मास्को से कीव तक पाठ का सारांश प्रश्न उत्तर

मास्को से कीव तक – नगेंद्र भट्टाचार्य


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मास्को से कीव तक पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ या यात्रा वृत्तांत मास्को से कीव तक , लेखक नगेंद्र भट्टाचार्य जी के द्वारा लिखित है। इस पाठ में लेखक ने मास्को से कीव तक की रेलयात्रा का अत्यंत रोचक एवं मनोरम वर्णन किया है । इस भ्रमण का वृत्तांत धारावाहिक के रूप में ‘आजकल’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था । दरअसल, प्रस्तुत पाठ उसी यात्रा-वृत्तांत का एक हिस्सा है ।  
लेखक कहते हैं कि यह यात्रा लगातार 24 से 25 घंटे की थी । खाने की बोगी नहीं होने के कारण मेरे मित्र बोरिस टोकरी भरकर भोजन लाए थे । मित्र को इस बात का ध्यान रहता था कि किसे माँसाहारी ? किसे शाकाहारी ? किसे पनीर ? किसे फल चाहिए ?  बीच-बीच में ट्रेन का कंडक्टर भी आवश्यकतानुसार नींबू, गर्म चाय या कॉफ़ी दे जाया करता था । दोनों ओर ज़मीन समतल थी । बचपन के समय में रेलगाड़ी द्वारा पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में जो दृश्य देखे थे, वे आँखों के सामने उभर उठे ।  तब उन दृश्यों से हमारे अन्दर विचित्र भावनाएँ भर जाती थीं । बहुत सारे परिचित-अपरिचित पक्षी बंगाल के इन वनों में देखे जा सकते थे । लेकिन अफ़सोस धीरे-धीरे वन नष्ट होने लगे ⃒ बड़ा होने के पश्चात् जब उन रास्ते से गुज़रता हूँ, मन में एक ही सवाल उठता है, वन भूमि को नष्ट करके हमने क्या पाया ? पिछले सालों में संथाल परगना, गया, हजारीबाग के अंचलों में जंगलों की बहुत हानि हुई । जिसके कारण पृथ्वी भी इसका बदला ले रही है – शुष्क, निष्ठुर होकर । लेखक कहते हैं कि वनों को जरा सा लाभ के कारण हमने हर वर्ष काट-काटकर समाप्त कर दिया है । अब जब अत्यंत मुश्किल में पड़े तो थोड़ा-बहुत वृक्ष हम लगा ले रहे हैं । क्या इस तरह से समस्या का समाधान हो सकेगा ? रूस, पोलैंड, पश्चमी जर्मनी में ट्रेन से यात्रा करते समय इतने सुनियोजित वनों के क्षेत्र देखकर ऐसी बातें मन में उठ रहीं थीं ।  
मास्को से कीव तक पाठ का सारांश प्रश्न उत्तर

अपने यात्रा वृत्तांत को आगे बढ़ाते हुए लेखक नगेंद्र जी कहते हैं कि ट्रेन आगे बढ़ती गई। इसकी चाल थोड़ी धीमी थी । लोगों का चढ़ना-उतरना जारी था । यात्री अपना थोड़ा सा सामान खुद ही उठाते हैं ।  इसलिए कुलियों का जमघट भी नहीं है । यहाँ गाड़ी में दो किस्म की व्यवस्था होती है। स्लीपिंग कार, जिसमें गद्देदार बेंचें होती हैं ।  रात में कंबल और एक चादर दी जाती है। पूरी कार में एक कंडक्टर होता है, जो बीच-बीच में चाय, कॉफ़ी या नींबू-पानी बनाकर देता है। साधारण श्रेणी में हमारे देश की तरह ही, गद्दे रहित काठ की बेंचें होती हैं। बेहद व्यापक देश है रूस। इस देश में घूमना-फिरना धरती के आगोश में रहकर ही किया जाए, तभी उसके ग्राम्य जीवन, कृषि, वन-संपदा और जन-साधारण को देखा जा सकता है। लेकिन अभी तो ट्रेन की खिड़की से ही देखकर संतोष करना पड़ा। रेलवे लाइन के दोनों तरफ मैदान, वन, ग्राम फैले थे। 

लेखक कहते हैं कि पहले हमने रूसी साहित्य में इस देश के बारे में पढ़ा है। इससे पता चलता है कि वहाँ पर भी जनता की दुर्दशा हमारे देश से कम न थी। रूस को दो महायुद्धों का सामना करना पड़ा। फिर भी अपनी पिछली दुर्दशा और महायुद्धों से हुए विनाश को दरकिनार करते हुए विकास के रास्ते पर है। पहाड़ को स्पर्श करते हुए एक रेलवे लाइन दूर तक जाती है। नदी के ऊपर एक बहुत बड़ा पुल है। उस पुल पर रेल और मोटर के गुजरने की व्यवस्था भी है। नदी के किनारे से कीव स्टेशन लगभग डेढ़ मील दूर है। शहर के मकान आदि पुल से ही नज़र आने लगते हैं। जब स्टेशन पहुंचा तो देखा कि बोरिस के कई रिश्तेदार हमारा स्वागत के लिए हाजिर हैं। अंततः हम घर पहुँचे। रात में एक सभी साथ बैठे। बोरिस की भांजी ने गीत सुनाया। उसकी गीत बेहद मधुर और मनमोहक थी तथा देश के लोक-संगीत की मिठास का एहसास भी था। अपनापन पाकर धीरे-धीरे हमलोग भी उनके लोक संस्कृति में घुल-मिल गए। इस तरह से समा बंध गया …। 

मास्को से कीव तक पाठ के प्रश्न उत्तर 

बहुवैकल्पिक प्रश्न 
प्रश्न-1 – ‘मास्को से कीव तक’ किस तरह की रचना है ? 
उत्तर- यात्रा-वृत्तांत 
प्रश्न-2 – इस पाठ में ‘मास्को से कीव तक’ की यात्रा किस साधन द्वारा की गई ? 
उत्तर- रेलगाड़ी 
प्रश्न-3 – लेखक के कौन मित्र टोकरी भरकर भोजन लाए थे ? 
उत्तर- बोरिस 
प्रश्न-4 – बांग्लादेश को पहले क्या कहा जाता था ? 
उत्तर- पूर्वी बंगाल 
प्रश्न-5 – इस पाठ में किस देश को विस्तृत बताया गया है ? 
उत्तर- मास्को 
    
प्रश्नोत्तर  
प्रश्न-1 – लेखक की यह यात्रा कितने समय के लिए थी ? 
उत्तर- लेखक की यह यात्रा 24-25 घंटे की थी। 
प्रश्न-2 – बचपन में लेखक ने रेलगाड़ी द्वारा कहाँ के दृश्य देखे थे ? 
उत्तर- बचपन में लेखक ने रेलगाड़ी द्वारा पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के दृश्य देखे थे। 
प्रश्न-3 – रूसी साहित्य में इस देश के बारे में क्या पता चला था ? 
उत्तर- रूसी साहित्य में इस देश के बारे में पता चला था कि यहाँ पर भी जनता की दुर्दशा हमारे देश से कम न थी ⃒ रूस को दो महायुद्धों का सामना करना पड़ा। फिर भी अपनी पिछली दुर्दशा और महायुद्धों से हुए विनाश को धो-पोंछकर बिलकुल साफ़ कर दिया है। 
प्रश्न-4 – वन-भूमि को नष्ट करके हमें क्या-क्या हानियाँ उठानी पड़ी हैं ? प्रकृति इसका बदला किस प्रकार ले रही है ? 
उत्तर- वन-भूमि को नष्ट करके हमें अनेक हानियाँ उठानी पड़ी हैं, जिसके कारण हमारा जीवन संकट में आ गया है ⃒ जंगली जानवरों को नुकसान पहुँचा है। ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बिगड़ गया है। 
प्रकृति इसका बदला शुष्क और निष्ठुर होकर ले रही है। 
   
प्रश्न-5 – लेखक ने ट्रेन से नदी का क्या दृश्य देखा ? 
उत्तर- लेखक ने ट्रेन से नदी का यह दृश्य देखा कि नदी के किनारे पहाड़ को छूती हुई रेलवे लाइन दूर तक जाती है ⃒ नदी के ऊपर एक बहुत बड़ा पुल है। उस पर रेल और मोटर के गुजरने की व्यवस्था है। ट्रेन से नदी के बीच नहाते लोगों की भीड़ देखि जा सकती है। गर्मी की इस दोपहरी में हजारों लोग जल में तैर रहे हैं। कुछ लोग छोटी-छोटी नावों में मछली पकड़ने का काँटा लिए बैठे हैं। मोटरबोटें तेजी से दौड़ रही हैं। नदी के किनारे से कीव स्टेशन लगभग डेढ़ मील दूर है। 
भाषा संरचना 
प्रश्न-8 – निम्न उपसर्गों से दो-दो शब्द बनाइए – 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है – 
दुर् – दुर्योधन , दुर्दशा 
सु – सुयोग्य , सुस्वागतम 
प्रश्न-9 – इन शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए – 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है – 
संतोष – असंतोष 
हानि – लाभ 
समानता – असामनता 
मधुर – कटु 

मास्को से कीव तक पाठ के शब्दार्थ 

समा बंध जाना – वातावरण का आनंदपूर्ण हो जाना 
विस्तृत – फैला हुआ 
शुष्क – सूखा 
वसुंधरा – धरती , पृथ्वी 
निष्ठुर – निर्दयी 
जमघट – भीड़-भाड़ 
दुर्दशा – बुरी हालत 
सान्निध्य – निकटता 
प्रतिशोध – बदला 
दृश्य – नजारा  । 

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