मैं भाव एक विकार

मैं भाव एक विकार…!

आज हम जिस समय या समाज में रह रहे हैं वह पूरी तरह से स्वार्थी और अपने आपको महत्वपूर्ण दिखाने या समझने वाला युग हो चुका है, हर व्यक्ति चाहे वह युवा हो या कोई व्यस्क सभी की भावनाओं में पूरी तरह से “मैं ” की प्रवृत्ति घर कर चुकी है । इसी मैं  की प्रवृत्ति के कारण आज का हमारा युवा या हम जैसे जो जानते तो है, कि हमें जो मैं की भावना आ रही है आज हमें भीतर से खोखला तो कर ही रही है साथ ही हमारे निज़ी संबंधो के साथ-साथ हमारे सामाजिक मूल्यों और भावनाओ को खत्म कर रहा है । फिर वह हमारे माता-पिता से हमारा स्नेह हो या दोस्तो के प्रति लगाव हो। 
“मैं” की प्रवति के कारण सभी हमसे दूर होते या छुटते जा रहे है जैसे ‘रामायण में कैकयी में अपने पुत्र भरत के प्रति ” मैं ” की भावना इतनी उग्र हो जाती है कि वह पूरे राज्य से परे अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को 14 वर्ष का  वनवास  दिला देती है। जिसके  कारण राजा दशरथ वियोग में अकल-मृत्यु को प्राप्त हो जाते है और पूरा राज्य शोक में डूब जाता है ।
रहीम भी कहते है कि – 
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय
       
इसी ‘ मैं ‘ ने न जाने कितने ही रिस्ते या परिवारों  में खटास को जन्म दिया है, यह “मैं” की भावना  कोई नई नहीं
मैं भाव एक विकार

है  हमारे भारतीय समाज मे न जाने कब से (घुश की तरह घुसकर बैठी है ) चाहे फिर वो महाभारत हो जिसमे कौरवो ने अपने ” मैं ”  के कारण पांडवो को सुई की नोक के बराबर जमीन देने से इनकार कर दिया हो, और वह सब भी  ” मैं ” नामक  युद्ध के शिकार हुए एवं अपने साथ न जाने  कितने ही असंख्य जीवन को ‘ मैं ‘ यमराज नामक देवता को अपने साथ समर्पित कर दिया। अगर हम इसी तरह से आज के दौर की बात करे तो हमे  ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के आरंभ के बाद से कई उदाहरण मिलते है जिसने पूरी दुनिया की रातों की नींद ग़ायब कर दी थी । जैसे हम देखते है कि  दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया दो खेमो में बट गई और वह कहलाया शीतयुद्ध..!

उन दिनों  विश्व मे उभरती हुईं दो शक्तियां थी (अमेरिका तथा सोवियत संघ ) जो एकाएक कर अपने ‘ मैं ‘ विकार के कारण परमाणु बम बनाने के चक्कर में सम्पूर्ण जगत के चैनो-अमन को तबाह कर रहे थे, भले ही वे शांति बनाये रखना चाहते हो ।इन दोनो शक्तियों के बीच चल रही ताना-तानी का अंत तब हुआ जब सोवियत संघ अपनी ” मैं आह  ” के कारण अपने लोगो के  विद्रोह का सामना करना पड़ा  और इसी के चलते दुनिया ने एक शक्ति का दौर देखा ।
अगर हम अपने शहर की बात करे जिसे देश का दिल होने के गौरव के साथ साथ हमारी राजधानी भी है, इसी वजह से हमारे शहर में अनगिनत लोग रोज़ रोज़गार की तलाश में आते है। जिनकी बोल-चाल से लेकर पहनावा लगभग हमसे थोडा अलग होता है पर कई बार ऐसा मैने देखा है कि यह जो लोग होते है इनमे से कुछ एक लोग अपनी भाषा  को अपने कमरे या घर तक ही सीमित रखते है और घर के बाहर यह उस भाषा का प्रयोग करते है जो हमारे शहर के वो लोग बोलते है जो स्वयं कभी प्रवासी थे पर अब यहां के स्थायी निवासियों में गिने जाते है। उन्ही गिने जाने वालो में से मैं भी एक हूं पर एक बार हम यानी ( मेरा दोस्त और मैं ) प्रति-दिन की तरह सुबह अपने कॉलेज बस से जा रहे थे, उस सुबह हम से एक सज्जन पुरुष, टकराए जिनके हावभाव से तो यह प्रतीत हो रहा था कि यह महाशय उत्तर प्रदेश या  बिहार के होंगे पर जब आचनक से बस ड्राइवर ने ब्रेक लगाए तो उन्होंने जो शब्द बोले उनको सुनकर मैं थोड़ा सून सा रह गया ” थाणे दिख न र कै,”आदि ।  शब्द सुनकर……
हम उनको अनसुना करते हुए थोड़ा आगे बढ़े पर न जाने क्यों हमसे हमारी हँसी नही रुकी….! पर न जाने उनके उन शब्दों ने मुझे सोचने पर  मजबूर कर दिया कि यह जो व्यक्ति हमे बस में मिला था और उसने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया उन दोनों का आपस मे मेंल ही नहीं था। पर मेरे दिमाग मे यही सवाल आ रहा था कि उसको यह बोली बोलने की ऐसी क्या जरूरत  आन पड़ी की उन्होंने एक अनजान बोली बोली ? तब मैन जाना कि  वह भले ही उसकी बोली न हो पर उस व्यक्ति  में भी कही न कही ” मैं ” की भावना जागृत थी जो उससे उस बोली के  जरिये…
उसी की तरह अन्य व्यक्तियों में उसे उनसे कही अधिक प्रभावशाली दिखती होगी। इस मैं के चक्कर मे उसने कही न कही अपनी बोली दबा दी और आखिर उसके अंदर भी ” मैं ” भावना अपने चरम पे थी तब मैंने जाना कि हर किसी न किसी मे मैं विकार इस तरह से घर कर चुका  है जैसे  शरीर मे खून। 
इसी ” मैं ” विकृति का जीता जागता उदाहरण है पूरे विश्व में फैला चीन के वुहान शहर में उत्पन्न हुआ कोरोना वायरस संक्रमण  जिससे पूरी दुनिया में कई हजार लोग मौत को प्राप्त  हो चुके है  इस संक्रमण के शुरुआत में चीनी सरकार में जो ” मैं की भावना ” थी उसी का नतीजा है कि आज पूरी दुनिया में लाखो लोग इससे प्रभावित है  अगर यह लोग पहले ही इस संक्रमण के बारे में जानकारी देते तो शायद कोई भी देश सीमाएं बंद नही करता और न ही इतनी संख्या में लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होते।  अपने मैं के चक्कर मे आज क्या से क्या हो गया है ना चीनी सरकार मैं की प्रवर्ती अपनाती न आज यह होता ।
यह तो सभी जानते है की किस तरह से चीनी सरकार अपनी निजित बनाये रखने के लिए अपने ही लोगों की  जान ले सकती है इसका उदहारण है वह कि चिकित्सक जिसने कॅरोना संक्रमण को दुनिया के सामने लाया आज वह गायब है, अगर इस तरह  चलता रहा और चीनी सरकार ने मैं  ही मैं वाला राग बन्द नहीं किया तो यह उन लोगो के लिए ही नहीं सभी के लिए घातक हो सकता है ।
“बुरा जो देखन मैं चला, 
             बुरा न मिलिया कोय,जो दिल खोजा आपना, 
                                मुझसे बुरा न कोय”
                                                 ( कबीर की दोहा )


– मोहम्मद नाजिम
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