
मधुमक्खी पर ,
कभी कंटीली
झाड़ियाँ उखाड़कर
सूखे पत्ते
कड़कड़ाकर डराती !
अशोक बाबू माहौर |
खामोश मधुमक्खी
पंख घुमाकर
झेलती हजारों आफदाएँ
अडिग ,
हठीली बनकर
बाँधकर गठरी
रस की
ले जाती
फरफराकर ,
हवाओं को टक्कर मारकर
अँगूठा दिखाकर
अपने घर !
यह रचना अशोक बाबू माहौर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . आप लेखन की विभिन्न विधाओं में संलग्न हैं . संपर्क सूत्र –ग्राम – कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111 , ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.com