राष्ट्रभाषा हिंदी का हमारे जीवन में क्या महत्व है ?

हिन्दी भाषा का महत्व

ब से मानव समाज अस्तित्व में आया अर्थात धरती पर जीवन अस्तित्व में आया। उसमें बोलनी की छमता का विकास ने लगा। लिखित और उच्चरत भाषा की विकसित होने से संप्रेषण के क्षेत्र में क्रांति दिया गई। भाषा के विकास से संप्रेषण के अनेक रुप अस्तित्व में आए। इन रूपों में बढ़ोतरी होते हुए इंटरनेट और वेबसाइट आदि में निरंतर विकास होता रहा। वर्तमान समय में संपूर्ण दुनिया में इंटरनेट के जरिए आसानी से विभिन्न भाषाओं का अनुवाद सरलता के साथ किया जाता है।
भाषा की परिभाषा देते हुए हम यह कह सकते हैं कि भाषा वाक ध्वनियों से बनी वह व्यवस्था है जिसके माध्यम से आपस में विचारों का कर लिया करते हैं। जो लोग भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते उन लोगों के संप्रेषण के बारे में विचार करना होगा।
संप्रेषण के भी दो रुप होते हैं- 
1- उच्चरित भाषा द्वारा अर्थ संप्रेषण ।
2- आवाज और आंगिक चेष्ठाओं से बना आंगिक प्रेषण । 
उच्चरित से, ‘ गुप्त भाषा और संकेत भाषा ‘ का भी प्रयोग आपस में विचार विमर्श के लिए किया जाता है ।गुप्त भाषा और संकेत भाषा वास्तव में सामान भाषा की आस्थापना रुप है।सामान्य भाषा की अभाव में संप्रेषण की लिए योग में लाई जाती है।
राष्ट्रभाषा हिंदी का हमारे जीवन में क्या महत्व है ?

भाषा मानव समझाए के सदस्यों को एक दूसरे के निकट लाने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। इस कार्य के लिए हमें दो तरीकों को अपनाना पड़ता है।एक बोलकर और दूसरा लिखकर।बोलकर हम अपनी बात भाषा की माध्यम से उच्चरित करके पहुंचाते हैं। उच्चरत माध्यम से भाषा का संप्रेषण करने के लिए श्रोता को सामने होना चाहिए। समाज में उचित रुप से उच्चरत भाषा का संप्रेषण आया जाना अनिवार्य है। इसीलिए मानव का शिशु जन्म लेने के कुछ ही वर्षों बाद अपनी मातृभाषा को बोलना शुरू कर देता है।वह शिशु अपने परिवेश से ही सीख लेता रहता है। और वह बोलचाल का रूप सीखता है।किसी भी भाषा की समृद्धि और ताकत उसकी शहर शब्द संपदा ही होती है।अगर देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी के बाल हिंदी ही वह भाषा है जिसने सभी भाषाओं को अपनाया है और उसको अपने अनुसार ढाल लिया। अंग्रेजी का रोना रोने वालों लोगों को चिंतित होने की कोई जरुरत नहीं है।  देश के लोक हिंदी को संपर्क भाषा के रुप में जानने पहचानने और बोलने लगे हैं।हम लोगों को भी प्रयास करना चाहिए कि अधिक से अधिक साहित्य को हिंदी मेजिक लोगों तक पहुंचाने का काम करें।

अब राजनीति की वह एक अनिवार्य भाषा बन गई है। उत्तर से दक्षिण तक के नेता जनता से संवाद प्रायः हिंदी में करते रहते हैं। हिंदी विचार, चिंतन , व्यवहार बाजार और तकनीकी भाषा में लगातार वृद्धि करती जा रही है।
हिंदी को मजबूत करने की दिशा में भाषा प्रौद्योगिकी के द्वारा भी शिक्षा शोध अनुसंधान और संप्रेषण का काम या जा रहा है। भाषा की द्वारा कला और सांस्कृतिक संवर्धन का लक्ष्य रखा गया है।सांस्कृतिक बोध मातृभाषा में ही संभव है जब भारतीय भाषाएं डीसी होती है तो संस्कृति भी विकसित हो जाती है। भाषा के साथ जाती संस्कृति का बोध होना भी स्वाभाविक है। हिंदी हमारे सांस्कृतिक गौरव और जाती है चिंतन की भाषा बन रही है।आज के समय में वैश्विक रूप से जन जन को जोड़ने के लिए हिंदी सबसे अच्छी और उपलब्ध भाषा है।
लगभग तीन दशकों से हिंदी बाजार संचार और शिक्षा की भाषा के रुप में अधिक स्वीकार की जा रही है।हिंदी माध्यम से स्कूल विश्वविद्यालय में हिंदी माध्यम से पढ़ने पढ़ाने वालों की संख्या बढ़ी है। सरकारी योजना के अनुसार मेडिकल कॉलेज इंजीनियरिंग कॉलेज की पढ़ाई भी हिंदी माध्यम से करने की योजना बनाई जा रही है जो बहुत ही सराहनीय है ।
     
लिखित भाषा सर्जनात्मक साहित्य का माध्यम होती है। जबकि देखा जाए तो लिखित भाषा की सुनामी उच्चरत भाषा को अधिक महत्व दिया गया है। क्योंकि भाषा का प्रयोग करने वाला अपनी परिवेश खुद ही सीखता रहता है। वाक् की भूलना में लेखन की उपलब्ध मानव समाज में काफी बाद में आई। परंतु मानव समाज के विकास पर लेखन का गहरा प्रभाव पड़ता गया। भाषा के माध्यम से समाज और सभ्यता में निखार आने लगा है।
   
भाषा ही हमारी पहचान होती है। भाषा से देश का मान व सम्मान होता है। लेखक और कवि का दायित्व होता है कि वह भाषा के विकास में मददगार बने। भारत विविधताओं का देश है। किसी भी भाषा का महत उसके बोलने वालों पर निर्भर करता है। पत्र  पत्रिकाओं का भी विशेष महत्व है, जितने ही पत्र पत्रिकाएं छापी जाएंगी उतना ही उसको  पढ़ने वाले, उतने ही अधिक बढ़ेंगे जिससे भाषा के विकास करने में मदद मिलेगी  है।
     
भारत की विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के लिए साप्ताहिक और मासिक कार्यक्रम जगह जगह चलाए जा रहे हैं।उन कार्यक्रमों की चलाने का एकमात्र उद्देश्य हिंदी के प्रचार प्रसार बढ़ावा देना ही है।हिंदी कोच्चि शिखर पर स्थापित करने के लिए विदेश के विद्वान भी बहुत प्रयास कर रहे हैं।भारत में प्राय सभी कार्यालयों में 14 सितंबर से हिंदी दिवस का दिन किया जाता है।इसी किसी कार्यालय में तो 1 सितंबर से ही यह आयोजन होता है।जिसमें कर्मचारियों के बच्चे  भी भाग लेते हैं।
14 सितंबर 1949 को संविधान निर्माताओं ने भारतीय संविधान के अनुछेद 343 (१) के अधीन हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। यह तय हुआ कि हिंदी की लिपि देवनागरी होगी। योग की जाने वाले अंक, भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप होंगे। राज्य की राजभा षा / राजभाषाओं का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुछेद 345 में किया गया है।
राजभाषा आयोग का गठन वर्ष 19 55 में श्री वी जी खरे की अध्यक्षता में हुआ। भारतीय संविधान की आठवी अनुसूची में कुल वाइस भाषाएं हैं।राजभाषा हिंदी के विकास की व्यवस्था का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुछेद का उल्लेख353 में क्या गया है। राजभाषा अधिनियम 1963 का सन 1967 में संशोधन किया गया।   राजभाषा नियम 1976 के नियम 8 (४) के अनुसार हिंदी में प्रवीणता प्राप्त कर्मचारी को हिंदी में कार्य करने हेतु आदेश द्वारा विनिदिष्ट किया जा सकता है। राजभाषा नियम 1976 के नियम (१२) केअनुसार कार्यालय प्रधान का यह दायित्व है कि वह अपने कार्यालय में राजभाषा आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करें।
भारतीय जन मानस पर पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के कारण जीवन में विकास भी हुआ है और नागरिकों का  दृष्टि कोण भी बदला है। धीरे धीरे पश्चिमी सभ्यता ने हमें अंग्रेजी शिक्षा के लिए गुलाम करते चली गई। उसने भारतीय संस्कृति पर अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया। भारतीय समाज में उसकी नैतिकता ने हमारे रहन  -, खान – पान, वेशभूषा, विवाह समारोह, आचार – विचार शिष्टाचार तथा व्यवहारों में परिवर्तन दिखाई दिया।भारतीय परंपरा प्रीति रिवाज में महत्वपूर्ण बदलाव होने से महत्वपूर्ण सुधार भी हुआ। लोगों में जीवन यापन करने की शैली में महत्वपूर्ण बताओ किया।जिसका हमारी भाषा पर प्रभाव पड़ा। 
हमारे देश में जन जन को बांधने वाली संपर्क सूत्र में पिरोने वाली समृद्ध भाषा के रुप में हिंदी भाषा है।किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता उसकी आत्मा होती है भाषा उसकी प्राण वायु होती है। भाषा एक सेनानी की तरह होती है।
  
प्राचीन समय में उस काल के राजा किसी भी राज्य पर आक्रमण करने के पहले योजना बना कर  वहां की भाषा सीखने का काम करते थे। अपने लोगों से उनकी संस्कृति, सभ्यता अर्थात भाषा पर कुठाराघात करने का प्रयत्न करते थे। किसी भी राष्ट्र को परास्त करने के लिए उसकी संस्कृति सभ्यता और संस्कार को समाज  को प्रभावित किया जाता है लेकिन उस राष्ट्र की सभ्यता और भाषा को जानने की आवश्यकता होती है।

– सुख मंगल सिंह
ईमेल – sukhmangal@gmail.com

You May Also Like