मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी

मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी
Majboori by Mannu Bhandari

मजबूरी कहानी का सार majboori summary by mannu bhandari – मजबूरी कहानी ,मन्नू भंडारी जी द्वारा लिखित एक पारिवारिक कहानी है जिसमें बूढ़ी अम्मा की अपने पोते बेटू के प्रति प्रेम को दिखाया गया है।  कहानी के प्रारम्भ में बूढ़ी अम्मा का लोरी गायन होता है ,जोकि अपने पोते बेटू के लिए गए रही है।  वह अपने घर को साफ़ – सफाई कर रही है ,उनके पैरों में दर्द भी है लेकिन बेटे रामहहवर और बहू तथा पोते में आगमन की ख़ुशी में सारा दर्द भूल जाती है।  उनका बेटा रामेश्वर बम्बई में काम करता है।  बूढ़ी अम्मा को अपने बेटे को बचपन की बाते याद आने लगती है कि वह लोरी सुने बिना सोता ही नहीं था।  अब पोता बेटू भी ऐसा ही होगा। अम्मा कल्पनाओं में ही खोयी थी कि तभी एक ताँगा आकर अम्मा के घर के सामने रुका।  अम्मा ने दौड़कर रामेश्वर की गोद से बच्चे को झपटकर ऐसे छीना जैसे किसी चोर उच्चके के हाथ से वे अपने बच्चे को छीन रही है।  बेटू को अम्मा ने सीने से लगा लिया।
चाय पानी के बाद रामेश्वर ने बताया कि बहू को बच्चा होने वाला है।  इसीलिए वह बेटू को अम्मा के पास ही छोड़ कर जाएंगे। यह सुनकर अम्मा ख़ुशी से फूली न समायी।  उन्होंने नर्मदा तथा गाँव वालों को सभी को ख़ुशी – ख़ुशी यह समाचार सुनाया।  अब अम्मा बेटू के साथ दिन भर खेलने लगी।  वे पुरे दिन दूध को शीशी साफ़ करती और समय समय पर बेटू को दूध पिलाती।  उन्होंने घड़ी देखना भी सीख लिया ,बीस दिन बाद जब बहू अपने मायके जाने लगी ,तो बेटू ने न तो जिद की और न ही रोया।  जाते समय रामेश्वर ने माता – पिता के लिए कपड़े बनावा दिया। बेटू इसी बीच गली के गंदे बच्चों के साथ खेलता और हर फेरी वाले से कुछ न कुछ खरीदता।दूसरे साल बहू रमा बेटू देखकर परेशान हो गयी।  वह जिद बहुत करता था।  अम्मा समझाती है कि बच्चे जिद करते है. बड़े होने पर सब ठीक हो जाएगा।  रमा बेटू को अपने साथ ले जाना चाहती थी ,लेकिन अम्मा के कारण नहीं ले जा पायी।  दो साल बाद रामेश्वर और रमा अपने तीन साल के बेटे पप्पू का लेकर आये।  पप्पू अंग्रेजी स्कूल भर्ती  होने के कारण अंग्रेजी की छोटी – छोटी कविताएँ बोलता था ,वहीँ बेटू गँवारों की भाँती रहता था इसीलिए रामेश्वर जिद करके बेटू को लेकर रमा अपने मायके में लेकर चली जाती है लेकिन वहां बेटू का रो – रोरोकर बुरा हाल था ,इसीलिए रमा बेटू को अम्मा के पास वापस कर गयी।
एक साल बाद रमा फिर आयी ,लेकिन बेटू में कोई परिवर्तन न देखकर बहु उसे बम्बई ले गयी। अम्मा भी पैसे खर्च करके शिब्बू को साथ भेज दिया।  एक सप्ताह बाद शिब्बू लौट आया ,लेकिन बेटू नहीं आया।अब अम्मा की आशा ,निराशा में बदल गयी।उसे लगा कि बेटू  अम्मा को भूल गया होगा।बेटू का मन लग गया होगा ,वहां उसके बहुत सारे दोस्त होंगे। इसी ख़ुशी में अम्मा ने सवा रुपये शिब्बू को देकर पेड़े मंगवाये और लोगों को बाटें। अम्मा अब खुश थी।

मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी का उद्देश्य

मन्नू भंडारी ने मजबूरी कहानी में बूढी अम्मा के रूप में एक दादी को अपने पोते बेटू के प्रति प्रेम व स्नेह को  व्यक्त किया है।  कहानी अत्यंत मार्मिक व ह्रदय स्पर्शी बन पड़ी है।  कहानी में मज़बूरी दिखाई गयी है। बूढ़ी अम्मा अकेली है।  वे अपने बेटे बहु और पोते से मिलने के लिए बेचैन रहती है।उनके आने पर बहु ,बेटे को अम्मा  जी के पास ही रखने के लिए प्रस्ताव रखती है ,इस पर अम्मा जी बहुत खुश हो जाती है। उनका जीवन बदल जाता है ,लेकिन बेटू जिद्दी और गंदे बच्चों के साथ दोस्ती रखता है।  बिगड़ते बच्चे को देखकर बहु रमा अपने मायके ले जाती है ,लेकिन अपनी दादी के लिए रो – रो कर बुरा हाल हो जाती है ,इसीलिए रमा बेटू को दादी के पास छोड़ जाती है।  तीन साल बाद रमा के छोटे बेटे पप्पू और बेटू में बहुत अंतर आ जाता है जाता है। बेटू भविष्य न बिगड़े इसीलिए रमा अपने साथ बेटू को लेकर बम्बई चली जाती है। पीछे – पीछे अम्मा जी शिब्बू को बम्बई भेजती है। इस बार बेटू का मन बम्बई लग जाता है।वह अब रोटा नहीं है।  इधर बूढ़ी अम्मा का जीवन फिर से एकाकी हो जाता है।  अम्मा के अकेलेपन ,उनके मन की व्यथा तथा बच्चों के माँ – बाप के प्रति कर्तव्य को दिखाना ,लेखिका का उद्देश्य रहा है।अम्मा के मन का अन्तर्द्वन्द व उनके एकाकीपन की मार्मिकता बहुत ही हृदयस्पर्शी बन पड़ी है।

मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी शीर्षक की सार्थकता  

मजबूरी कहानी ,मन्नू भंडारी जी द्वारा लिखित एक पारिवारिक कहानी है जिसमें बूढ़ी अम्मा की अपने पोते बेटू के प्रति प्रेम को दिखाया गया है। कहानी का शीर्षक मजबूरी बहुत  ही सार्थक व उचित बन पड़े है।पूरी कहानी में दादी माँ का एकाकीपन आरम्भ से लेकर अंत तक दर्शाया गया है।  बीच में बेटू बहु और पोते बेट  के आने पर उनका एकाकीपन दूर होता है।  रमा ,दूसरी संतान होने के कारण बेटू को कुछ समय के लिए दादी के पास छोड़कर जाती है। इस कारण अम्मा के जीवन में ख़ुशी आ जाती है।वह अपना बुढ़ापा भूल जाती है ,लेकिन उनके लाड़ – प्यार में बेटू बिगड़ जाता है।वह सारा – दिन खाता रहता है।गंदे बच्चों के साथ खेला करता था।रमा ,अपने बेटू के भविष्य की चिंता करती है ,इसीलिए वह बेटू को लेकर चली जाती है। वहाँ बेटू का मन भी लग जाती है ,इसी कारन अम्मा सबसे ऊपर -ऊपर ख़ुशी व्यक्त करती है ,पर भीतर -भीतर ही वह बहुत दुःखी होती है।लेखिका ने इसीलिए दादी माँ के माध्यम से नारी के एकाकीपन का चित्रण किया है।  अतः लेखिका के उद्देश्य को दर्शाने  मज़बूरी शीर्षक सार्थक व सफल है। मजबूरी के कारण ही हर पात्र ,में परिवर्तन होता रहता है।

दादी अम्मा का चरित्र चित्रण 

दादी अम्मा कहानी की मुख्य पात्र है। दादी अम्मा का चरित्र उसके अंतर्द्वंद तथा कहानी में आई घटनाओं के आधार पर दर्शाया गया है। बूढी अम्मा गाँव में सूना और एकाकी जीवन बिता रही है। बेटा रामेश्वर नौकरी के कारण बाहर रहता है। दो तीन साल में एक बार माँ के पास आ जाता है। माँ के लिए उनके साथ बिताये क्षण ही ख़ुशी प्रदान करते हैं। माँ ममता की मूर्ति है जो बेटे के दूर रहने का कारण धन मानती है। जब नर्मदा रामेश्वर के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग करती है तो वह सुनना नहीं चाहती है। पति का व्यवहार उपेक्षित है। पति गाँव में वैद्य हैं ,अपने काम में व्यस्त रहते हैं। नर्मदा नौकरानी ही अम्मा की एकमात्र साथी है। 
अम्मा बूढी ,पुराने ज़माने की नारी है। मातृत्व को प्रधानता देती है। जब बेटा – बहू ,बेटू को छोड़कर जाते हैं तो सूने आँगन में खुशियाँ लौट आती है। उसमें नया उत्साह ,नयी शक्ति आ जाती है। वह बेटू पर पूरा अधिकार दर्शाती है। उसे पालने के लिए शीशी से दूध पिलाना ,घडी से समय देखना ,आदि सभी नयी चीजें सीख लेती है। वह तो अपना सारा लाड प्यार बेटू पर न्योछावर कर देती है। ममता के कारण यह भी नहीं जान पाती है कि बेटा बहू अपने स्वार्थ के कारण उसे उसके पास छोड़ गए हैं। दादी अम्मा के लाड प्यार से बेटू की आदतें बिगड़ जाती है पर वह इसे प्यार कहती है। 
दादी अम्मा के मन का अंतर्द्वंद तब दिखाई पड़ता है जब आधुनिक जीवन की कठोरता से दादी अम्मा के मन की कोमलता टकराती है। रमा बेटू के पालन पोषण के  तरीके से दुखी है। वह बेटू को साथ ले जाना चाहती है ,अम्मा भेज तो देती है पर उसके मन में उथल पुथल मच जाती है। उसकी भावनाओं की कोई कीमत नहीं है। उसकी ममता का कोई मूल्य नहीं है। बेटू पहली बार लौट कर आ जाता है तो अम्मा खुश हो जाती है। पर रमा फिर उसे साथ ले जाना चाहती है क्योंकि पप्पू भी बड़ा हो गया था। अब रमा को अम्मा की सेवाओं की जरुरत नहीं थी क्योंकि अब वह दोनों बच्चों को संभाल सकती है। 
अम्मा को विश्वास था कि बेटू रमा के पास नहीं रहेगा। वह मनौती मानती है कि बेटू उसे भूल जाए। जब शिब्बू उसे बताता है कि बेटू का मन बम्बई में लग गया है तो वह निराश हो जाती है परन्तु ख़ुशी प्रकट करती हुई कहती है – चलो अच्छा हुआ बेटू उसे भूल गया। 
इस प्रकार दादी अम्मा ,एकाकी ,भावुक ,ममतामयी पुराने ज़माने की नारी है। आधुनिक जीवन में मूल्य उसकी भावनाओं पर हावी हो जाते हैं। 

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