मनुष्य के रूप उपन्यास यशपाल
मनुष्य के रूप उपन्यास का सारांश
के बदलते हुए रूपों का सजीव और यथार्थ चित्रण हुआ है। मनुष्य जो नहीं बनना चाहता है ,वह उसे आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण बनना पड़ता है। मानवता का विकास इन विषम परिस्थितियों के टूटने और बदलने पर ही हो सकता है। सोमा और धनसिंह के जीवन में परिवर्तन का मुख्य कारण सामाजिक और आर्थिक विषम परिस्थितियां ही है। सोमा उन पहाड़ी घाटियों में रहने वाली है ,जहाँ सभ्यता की नयी रौशनी की किरण तक पहुँची है। वह विधवा हो जाती है। विधवा जीवन की सामाजिक विषमता एवं ससुराल वालों के अत्याचारों से पीड़ित होकर वह मोटर ड्राईवर धनसिंह के साथ भाग जाती है। सोमा एक संपन्न परिवार में संरक्षण पाती है। जेल से छूटने के पश्चात धनसिंह भी उसी परिवार में ड्राइवर का काम करने लगता है। इस प्रकार वह सोमा के साथ रहने लगता है। एक दिन रात को उसके द्वार पर कुछ शोहदे आकर उधम मचाते हैं। वह उन पर प्राणघातक आक्रमण करके भाग जाता है। सोमा फिर अकेली रह जाती है। उसे विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। अपनी संरक्षिका मनोरमा का भाई उसे रखेल बना लेता है। वह गृहस्वामिनी की तरह रहने लगती है ,परन्तु समाज की विषम परिस्थितियां उसे यहाँ भी नहीं रहने देती है। एक बरकत नाम का ड्राईवर उसे भगाकर बम्बई ले जाता है। यहाँ परिस्थितियों की लहरों पर तैरती हुई वह फिल्म अभिनेत्री बन जाती है। मनोरमा एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता भूषण से प्रेम करती है ,परन्तु उसकी उपेक्षा से निराश होकर वह एक फिल्म एजेंट सुतलीवाला से विवाह कर लेती है। वह उसकी पुंसत्वहीनता से तंग आकर उससे सम्बन्ध विच्छेद कर लेती है और पार्टी में काम करने लगती है। धनसिंह भारतीय सेना ,आजाद हिन्द सेना और बांकीपुर जेल का जीवन व्यतीत कर सोमा को खोजता हुआ बम्बई पहुँच जाता है। वह भूषण को साथ लेकर सोमा के बँगले पर पहुँचता है। बरकत उस पर करोली से हमला कर देता है। भूषण घायल होता है और अस्पताल में उसकी मृत्यु हो जाती है। धनसिंह अपने पूर्व के अपराधों की स्वीकार कर लेता है।
मनुष्य के रूप उपन्यास यशपाल का यथार्थ चित्रण
मनुष्य के रूप उपन्यास का उद्देश्य
मनुष्य के रूप उपन्यास का मुख्य उद्देश्य यह व्यक्त करता है कि वर्तमान पूँजीवादी सामाजिक व्यवस्था में मनुष्य धन के वशीभूत होकर नाना प्रकार के स्वांग करने के लिए विवश है ,वह प्रेम करते वक्त के लिए स्वतन्त्र नहीं है।