रामविलास शर्मा का साहित्यिक जीवन परिचय

रामविलास शर्मा का साहित्यिक जीवन परिचय



रामविलास शर्मा का जीवन परिचय ram vilas sharma ka jeevan parichay Ram Vilas Sharma ka Jeevan Parichay राम विलास शर्मा की आलोचना दृष्टी – आधुनिक हिन्दी साहित्य में सुप्रसिद्ध आलोचक ,निबंधकार ,विचारक एवं कवि डॉ.रामविलास शर्मा जी का जन्म १० अक्टूबर १९१२ को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिला में उच्चगाँव सानी में हुआ था। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम्.ए तथा पी.एच.डी.की उपाधि प्राप्त की। सन १९३८ से ही आप अध्यापन क्षेत्र में आ गए। १९४३ से १९७४ तक आपने बलवंत राजपूत आगरा में अंग्रेजी विभाग में कार्य किया और विभाग के अध्यक्ष रहे । इसके बाद कुछ समय तक कन्हैयालाल माणिक मुंशी हिन्दी विद्यापीठ ,आगरा में निदेशक पद पर रहे। ३० मई २००० में उनका निधन हो गया। रामविलास जी लगातार साहित्यकर्म से जुड़े रहे।

रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि

शर्मा जी की ख्याति हिन्दी समालोचक के रूप में अधिक रही है आपने “निराला की साहित्य साधनातीन खंडो में

रामविलास शर्मा का साहित्यिक जीवन परिचय

लिखकर केवल अपनी प्रखर आलोचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया,बल्कि यह सिद्ध कर दिया कि कविता को समझने के लिए आपके पास एक कवि का ह्रदय भी है अपने एक अन्य रचना “प्रेमचंद और उनका युग “में आपने प्रेमचंद की रचनाओ में उनके युगीन परिवेश की अभिव्यक्ति का विश्लेषण किया है रामविलास शर्मा जी वामपंथी विचारधारा से प्रभावित प्रगतिशील आलोचक रहे है आपकी अन्य प्रसिद्ध आलोचनात्मक पुस्तकों में, “भारतेंदु युग और हिन्दी भाषा की  विकास परम्परा” ,”महावीर प्रसादद्विवेदी और हिन्दी नवजागरण” ,”भाषा और समाज” ,”भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी “आदि प्रसिद्ध है शर्मा जी रूचि इतिहास में भी रही है मार्क्सवादी विचारों के अनुरूप भारतीय इतिहास का भौतिकवादी विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने दो खंडो में ,”भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद” नामक विषय पर  विस्तारपूर्वक लिखा है “घर की बात” ,पुस्तक में उन्होंने आत्मकथात्मक शैली में अपने संस्मरण दिए है और इसमे  उनके पूर्वजो का लगभग सौ बर्ष का इतिहास है पारिवारिक इतिहास के साथसाथ सामाजिक इतिहास का आकलन भी हो गया है


प्रगतिवादी समीक्षा पद्धति को हिन्दी में सम्मान दिलाने वाले लेखको में डॉ.रामविलास शर्मा का नाम लिया जाता है। प्रगतिशील लेखक संघ के मंत्री के रूप में मार्क्सवादी साहित्य-दृष्टि को समझने का उन्हें पर्याप्त अवसर मिला और उन्होंने इसका भरपूर प्रयोग अपनी रचनाओ में किया है। मार्क्सवादी साहित्य समीक्षा के अग्रणी समीक्षको में आप का नाम लिया जा सकता है। रामविलास शर्मा जी ने कबीर ,तुलसी ,भारतेंदु ,रामचंद्र शुक्ल और प्रेमचंद आदि पर नवीन ढंग से विचार किया और प्राचीन मान्यताओं को खंडित किया। “प्रगति और परम्परा”, “आस्था और सौंदर्य” और “गद्यशिल्प” आदि संग्रहों में संकलित निबंधो में उक्त बात देखी जा सकती है। डॉ.रामविलास शर्मा स्पष्ट वक्ता एवं स्वत्रंत चिन्तक थे। आपने “हंस” मासिक पत्रिका के काव्य विशेषांक का संपादन किया। डॉ.रामदरश मिश्र के अनुसार ,वस्तुतः मार्क्सवादी आलोचकों में डॉ.रामविलास शर्मा की दृष्टि सबसे अधिक पैनी ,साफ और तलस्पर्शी है। प्रगति और परम्परा(१९४८) ,प्रगतिशील साहित्य की समस्याये(१९५४) ,आस्था और सौन्दर्य(१९५६),आदि उनके उल्लेखनीय निबंध संग्रह है। वर्गभेद की पहचान पर आधारित समाज की पहचान को उन्होंने लेखक के लिए आवश्यक माना है। उन्होंने “मार्क्सवाद और प्राचीन साहित्य का मूल्यांकन” निबंध लिख कर अपनी इस धारणा को दुहराया है कि साहित्य सदा वर्गीय होता है और उसका मूल्यांकन भी इसी दृष्टि से किया जा सकता है। 


रामविलास शर्मा की रचनाएँ

रामविलास शर्मा की निम्नलिखित रचनाएँ हैं – 
आलोचना ग्रन्थ:- प्रेमचंद,प्रेमचंद और उनका युग,भारतेंदु युग और हिन्दी भाषा की  विकास परम्परा,आचार्य रामचंद शुक्ल और हिन्दी आलोचना, निराला की साहित्य साधना (तीनभाग),महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण,भारतीय साहित्य की भूमिका, पम्परा का मूल्यांकन। 
कवितासंग्रह:-रूप तरंग,सदियो के सोये जाग उठे। 
उपन्यास:-चार दिन। 
आत्मकथा:- अपनी धरती अपने लोग,घर की बात। 
निबंध साहित्य:- आस्था और सौन्दर्य ,विराम चिन्ह


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