सारा आकाश उपन्यास में दिवाकर

सारा आकाश उपन्यास में दिवाकर का चरित्र चित्रण 

सारा आकाश उपन्यास में दिवाकर, समर का मित्र है।वह फक्कड़ ,मस्तमौला और विनोदी स्वभाव का पात्र है। उसके चरित्र का मूल अंश समर की मित्रता के रूप में ही अधिक प्रकट  हुई है।उसकी आर्थिक हालत समर की अपेक्षा अच्छी है।यही कारण है कि वह समय समय पर समर ही सहायता करता रहता है।समर के दुःख को सुनकर वह सच्चे मित्र की भाँती उसे पूरा करने के प्रयास करता है।दिवाकर इस उपन्यास में ऐसा पात्र है जिसके चरित्र में अहंकार कहीं भी दिखाई नहीं देता है। उसके प्रत्येक कार्य स्वाभाविक प्रतीत होते हैं।विनोदप्रियता ,तार्किकता ,सहयोग की भावना उसमें कूट -कूट कर भरी है।सब मिलाकर उसका चरित्र एक फक्कड़ व्यक्ति का चरित्र भी है।चिंता का दर्शन तो उसके चरित्र में कहीं भी स्पर्श नहीं करता है।  वह अपने जीवन और कार्यों से संतुष्ट है।  

मस्तमौला – 

दिवाकर मस्तमौला पात्र है।वह अपने वर्तमान से संतुष्ट है।वह भविष्य की चिंता नहीं करता। परीक्षा देने के बाद वह स्वतंत्र जीवन जीने लगता है।  वह अपनी पत्नी के साथ घूमने – फिरने ,मनोरंजन करने और सिनेमा देखने में अपना समय बिताता है।  उसकी मस्ती का प्रमाण उसके निन्मलिखित कथन से स्पष्ट होता है।  वह समर से कहता है “हम ! अरे हमें क्या करने को रखा है ? बस किरण जी है और हम हैं।  बीच में नाराज़ हो गयी थी कि पढ़ाई ही अब हमारे लिए सब कुछ है और तो जैसे कुछ भी है ही नहीं ! सो अब हमने अपने को इन्ही पर छोड़ दिया है।  वह बात की गुरुता को काम करने के लिए समर से कहता है कि ” ये कई बार मुझसे कह चुकी है कि तुम अपनी वाइफ को हमारे यहाँ क्यों नहीं लाते ? उसके मनोविनोदी स्वभाव भी उस समाय चलता है जब समर प्रातः काल उसके घर पहुँच जाता है।यहाँ उसकी खीझ और विनोद ही अधिक प्रकट हुआ है – क्या है ? रात को ग्यारह बज , और फिर सुबह सात बजे ही आ धमका।तेरी बीबी तो मइके में है ,अब बीबी वालों के आराम से क्यों जलता है।  “

स्पष्ट वादी व्यक्ति – 

दिवाकर स्वदेश भक्ति और धार्मिक ढोंग के नाम पर रूढ़िवादिता को बेकार मानता है।  वह समर से कहता है – देशी और विदेशी की बात नहीं जानता ,लेकिन देशीमन का नाम लेकर कार्टून जैसी सूरत बनाये रखना भी मुझे पसंद नहीं है।मेरी बातों को बुरा न मानना लेकिन अगर मैं पूछूँ कि ऊँची – नीचे बिना क्रीज़ स्त्री की पतलून और गन्दी सिकुड़ी कमीज़ या अंग्रेजी ढंग से कटे बालों से लटकती लटटू जैसी गाँठवाली चोटी ही अगर देशीपना है तो हम उसे दूर से प्रणाम करते हैं।  “

चिंता मुक्त युवक – 

दिवाकर एक निश्चिंत युवक है।वह चिंता मुक्त रहना चाहता है।  उसके चरित्र की विशेषता यह है कि वह स्पष्टवादी और निर्भीक है।  देशी और विदेशी की घात नहीं जानता ,लेकिन देशीपने का नाम लेकर कार्टून जैसी सूरत बनाये रखने भी मुझे पसंद नहीं है।  दिवाकर का उपयुक्त कथन उसे निर्भीक और स्पष्टवादी सिद्ध करता है।  

आदर्श मित्र – 

दिवाकर एक आदर्श मित्र है।वह समर की सहायता करता है।  समर कके सुख दुःख को वह अपना सुख दुःख समझता है।उसकी इसी प्रवृति ने समर को उसके समीप ला दिया है।  पोस्ट कार्ड जैसी जैसी छोटी बस्तु से लेकर पुस्तकों तक समर उससे बेहिचक माँग लेता है।समर की कठिनाइयों से परिचित होकर वह उसे नौकरी दिलाता है।  वह समर को अच्छे मित्र की तरह सलाह देता है – अरे छोड़ो भाई ,मैंने उससे कुछ नहीं किया।  मुसीबतों में संघर्ष करने का नाम वीरता है ,वैसे तो तू मुझे उपदेश देता है ,खुद उपदेश देता है ,खुद इतना कमजोर है।”उसकी यह इच्छा है कि समर अपनी पढ़ाई चालू रखे। नौकरी दिलाने से पहले ही वह समर से आगे पढ़ने की शर्त रखता है। 
दिवाकर उपन्यास का सजीव पात्र है।उसमें सहयोग की भावना ,आदर्श मित्र का गुण ,विवेकशीलता के साथ ही विनोदप्रियता का गुण भरा हुआ है।वह अपने वर्तमान से संतुष्ट है ,भविष्य के प्रति निश्चिन्त है।आधुनिकता के रंग में रंगा होने पर भी परिवार के बड़े सदस्यों से विरोध करने का साहस नहीं करता।  वस्तुतः दिवाकर का चरित्र उपन्यास का एक आदर्श चरित्र है।

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