मिठाईवाला कहानी – भगवती प्रसाद वाजपेयी
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मिठाईवाला कहानी पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ या कथा मिठाईवाला , लेखक भगवती प्रसाद वाजपेयी जी के द्वारा लिखित मानवीय रिश्तों पर आधारित यह अत्यंत मार्मिक कथा है ⃒अपनी संतान खोने पर मिठाईवाला सब बच्चों में अपनी संतान का सुख तलाशता है ⃒ बच्चे भी उसके पास दौड़े चले आते हैं ⃒ मिठाईवाला धनी होने के बावजूद भी सिर्फ बच्चों से मिलने वाले प्यार और आत्मिक सुख के लिए गलियों में मीठी गोलियाँ, बाँसुरी और खिलौने बेचकर उनकी तोतली बोली का आनंद लेता है ⃒
लेखक कहते हैं कि खिलौनेवाला – “बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला !” की मीठी आवाज़ के साथ गलियों में घूमता था ⃒ उसका स्नेहपूर्ण व मधुर गान सुनकर निकट के मकानों में हलचल मच जाती थी ⃒ बच्चों का झुंड उसे घेर लेता तथा कहीं-कहीं वह खिलौनेवाला बैठकर खिलौने की पेटी खोल देता ⃒ बच्चे खिलौने देखकर ही प्रसन्न हो जाते ⃒ कभी वे पैसे लाकर खिलौने का मोल-भाव करने लगते ⃒ खिलौनेवाला बच्चों की नन्ही-नन्ही उँगलियों और हथेलियों से पैसे ले लेता और बच्चों के मनपसंद खिलौने उन्हें दे देता। तत्पश्चात् पुनः खिलौनेवाला अपनी मधुर गान गाते हुए आगे बढ़ जाता ⃒
राय विजयबहादुर के बच्चे चुन्नू और मुन्नू भी एक दिन खिलौने घर लेकर आए ⃒ दोनों अपने हाथी-घोड़े लेकर घर-भर में उछलने लगे ⃒ बच्चों की माँ रोहिणी कुछ देर तक खड़े-खड़े उनका खेल देखती रही, फिर उसने पूछा – बेटा, ये खिलौने तुमने कितने में लिए ? मुन्नू जवाब में बोला – दो पैसे में ⃒ खिलौने के इतने कम दाम सुनकर रोहिणी को बहुत हैरानी हुई ⃒ रोहिणी सोचने लगी कि आख़िर खिलौनेवाला खिलौना इतना सस्ता कैसे दे गया ⃒ कुछ देर बाद रोहिणी अपने काम में लग गई ⃒
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मिठाईवाला कहानी |
छह महीने बाद एक मुरली वाले ने दो-चार दिनों से नगर में मुरली बजाकर गाना सुनाया करता और मुरली बेचता. लोग उसे मुरली बजाने में उस्ताद मानने लगे ⃒ वह मुरली दो-दो पैसे में बेच देता ⃒ लोग सोचने लगे कि इतने कम पैसे में उसे क्या मिलता होगा, इतने में मेहनत भी तो न आती होगी ⃒ नगर के गली-गली में प्रतिदिन मुरली वाले की चर्चा होने लगी ⃒ उसका मादक-मृदुल स्वर सुनाई पड़ता – “बच्चों को बहलानेवाला, मुरलियावाला !” जब रोहिणी ने मुरलीवाले का स्वर सुना तो उसे खिलौनेवाले का स्मरण हो आया ⃒ उसने मन-ही-मन कहा – खिलौनेवाला भी इसी तरह गा-गाकर खिलौने बेचा करता था ⃒ रोहिणी अपने पति विजय बाबू को संबोधित करते हुए अपने चुन्नू-मुन्नू के लिए मुरली लेने के बारे में कही तो विजय बाबू दरवाजे पर आकर मुरली वाले से मुरली के दाम पूछे ⃒ मुरलीवाले ने जवाब में बोला कि – बाबू जी, ये मुरली तो वैसे तीन-तीन पैसे के हिसाब से है, पर आपको दो-दो पैसे में ही दूँगा ⃒ तभी विजय बाबू मुस्कुराकर बोले – तुम लोगों की झूठ बोलने की आदत होती है, देते होगे सभी को दो-दो पैसे में, पर एहसान का बोझ मेरे ऊपर लाद रहे हो ⃒ इतने में मुरलीवाला विजय बाबू के जवाब में बोला कि – बाबू जी, इनका असली दाम तीन ही पैसे हैं, आप कहीं से भी दो-दो पैसे में ये मुरलियां नहीं पा सकते, मैंने तो पूरी एक हजार बनवाई थीं, तब मुझे इस भाव में पड़ी हैं ⃒ तत्पश्चात् समय का अभाव होने की बात कहके विजय बाबू मुरलीवाले से दो मुरली खरीदकर अपने मकान के भीतर चले गए ⃒ देर तक मुरलीवाला बच्चों के झुंड में मुरलियां बेचता रहा ⃒ उसके पास कई रंग की मुरलियां थीं ⃒ बच्चे जो रंग पसंद करते, मुरलीवाला उस रंग की मुरली निकाल देता ⃒ इस तरह मुरलीवाला अपनी मुरली बेचते हुए आगे बढ़ जाता था ⃒
अपने मकान में बैठी रोहिणी मुरलीवाले की सारी बातें सुनकर उसने अनुभव किया कि बच्चों के साथ इतने प्यार से बातें करनेवाला फेरीवाला पहले कभी नहीं आया ⃒ बेचता भी सस्ता है और आदमी भी भला जान पड़ता है ⃒ समय-समय की बात है, जो बेचारा इस तरह मारा-मारा फिरता है ⃒ आख़िर पेट के कारण ये सब करना ही पड़ता है ⃒
आठ महीने बाद जब उस वक़्त सर्दी का मौसम था ⃒ रोहिणी स्नान करके अपने मकान की छत पर बाल सुखा रही थी, उसी वक़्त नीचे के गली से उसे आवाज़ सुनाई पड़ती है – “बच्चों को बहलानेवाला, मिठाईवाला” ⃒ जब रोहिणी ने उस मिठाईवाले की आवाज़ सुनी तो उसे वह परिचित सी लगी, वह तुरंत नीचे उतर आई और वृद्धा दादी से बोली कि जरा उसे बुलाइए न, बच्चों के लिए मिठाई ले लूँ ⃒ दादी ने मिठाईवाले को अपने पास बुलाई ⃒ रोहिणी वहीं दादी के पास खड़ी थी, दादी से बोली कि मिठाई सस्ती दे रहा है, चार पैसे के ले लो ⃒ जब मिठाईवाला मिठाइयाँ गिनने लगा तो रोहिणी ने उससे पूछा कि – भैया, तुम पहले भी यहाँ आते रहे हो न ? जवाब में मिठाईवाले ने कहा कि – जी, कई बार आ चूका हूँ ⃒ रोहिणी का अनुमान ठीक निकला, अब तो वह मिठाईवाले से और भी कुछ बातें पूछने के लिए अधीर हो उठी ⃒ जब रोहिणी ने मिठाईवाले से पूछा कि भैया ये छोटी-छोटी चीजें बेचकर तुम्हें क्या मिलता होगा ? तो जवाब में मिठाईवाले ने कहा कि – बस खाने-भर को मिल जाता है, कभी नहीं भी मिलता है, पर हाँ, संतोष, धीरज और कभी-कभी असीम सुख जरूर मिलता है, और यही मैं चाहता भी हूँ ⃒
रोहिणी मिठाईवाले से लगभग जिद्द करते हुए उसके गुजरे हुए पल के बारे में पूछने लगी तो मिठाईवाले ने गंभीरता व भावुकता के साथ कहा – मैं भी अपने नगर का एक प्रतिष्ठित आदमी था ⃒ मकान, व्यवसाय, गाड़ी-घोड़े, नौकर-चाकर सभी कुछ था मेरे पास ⃒ पत्नी थी और छोटे-छोटे दो बच्चे भी थे ⃒ यूँ कहिए, मेरा वह सोने का संसार था ⃒ बच्चों की अठखेलियों के मारे घर में कोलाहल मचा रहता था ⃒ लेकिन विधाता की लीला तो बस वही जाने ! इसलिए बच्चों को खोने के बाद मैं उनकी खोज में निकला हूँ ⃒ वे सब होंगे तो यहीं कहीं ⃒ आख़िर कहीं-न-कहीं तो जन्में ही होंगे ⃒ इस तरह के जीवन में कभी-कभी अपने उन बच्चों की एक झलक सी मिल जाती है ⃒ ऐसा जान पड़ता है, जैसे वे इन्हीं बच्चों में उछल-कूद रहे हों ⃒ आपकी दया से मेरे पास पैसे बहुत हैं ⃒ जो नहीं है, उसे इस तरह के जीवन से पाने का प्रयास करता हूँ ⃒
रोहिणी ने मिठाईवाले की तरफ़ देखा, उसकी आँखें आँसुओं से तर थीं ⃒ तभी चुन्नू-मुन्नू वहाँ आकर मिठाई माँगने लगे ⃒ मिठाईवाले ने दोनों बच्चे को मिठाइयां दी ⃒ रोहिणी ने उसके बदले पैसे दी तो वह लेने से इनकार कर दिया ⃒ तत्पश्चात् मिठाईवाला अपनी पेटी उठाकर आगे बढ़ गया तथा उसकी आवाज़ गूंजने लगी – “बच्चों को बहलानेवाला, मिठाईवाला !”
मिठाईवाला पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 – खिलौनेवाले की आवाज़ में क्या विशेषता थी ?
उत्तर- खिलौनेवाले की आवाज़ मधुर और स्नेह से भरी थी ⃒
प्रश्न-2 – लेखक ने खिलौनेवाले के गाने को ‘सागर की हिलोर’ जैसा क्यों कहा ?
उत्तर- जब खिलौनेवाला अपनी मीठी आवाज़ के सहारे कहता कि ‘बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला’ , तब नगर के गली-गली में उसकी आवाज़ सुनाई पड़ती थी ⃒ ठीक उसी प्रकार जैसे सागर के हिलोरे दूर-दूर तक लहराती हुई दिखाई देती है ⃒ इसलिए लेखक ने खिलौनेवाले के गाने को सागर की हिलोर से तुलना किया है ⃒
प्रश्न-3 – रोहिणी को मिठाईवाले का स्वर परिचित क्यूँ लगा ?
उत्तर- वास्तव में देखा जाए तो रोहिणी को मिठाईवाले का स्वर परिचित इसलिए लगा, क्यूंकि वह यही मादक-मृदुल स्वर खिलौने और मुरली बेचते हुए भी सुन चुकी थी ⃒
प्रश्न-4 – मिठाईवाला किस लिए मिठाइयाँ बेचता था ?
उत्तर- अपनी संतान खोने पर मिठाईवाला सब बच्चों में अपनी संतान का सुख तलाशता है ⃒ बच्चे भी उसके पास दौड़े चले आते हैं ⃒ मिठाईवाला धनी होने के बावजूद भी सिर्फ बच्चों से मिलने वाले प्यार और आत्मिक सुख के लिए गलियों में मीठी गोलियाँ, बाँसुरी और खिलौने बेचकर उनकी तोतली बोली का आनंद लेता है ⃒ इसलिए वह मिठाइयां बेचता है ⃒
प्रश्न-5 – रोहिणी मिठाईवाले से अधिक प्रश्न पूछने को आतुर क्यूँ थीं ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, रोहिणी को जब लगा कि कोई फेरीवाला इतनी सस्ती चीज़ें नहीं बेचता और न ही बच्चों के प्रति इतना अधिक प्यार व स्नेह रखता है ⃒ रोहिणी मिठाईवाले से बात करके उसके मृदुल व्यवहार का कारण जानना चाहती थी ⃒
प्रश्न-6 – ‘मुरलीवाला देर तक बच्चों को मुरली बेचता ⃒’ लिखिए – कैसे ?
उत्तर- मुरलीवाले को बच्चों के बीच में रहना अर्थात् उनके बीच में समय गुजारना अच्छा लगता था ⃒ वह रंग-बिरंगी मुरलियों में से बच्चों की मनपसन्द रंगीन मुरलियां छाँट-छाँटकर देता ⃒ पैसे न होने पर, बिना पैसे के ही मुरली पकड़ा देता ⃒ इस प्रकार वह देर तक बच्चों को मुरली बेचता ⃒
प्रश्न-7 – पाठ के आधार पर मिलान करके पंक्ति पूरी कीजिए –
उत्तर – निम्नलिखित उत्तर है –
हथेलियों से पैसे ले लेता और – बच्चों के मनपसंद खिलौने उन्हें दे देता ⃒
प्रतिदिन नगर के गली-गली में – उसका मादक-मधुर स्वर सुनाई पड़ता ⃒
आप कहीं से भी दो-दो पैसे में – ये मुरलियाँ नहीं पा सकते ⃒
यह बड़ी अच्छी मुरली है – तुम यही ले लो, बाबू !
उनकी अठखेलियों के मारे – घर में कोलाहल मचा रहता था ⃒
आख़िर कहीं-न-कहीं तो – जन्मे ही होंगे ⃒
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भाषा से
प्रश्न-8 – नीचे लिखे शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है –
सस्ती – महंगी
पसंद – नापसंद
विचित्र – सामान्य
मधुर – कटु
गुण – दोष
निर्जीव – सजीव
लायक – नालायक
प्रश्न-9 – ‘दार’ प्रत्यय जोड़कर पाँच शब्द बनाइए –
उत्तर- इज्जतदार, धमाकेदार, जायकेदार,मसालेदार, समझदार
प्रश्न-10 – ‘इत’ प्रत्यय वाले पाँच शब्द लिखिए –
उत्तर- लिखित, चित्रित, विकसित, शोषित, कल्पित
प्रश्न-11 – पाठ से अनुनासिक चिन्ह्वाले शब्दों को चुनकर लिखिए –
उत्तर- झाँकने, बच्चों, युवतियाँ, पहुँच, गूँज,आँसूओं, मैंने, माँ, हाँफते, क्यों, हाँ, होंगी ⃒
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मिठाईवाला पाठ के शब्दार्थ
चिकों – बाँस की पतली तीलियों का बना परदा
छज्जों – छत की दिवार से बाहर निकला भाग
पुलकित – प्रसन्न, खुश
मादक – नशा पैदा करनेवाला
मृदुल – मीठा
सुथनी – सलवार या पाजामी
एहसान – उपकार
अचकचाकर – हैरानी से
नारंगी – संतरे के रंग-सा
असीम – बहुत, जिसकी सीमा न हो
हरजा – नुकसान
प्रतिष्ठित – सम्मानित
अठखेलियों – उछल-कूद
कोलाहल – शोर या शोरगुल वातावरण।
© मनव्वर अशरफ़ी