भीष्म को क्षमा नहीं किया गया

भीष्म को क्षमा नहीं किया गया निबंध – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

भीष्म को क्षमा नहीं किया गया आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भीष्म को क्षमा नहीं किया गया निबंध का सारांश भीष्म को क्षमा नहीं किया गया निबंध के प्रश्न उत्तर bhishma ko kshama nahi kiya gaya summary bhishma ko kshama nahi kiya gaya question answer bhishma ko kshama nahi kiya gaya notes

भीष्म को क्षमा नहीं किया गया निबंध का सारांश

भीष्म को क्षमा नहीं किया गया ,निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा लिखा गया है। आचार्य जी हिंदी के प्रमुख निबंध लेखकों में से हैं। आपने इस समस्या पर विचार किया है कि भीष्म को अवतार क्यों नहीं माना गया। निबंध में प्रारंभ में द्विवेदी जी का एक मित्र उन्हें वर्तमान परिस्तिथितियों की विकृतियों पर खुल कर बोलने के लिए कहता था। मित्र का कहना है कि यदि आचार्य एक साहित्यकार होने के नाते देश की दुर्दशा करने वाले विरुद्ध अपने विचार व्यक्त नहीं करेंगे तो निश्चय ही भविष्य उन्हें क्षमा नहीं करेगा। द्विवेदी जी अपने मित्र की इस बात पर विचार करते हुए कहते हैं कि भविष्य की चिंता तो भीष्म जैसे बड़े लोगों को करनी चाहिए थे। अपने विषय में वे आश्वासत है कि वे महान नहीं हैं और भविष्य उनके विषय में कभी कुछ नहीं सोचेगा। 
भीष्म को क्षमा नहीं किया गया निबंध - आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

आचार्य द्विवेदी जी सोचते हैं कि हमारी परंपरा में भीष्म पितामह को अवतार क्यों नहीं माना गया जबकि उनके चरित्र में अनेक विशेषताएँ थी। भीष्म पितामह का इतिहास बोध अत्यंत प्रखर था। युधिष्ठिर के हर प्रश्न का उत्तर वे ऐतिहासिक उदाहरणों के द्वारा देते हैं।  वर्तमान समस्याओं का विशलेषण वे प्राचीन इतिहास के परिप्रेक्ष्य में करते हैं। ज्ञान और धर्म के सच्चे रूप को पहचानने में भी भीष्म पितामह ने कभी गलती नहीं की है। राष्ट्र ने भीष्म अष्टमी मनाकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की है। भीष्म पितामह हमारे महान पूर्वजों में से एक थे जिनके चरित्र में अनेक अनुकरणीय बाते थी। भीष्म पितामह ने राजकुमार देवव्रत के रूप में भीष्म प्रतिज्ञा करके जो अपूर्व त्याग किया वह पितृभक्ति का आदर्श स्थापित करता है। भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा को प्रतिकूल परिस्थितियों में निभाकर अपनी दृढ़ता का परिचय दिया। उनकी शूरवीरता अद्वितीय थी और उन्होंने परशुराम जो भी युद्ध में पराजित किया था। भीष्म पितामह का शाश्त्र ज्ञान भी विस्तृत था और अपने कथन की पुष्टि के लिए वे प्राचीन इतिहास से निरंतर उदाहरण देते रहते थे। उनका चरित्र अनुकरणीय था। 

लेखक के अनुसार भीष्म के चरित्र में कुछ कमियां भी थी। पहली बात तो यह थी कि वे व्यक्तिगत प्रतिज्ञा को जन कल्याण से अधिक महत्व देते रहे। हमारे यहाँ समाज की रक्षा के लिए व्यक्ति के त्याग को महत्व दिया गया। अपनी प्रतिज्ञा के वंशघाती और राष्ट्रघाती परिणामों को समझते हुए भी उन्होंने कभी अपनी प्रतिज्ञा पर राष्ट्रहित में पुनर्विचार नहीं किया। उनके चरित्र की दूसरी कमजोरी यह थी कि वे उचित अनुचित का निर्णय नहीं ले पाते थे। काशीराज की कन्याओं के अपहरण की बात हो अथवा धृतराष्ट्र की सभा में द्रोपदी को निर्वासन करने के बात ,वे अपना कर्तव्य निश्चत नहीं कर सके। वे सोचते तो बहुत कुछ थे ,परन्तु उस के अनुसार कार्य करने से चूक जाते थे ,इसीलिए उनका दुविधाग्रस्त व्यक्तित्व बना रहा। वे पितामह थे ,इसीलिए द्रोणाचार्य की तरह आजीविका का प्रश्न नहीं था ,वे कर्ण की तरह दुर्योधन के आभारी या आश्रित भी नहीं थे फिर भी उन्होंने कभी खुल कर दुर्योधन का विरोध नहीं किया जोकि अनुचित कार्य था। उनकी अस्पष्ट नीतियों के कारण अंततः महाभारत का युद्ध हुआ और उन्होंने यह जानते हुए भी दुर्योधन अधर्म और अन्याय के मार्ग पर हैं उसका साथ दिया और कौरव सेना का नेतृत्व किया। 
विद्वान लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि भीष्म पितामह के चरित्र में अनेक अच्छाईया होते हुए भी उन्हें अवतार न मानना ठीक था जो व्यक्ति उचित – अनुचित ,कर्तव्य – अकर्तव्य का निर्णय न कर सके और जनहित में व्यक्तिगत अहम् को न डूबा सके उसे अवतार कैसा माना जा सकता है ?

भीष्म को क्षमा नहीं किया गया निबंध के प्रश्न उत्तर

प्र. देवव्रत का नाम भीष्म कैसा पड़ा ?
उ. राजकुमार देवव्रत ने अपने पिता शांतनु का विवाह धीवर की कन्या सत्यवती से करवाने के लिए ,धीवर की दो शर्तों को स्वीकार किया। पहली शर्त थी कि वे स्वयं गद्दी पर नहीं बैठेंगे बल्कि सत्यवती की संतान को ही गद्दी पर बैठने का अधिकार देंगे। दूसरी शर्त थी कि उनकी संतान भी गद्दी पर अपना अधिकार नहीं जताएगी। इस भय को समाप्त करने के लिए उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की। इसी कारण से उनका नाम भीष्म पड़ गया। 
प्र. प्राचीन काल के धर्मज्ञों और ज्ञानियों में लेखक भीष्म से सबसे अधिक प्रभावित क्यों है ?
उ. लेखक प्राचीन काल के धर्मज्ञों और ज्ञानियों में भीष्म से सर्वाधिक प्रभावित हैं क्योंकि भीष्म का चरित्र सबसे उज्जवल है। उनका त्याग महान था। उनका इतिहास बोध इतना गहरा था कि वर्तमान की हर समस्या का समाधान वे अतीत से उदाहरण दे कर देते थे। भीष्म पितामह अद्वितीय योद्धा भी थे। लेखक भीष्म के ब्रह्मचर्यं और कष्ट सहन शक्ति से भी प्रभावित था। 
प्र. लेखक का मित्र कैसा था और उसे लेखक से क्या शिकायत थी ?
उ. द्विवेदी जी का मित्र उनसे आयु में छोटा था इसीलिए उनका सम्मान करता था। वह विद्वान ,स्पष्टवादी और नीतिज्ञ था तथा देश की चिंता रहती थी। द्विवेदी जी से उसकी शिकायत थी कि वे राष्ट्रीय समस्याओं पर अपना मत क्यों नहीं प्रकट करते हैं। राष्ट्र की दुर्दशा देखकर भी द्विवेदी जी जैसे बुद्धिजीवी का चुप रहना उसे खलता था। उसे लगता था कि भविष्य ऐसे बुद्धिजीवियों को क्षमा नहीं करेगा। ठीक वैसे ही जैसे भीष्म पितामह को नहीं किया। 
प्र. लेखक ने किस अपराध बोध को अनुभव किया ? क्या सोच कर वह निश्चित हो गया ?
उ. अपने मित्र की बातें सुनकर लेखक को सहसा लगा कि राष्ट्र की समस्याओं पर चुप रहकर वह अपराध कर रहा है। उसे लगा कि राष्ट्र की बिगड़ती परिस्थितियों पर उसे कुछ कहना चाहिए ,अनहि तो भविष्य उन जैसे साधारण लोगों की चिंता कहा करेगा। उसे तो महान लोगों से ही अवकाश नहीं मिलेगा। यह सोचकर वे निश्चिंत हो गए। 
प्र. भीष्म प्रतिज्ञा का कुरु वंश पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उ. कालांतर में भीष्म के दोनों सौतेले भाई विचित्रवीर्य और चित्रांगद अल्पायु में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। कौरव वंश के सिंहासन पर बैठने योग्य कोई योग्य व्यक्ति न रहा। माँ सत्यवती के कहने पर भी भीष्म ने शादी करना स्वीकार नहीं किया। भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी। भले ही इससे कौरव वंश तथा राष्ट्र को हानि हुई। 
प्र. भीष्म को क्षमा नहीं किया गया ,लेख के आधार पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के भाषा शिल्प पर विचार कीजिये। 

उ. भीष्म पितामह के चरित्र का विशलेषण करने वाला यह लेख अत्यंत सुन्दर हैं। आचार्य द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। इसीलिए उनकी रचनाओं में तत्सम ,शब्दवाली प्रधान ,संस्कृत निष्ठ भाषा का प्रयोग स्वाभाविक है। अभिभूत ,महादुरंत ,तृप्ति ,स्फूर्ति ,मर्मज्ञ ,निर्माता ,रथ चक्र जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग सहज ही हुआ है। द्विवेदी जी हर समय पांडित्य के बोझ से दबे नहीं रहते थे। भावानुकूल अभिव्यक्ति के लिए काफी देर ,जिम्मेदार ,माफ़ ,हज़ार तथा राहत जैसे उर्दू शब्दों का या रिकार्ड जैसे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी कर लेते हैं। 
प्र.लेखक को भीष्म के चरित्र में क्या कमी दिखाई पड़ी ?
उ. लेखक को लगा कि भीष्म पितामह अपने समस्त ज्ञान के होते हुए भी उचित समय पर ठीक निर्णय नहीं ले पाते थे। काशीराज की कन्याओं को हर लाने और द्रौपदी चीर हरण के समय भी मौन रह जाने में उनकी यह कमी दिखाई पड़ी। अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा के लिए परिवार तथा राष्ट्र की चिंता न करना उनका दूसरा दुर्गुण था। शायद इसी कारण इतिहास उनको अवतार मानने के विषय में मौन रहा। 
प्र. लेखक के अनुसार इतिहास का रथ कौन हाँकता है ?
उ. लेखक के अनुसार इतिहास का रथ वह हाँकता है जो सोचता है और सोचे हुए को करने की क्षमता भी रखता है। जो केवल सोचता रहता है वह इतिहास के रथ के पहियों के नीचे कुचला जाता है।

You May Also Like